भारत में आरक्षण और समानता
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय ने राज्य सरकार द्वारा कुनबी जाति प्रमाण पत्र प्रदान करने की माँग स्वीकार करने पर जश्न मनाया, जिससे उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी में आरक्षण का लाभ मिल सकेगा। यह भारत में आरक्षण नीतियों को लेकर चल रही चर्चाओं और विकास को दर्शाता है।
आरक्षण की नीतियां और हालिया घटनाक्रम
- बिहार में विपक्ष के नेता ने चुनाव जीतने पर आरक्षण को 85% तक बढ़ाने का वादा किया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 'क्रीमी लेयर' प्रणाली की मांग वाली याचिका के बारे में केंद्र सरकार को सूचित किया है।
संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 15 और 16: ये सभी नागरिकों को समानता की गारंटी देते हैं और OBC, SC और ST सहित सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की सहायता के लिए विशेष प्रावधान करते हैं।
- केंद्रीय स्तर पर वर्तमान आरक्षण इस प्रकार है: OBC (27%), SC (15%), ST (7.5%), और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) (10%), कुल मिलाकर 59.5%।
समानता: औपचारिक बनाम वास्तविक
- नवंबर 1948 में संविधान सभा में अपने भाषण में डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने उन पिछड़े समुदायों के लिए आरक्षण की आवश्यकता को उचित ठहराया, जिन्हें अतीत में आरक्षण से वंचित रखा गया था। उन्होंने यह भी कहा कि 'अवसर की समानता' के गारंटीकृत अधिकार को बनाए रखने के लिए आरक्षण को अल्पसंख्यकों तक ही सीमित रखा जाना चाहिए।
- बालाजी बनाम मैसूर राज्य (1962) जैसे सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों ने स्थापित किया कि औपचारिक समानता का संतुलन बनाए रखने के लिए आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए।
- इंद्रा साहनी मामले (1992) ने इस 50% सीमा की पुनः पुष्टि की, लेकिन भारत में वर्ग के निर्धारक के रूप में जाति को मान्यता दी।
- वास्तविक समानता का उद्देश्य ऐतिहासिक रूप से वंचितता और अल्प प्रतिनिधित्व को संबोधित करना है, जैसा कि केरल राज्य बनाम एन.एम. थॉमस (1975) में चर्चा की गई है।
आरक्षण बढ़ाने पर बहस
- पिछड़े वर्गों के जनसांख्यिकीय अनुपात के अनुरूप आरक्षण को 50% से अधिक बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।
- अनुमानों पर निर्भर रहने के बजाय सटीक आंकड़े प्राप्त करने के लिए जाति जनगणना की मांग।
- सरकारी आंकड़े बताते हैं कि OBC, SC और ST के लिए आरक्षित 40-50% सीटें खाली रहती हैं।
आरक्षण लाभों का संकेंद्रण
- रोहिणी आयोग ने पाया कि 97% आरक्षित नौकरियों और शैक्षणिक सीटों पर केवल 25% OBC जातियां/उप-जातियां ही दावा करती हैं, जिससे कई समुदायों का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता।
- अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई 'क्रीमी लेयर' बहिष्करण नहीं है, जिसके कारण इन श्रेणियों के भीतर भी लाभों का संकेन्द्रण हो जाता है।
नीतिगत विचार
- पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह (2024) मामले में, SC और ST आरक्षण में 'क्रीमी लेयर' को बाहर करने का सुझाव दिया गया था।
- हालाँकि, केंद्र सरकार ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर 'क्रीमी लेयर' लागू न करने का निर्णय लिया है।
भविष्य की दिशाएं
- अवसर की समानता एक मौलिक अधिकार है और आरक्षण को 85% तक बढ़ाने से इस अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
- रोहिणी आयोग की रिपोर्ट और जनगणना के आंकड़ों के आधार पर OBC के बीच उप-वर्गीकरण महत्वपूर्ण है।
- प्रस्तावित 'दो-स्तरीय' आरक्षण प्रणाली में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अधिक हाशिये पर पड़े वर्गों को प्राथमिकता दी जा सकती है।
- सार्वजनिक क्षेत्र में सीमित अवसरों को देखते हुए युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए कौशल विकास पहल आवश्यक है।
आरक्षण नीतियों के संबंध में भारत की जनसंख्या की विविध आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को संबोधित करने के लिए 2027 की जनगणना के बाद व्यापक नीतिगत चर्चा की आवश्यकता।