सेमीकंडक्टर: डिजिटल अर्थव्यवस्था का 'नया तेल' और वैश्विक लचीलेपन के लिए भारत की खोज | Current Affairs | Vision IAS
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सेमीकंडक्टर: डिजिटल अर्थव्यवस्था का 'नया तेल' और वैश्विक लचीलेपन के लिए भारत की खोज

Posted 03 Oct 2025

Updated 05 Oct 2025

9 min read

परिचय

एक अत्यधिक जुड़ी हुई विश्व व्यवस्था में, सेमीकंडक्टर आधुनिक जीवन के "गुप्त मस्तिष्क" हैं, लेकिन उनकी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला भू-राजनीतिक जोखिमों से भरी है। जैसे-जैसे राष्ट्र तकनीकी श्रेष्ठता की होड़ में आगे बढ़ रहे हैं, भारत एक गहन परिवर्तन की कगार पर है। अब देश केवल इन महत्वपूर्ण घटकों का उपभोक्ता मात्र बनने रहने में संतुष्ट नहीं है; बल्कि यह उनके उत्पादन में वैश्विक नेतृत्वकर्ता बनने की महत्वाकांक्षी यात्रा पर निकल पड़ा है। 

यह लेख यह उजागर करेगा कि भारत आत्मनिर्भर चिप इकोसिस्टम के निर्माण की कैसे योजना बना रहा है तथा यह मूक क्रांति इसके भविष्य, इसकी सुरक्षा और विश्व मंच पर इसके स्थान के लिए क्या मायने रखती है।  

1. सेमीकंडक्टर क्या हैं और वे इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं?

  • अर्धचालक (सेमीकंडक्टर) आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स के मूलभूत निर्माण खंड हैं, जो स्मार्टफोन्स, कंप्यूटर, उपग्रह से लेकर रक्षा प्रणालियों तक सबको संचालन क्षमता प्रदान करते हैं।
  • इनमें चालक और अवरोधक (इन्सुलेटर) के बीच के विद्युत गुण होते हैं, जिससे नियंत्रित विद्युत प्रवाह प्राप्त करना संभव होता है।
  • 1947 में पहले ट्रांजिस्टर के आविष्कार और 1960 के दशक में एकीकृत सर्किट (IC) के आविष्कार के बाद से, सेमीकंडक्टर का निरंतर विकास हुआ है (इन्फोग्राफिक देखें)।
  • सेमीकंडक्टर के प्रकार
  • तत्त्व-आधारित सेमीकंडक्टर: ये किसी एक ही तत्त्व से बने होते हैं (उदाहरण: सिलिकॉन, जर्मेनियम)।
  • यौगिक सेमीकंडक्टर: ये दो या दो से अधिक तत्त्वों से मिलकर बने होते हैं (उदाहरण: गैलियम आर्सेनाइड)। इनका उपयोग एलईडी (LEDs), सेमीकंडक्टर लेजर और उच्च-आवृत्ति वाले उपकरणों में किया जाता है।
  • प्रमुख गुण
    • नियंत्रणीय: इनकी चालकता को डोपिंग (अशुद्धियां मिला कर) और विद्युत क्षेत्रों (ट्रांजिस्टर) के द्वारा आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
    • तापमान: तापमान बढ़ने पर इनकी प्रतिरोधकता घटती है।
    • प्रकाश-संवेदी: ये प्रकाश से विद्युत धारा उत्पन्न (सौर सेल) कर सकते हैं और प्रकाश उत्पन्न (LEDs) भी कर सकते हैं ।
    • वाहक: इनमें विद्युत प्रवाह इलेक्ट्रॉनों और होल्स दोनों के द्वारा होता है।
    • विभिन्न आकार (नोड): इन्हें विभिन्न नोड आकारों में विनिर्मित किया जाता है, जैसे 3nm, 5nm, 28nm, और 65nm, जिनमें से प्रत्येक का अलग-अलग तकनीकी उद्देश्य की पूर्ति करता है।

सेमीकंडक्टर में ‘nm’ को समझना: सेमीकंडक्टर नोड्स क्या हैं?

  • नोड आकार (जैसे 5nm या 28nm) ट्रांजिस्टर की सबसे छोटी संरचना को परिभाषित करता है।
    • nm का अर्थ नैनोमीटर होता है, जो एक मीटर का एक अरबवां हिस्सा होता है।
    • यह कंप्यूटर चिप पर मौजूद सबसे छोटी संरचना अर्थात मूल स्विच (ट्रांजिस्टर) के आकार को मापने की इकाई है।
  • भिन्न आकार, भिन्न उपयोग:
    • छोटे नोड (3nm, 5nm): फोन और लैपटॉप जैसी चीजों के लिए बेहतर होते हैं- 
      • अति-उच्च ट्रांजिस्टर घनत्व और क्षमता प्रदान करते हैं।
      • चिप्स का तीव्र संचालन करते हैं।
      • कम बिजली खपत करते हैं (बेहतर बैटरी लाइफ)।
      • एक छोटी सी चिप पर कई घटकों को जोड़ना संभव बनाते हैं।
      • इनके निर्माण की प्रक्रिया अत्यंत जटिल और महंगी है तथा उन्नत फाउंड्रियों (निर्माण इकाइयों) की आवश्यकता होती है।
    • बड़े नोड (जैसे 28nm, 65nm): सरल, अधिक विश्वसनीय और सस्ते घटकों जैसे कारों में पावर कंट्रोल चिप, औद्योगिक उपकरण, दूरसंचार और रक्षा प्रणालियां के लिए उपयोग किए जाते हैं।
      • ये केवल तीव्र गति के बजाय लंबी संचालन अवधि, निम्न लागत और मजबूती को प्राथमिकता देते हैं।

