भू-अर्थशास्त्र और सामरिक विदेश नीति
भू-अर्थशास्त्र की अवधारणा एडवर्ड लुटवाक द्वारा 1990 में प्रस्तुत की गई थी और इसमें रणनीतिक तथा विदेश नीति लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आर्थिक शक्ति का उपयोग शामिल है। इस दृष्टिकोण को विशेष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लागू किया गया है, जिन्होंने व्यापार वार्ता में लेन-देन संबंधी रुख अपनाकर भारत सहित कई देशों को आश्चर्यचकित कर दिया है।
भारत की व्यापार रणनीति और टैरिफ
- भारत को संभावित रूप से 20-25% टैरिफ का सामना करना पड़ सकता है, जबकि अन्य देशों, जैसे- UK (10%), EU (15%), इंडोनेशिया (19%) और वियतनाम (20%) में यह प्रतिशत कम है।
- भारत के निर्णय में अपने कृषि बाजारों को खोलने के स्थान पर उच्च टैरिफ को चुनना शामिल हो सकता है, जिससे उसे 5% की हानि का सामना करना पड़ सकता है।
- इस संदर्भ में भारतीय किसानों के हितों की रक्षा के लिए प्रधान मंत्री की प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण है।
विनिर्माण क्षेत्र और आर्थिक विकास
विनिर्माण क्षेत्र का विकास रोजगार के लिए आवश्यक है। हालांकि, "मेक इन इंडिया" पहल के बावजूद, विनिर्माण का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान 14% पर बना हुआ है, जो 2025 के 25% के लक्ष्य से कम है। स्नातकों में बेरोजगारी गैर-स्नातकों से अधिक है, जो क्षेत्र में सुधार की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है।
चीन के साथ तुलना और टैरिफ का समायोजन
- चीन की सफलता संरक्षित भारतीय विनिर्माण क्षेत्र के विपरीत, कंपनियों को प्रतिस्पर्धा के अधीन रखने में निहित है।
- यदि अमेरिका से कृषि आयात स्वीकार करने से विनिर्माण क्षेत्र में टैरिफ में रियायत मिलती है तो भारत को लाभ हो सकता है।
कृषि आयात और व्यापार सौदों में चुनौतियाँ
यद्यपि कृषि आयात की अनुमति देने से चुनौतियां उत्पन्न होती हैं, फिर भी रणनीतिक रियायतें लाभप्रद हो सकती हैं। चुनौतियों में जी.एम. फसलों से संबंधित चिंताएं तथा अमेरिकी कम्पनियों द्वारा की जाने वाली शिकारी कीमतों के प्रति डेयरी क्षेत्र की संवेदनशीलता शामिल हैं।
व्यापार समझौते और वैश्विक मानक
- ब्रिटेन के साथ भारत का व्यापार समझौता शुल्क मुक्त कृषि आयात की अनुमति देता है, लेकिन आंतरिक विनियामक मुद्दे गैर-टैरिफ बाधाएं पैदा कर सकते हैं।
- भारतीय किसानों की तुलना में अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा अपने किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी का मुद्दा एक सतत चुनौती बना हुआ है।
भावी व्यापार वार्ता और अवसर
विकसित हो रहा वैश्विक आर्थिक परिदृश्य भारत के लिए अपनी नीतियों और संरचनाओं को अनुकूलित करने, विकसित देशों में संभावित जनसांख्यिकीय चुनौतियों और कृषि उपज की बढ़ती लागतों के लिए तैयार होने के अवसर प्रस्तुत करता है।