भारत-चीन संबंध: चीन विशेषज्ञता विकसित करने की तात्कालिकता को समझना
31 अगस्त को भारत के प्रधानमंत्री की चीन यात्रा ने भारत-चीन संबंधों की भविष्य की दिशा को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या भारत के पास चीन के बारे में पर्याप्त समझ है जिससे वह इन संबंधों को प्रभावी ढंग से आकार दे सके।
भारत में चीन विशेषज्ञता विकसित करने में चुनौतियाँ
- विद्वानों की चेतावनी: ऐतिहासिक रूप से, विद्वानों ने भारत में चीन के गहन ज्ञान की कमी पर प्रकाश डाला है। उन्होंने अपर्याप्त भाषा प्रशिक्षण, पद्धतिगत कठोरता और सीमित शोध क्षमता के कारण चीनी इतिहास के अध्ययन में एक संकट की ओर ध्यान दिलाया है।
- विदेशी छात्रवृत्ति पर निर्भरता: मजबूत विशेषज्ञता के बिना, भारत विदेशी व्याख्याओं पर निर्भर रहता है तथा चर्चा को सतही विश्लेषण और राजनीतिक आख्यानों की स्वीकृति तक सीमित कर देता है।
- राजनयिक संलग्नता: यद्यपि राजनयिक अवसर महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उन्हें सैन्य या व्यापारिक संबंधों से परे, चीन के स्वतंत्र ज्ञान के समर्थन की आवश्यकता है।
तुलनात्मक अंतर्दृष्टि और सबक
- तुलनात्मक दर्पण: भारत और चीन दोनों ही बड़े और विविध देश हैं जो समान विकास चुनौतियों और महत्वाकांक्षाओं का सामना कर रहे हैं। 18 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला चीन गरीबी उन्मूलन, जलवायु अनुकूलन और अन्य क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण सबक प्रदान करता है।
- गलतियों से सीखना: चीन की पर्यावरण नीति, शहरीकरण और वित्तीय प्रबंधन में की गई गलतियां भारत के लिए सीखने के अवसर प्रदान करती हैं।
चीन के अध्ययन की वर्तमान सीमाएँ
- सतही स्तर का विश्लेषण: भारतीय विश्लेषण अक्सर सैन्य गतिविधियों, व्यापार संख्या या राजनीतिक बयानों पर केंद्रित होता है तथा ऐतिहासिक और सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों की उपेक्षा करता है।
- बुनियादी ढांचे का अभाव: अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के विपरीत, भारत में चीन अध्ययन का बुनियादी ढांचा अविकसित है तथा सीमित केंद्र कुछ शहरों तक ही सीमित हैं।
- विशेषज्ञता की आवश्यकता: आंतरिक विशेषज्ञता के बिना, भारत विदेशी आख्यानों पर निर्भर रहता है, जिससे विदेश नीति और इतिहास की समझ प्रभावित होती है।
चीन के संबंध में विशेषज्ञता की रणनीतियाँ
- शिक्षा में निवेश: चीन में विशेषज्ञता विकसित करने के लिए विश्वविद्यालयों में अच्छी तरह से वित्तपोषित केंद्रों की आवश्यकता है, जो मंदारिन प्रशिक्षण और अंतःविषयक अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करें।
- फेलोशिप और इमर्शन कार्यक्रम: भारतीय विद्वानों के लिए चीनी स्रोतों के साथ काम करने और चीनी अभिलेखागार और विश्वविद्यालयों में तल्लीन होने के अवसर पैदा करना।
- स्थानीय विशेषज्ञता विकास: दिल्ली से चीन के संबंध में अध्ययन को विकेन्द्रित करने के लिए, विशेष रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों में, राज्य स्तरीय केन्द्रों की स्थापना करना।
- सुगम्यता में वृद्धि: शोध को भारतीय भाषाओं में अनुवाद करना तथा विद्वानों और नीति निर्माताओं के लिए सुलभ डिजिटल अभिलेखागार बनाना।
निष्कर्ष: चीन को समझना अनिवार्य
भारत का भविष्य उसकी इस क्षमता पर निर्भर करता है कि वह प्रमुख शक्तियों, विशेषकर चीन, को केवल आर्थिक और सैन्य मानकों से परे जाकर समझ सके। चीन के बारे में विशेषज्ञता विकसित करना कोई विकल्प नहीं, बल्कि सक्रिय और सूचित नीतियाँ बनाने के लिए आवश्यक है। इस क्षमता में निवेश करना सुनिश्चित करता है कि भारत असुरक्षा की स्थिति से नहीं, बल्कि शक्ति की स्थिति से कार्य करे।