 

उनके विशिष्ट गुण छोटे इलेक्ट्रॉनिक चिप्स के विनिर्माण में उनके उपयोग को संभव बनाते हैं, जिनके अनुप्रयोगों का दायरा बहुत व्यापक होता है।

1.1. अर्धचालकों के मुख्य अनुप्रयोग

सेमीकंडक्टर आधुनिक प्रौद्योगिकी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, चूंकि वे डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक क्रांति को संचालित कर रहे हैं

अर्धचालकों के मुख्य अनुप्रयोग

  • कंप्यूटिंग एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI): कंप्यूटरों और डेटा केंद्रों में उपयोग किए जाने वाले माइक्रोप्रोसेसर (CPU) और GPU (जैसे, इंटेल, एनवीडिया चिप्स)
  • पावर इलेक्ट्रॉनिक्स: इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs), सोलर इन्वर्टर और रेलवे ट्रैक्शन में विद्युत प्रबंधन में पावर प्रबंधन के लिए उपयोग किए जाते हैं।
  • संचार: 5G उपकरणों और फाइबर ऑप्टिक्स में उच्च-गति डेटा स्थानांतरण के लिए एकीकृत सर्किट में उपयोग किए जाते हैं।
  • सेंसिंग एवं इमेजिंग: डिजिटल कैमरों और चिकित्सा निदान के लिए CMOS इमेज सेंसर में उपयोग किए जाते हैं।
  • मेमोरी और संग्रहण: डेटा संग्रहीत करने के लिए आवश्यक हैं, जिसमें डायनामिक रैंडम-एक्सेस मेमोरी (DRAM), नैंड फ्लैश मेमोरी (सॉलिड स्टेट ड्राइव्स या SSD में प्रयुक्त होते हैं) और रीड-ओनली मेमोरी (ROM) शामिल हैं।
  • ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स: विद्युत संकेतों को प्रकाश में और प्रकाश को विद्युत संकेतों में बदलने वाले महत्वपूर्ण घटक, जैसे कि लाइट-एमिटिंग डायोड (LED) डिस्प्ले और प्रकाश व्यवस्था के लिए, तथा लेजर जिनका उपयोग बार कोड स्कैनर और फाइबर ऑप्टिक सिस्टम में होता है।
  • ऑटोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक्स: एडवांस्ड ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम (ADAS), इंजन नियंत्रण इकाइयों (ECUs), और कार इन्फोटेनमेंट सिस्टम जैसी उन्नत सुविधाओं को संचालन क्षमता प्रदान करते हैं।
  • इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT): छोटे, कम-ऊर्जा की आवश्यकता वाले उपकरणों में संपर्क और प्रसंस्करण को सुगम बनाना, जिसमें माइक्रोकंट्रोलर और वायरलेस संचार के लिए विशेष रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) चिप्स लगे होते हैं।
  • अंतरिक्ष और रक्षा: उपग्रह संचार, मार्गदर्शन प्रणालियों, और उन्नत रडार तकनीक के लिए उपयोग किए जाने वाले मजबूत और विकिरण-रोधी घटकों में प्रयुक्त होते हैं।

2. सेमीकंडक्टर क्रांति का भारत के लिए क्या अर्थ होगा: इसका भविष्य, इसकी सुरक्षा और विश्व मंच पर इसका स्थान?

भारत के भविष्य हेतु

  • आर्थिक संवृद्धि: उद्योग अनुमानों के अनुसार, भारतीय सेमीकंडक्टर बाजार का आकार 2024–2025 में लगभग 45–50 अरब डॉलर से बढ़कर 2030 तक 100–110 अरब डॉलर से अधिक हो जाएगा।
    • यह एक उच्च-मूल्य वाले विनिर्माण क्षेत्रक का निर्माण करेगा, जिससे रोज़गार सृजन होगा और GDP में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। 
  • प्रौद्योगिकीय नेतृत्व: यह भारत को एक प्रौद्योगिकी उपभोक्ता से प्रौद्योगिकी उत्पादक और नवप्रवर्तक  के रूप में परिवर्तित करेगा, विशेष रूप से AI, 5G और इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के क्षेत्रों में। 
    • उदाहरण: अमेरिकी मेमोरी कंपनी माइक्रोन गुजरात में एक असेंबली, टेस्टिंग, मार्किंग और पैकेजिंग (ATMP) सुविधा स्थापित कर रही है।
  • Sकौशल विकास: यह अत्यधिक कुशल इंजीनियरों और तकनीशियनों की एक नई पीढ़ी को विकसित करेगा, जिससे वर्ष 2030 तक लगभग 400,000 नई नौकरियां सृजित होने का अनुमान है।

भारत की सुरक्षा हेतु

  • आयात निर्भरता में कमी: यह विदेशी चिप्स पर निर्भरता कम करेगा, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में आने वाले व्यवधानों के प्रति राष्ट्र अधिक लोचशील बनेगा। 
    • वित्त वर्ष 2023–24 में भारत ने 25 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के सेमीकंडक्टर डिवाइस, डायोड और ट्रांजिस्टर का आयात किया था।
  • रणनीतिक स्वायत्तता: यह रक्षा प्रणालियों और महत्वपूर्ण अवसंरचनाओं के लिए सुरक्षित, स्वदेशी चिप्स के उत्पादन को सक्षम बनाएगी, जिससे विदेशी हस्तक्षेप का जोखिम समाप्त हो जाएगा।
    • उदाहरण, भारत का पहला स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप इस वर्ष उत्पादन के लिए तैयार हो जाएगा। 
  • साइबर सुरक्षा: यह हार्डवेयर आपूर्ति श्रृंखला पर नियंत्रण बढ़ाएगा, जिससे साइबर खतरों के प्रति बेहतर सुरक्षा प्रदान की जा सकेगी।

वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति हेतु

  • नई भू-राजनीतिक शक्ति: यह भारत को एक नई वैश्विक व्यवस्था में एक प्रमुख अभिकर्ता के रूप में स्थापित करता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में उसे लाभ की स्थिति प्राप्त होगी। 
    • 2024 में वैश्विक सेमीकंडक्टर बाजार का मूल्य 627.6 अरब अमेरिकी डॉलर आंका गया था।
  • संवर्धित सॉफ्ट पावर: इससे भारत की छवि एक तकनीकी रूप से उन्नत और विश्वसनीय साझेदार के रूप में स्थापित होती है, जिससे निवेश और सहयोग को आकर्षित करने में मदद मिलगी।
  • वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में विविधता: वर्तमान में अत्यधिक संकेंद्रित चिप उत्पादन केंद्रों के लिए एक अत्यावश्यक विकल्प प्रदान करती है। 
    • आज, ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान, चीन और अमेरिका सेमीकंडक्टर उत्पादन में अग्रणी हैं, जहां ताइवान अकेले विश्व के 60% से अधिक और 90% उन्नत चिप्स का उत्पादन करता है, जिससे आपूर्ति श्रृंखला में जोखिम उत्पन्न होता है।

2.1. लचीली आपूर्ति श्रृंखलाएं: नई व्यवस्था में भारत की स्थिति

लचीली आपूर्ति श्रृंखलाएं: नई व्यवस्था में भारत की स्थिति

वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला के बढ़ते संकेंद्रण, विशेष रूप से अवयवों की असेंबली और परीक्षण में चीन के प्रभुत्व ने विविधीकरण हेतु एक रणनीतिक वैश्विक प्रयास को प्रोत्साहित किया है। यह अमेरिकी पहलों जैसे 'चिप्स एंड साइंस एक्ट 2022' और 'चिप 4 इनिशिएटिव' में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।  

आपूर्ति श्रृंखला के लचीलेपन और तकनीकी संप्रभुता सुनिश्चित करने के लिए, प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं वैकल्पिक, विश्वसनीय विनिर्माण केंद्रों का तेजी से तलाश कर रही हैं। इस संदर्भ में, भारत में एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में उभरने की क्षमता है:-

  • विश्वसनीय साझेदार का दर्जा: भारत की स्थिर लोकतांत्रिक व्यवस्था को पश्चिमी देशों द्वारा एक विश्वसनीय उत्पादन आधार के रूप में अनुकूल दृष्टि से देखा जाता है।
  • प्रतिभा का भंडार: विशेष रूप से चिप डिजाइन के महत्वपूर्ण क्षेत्र में, भारत के पास एक व्यापक और कुशल कार्यबल है।
  • नीतिगत समर्थन: भारत सरकार की पहलें जैसे 'इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM)' और 'उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना' वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करने के लिए फैब्रिकेशन (फैब्स) और असेम्बली, टेस्टिंग, मार्किंग एवं पैकेजिंग (ATMP) दोनों के लिए पर्याप्त वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती हैं।
  • रणनीतिक लक्ष्य: रणनीतिक लक्ष्य: भारत को एक व्यवहार्य "चाइना प्लस वन" केंद्र में परिवर्तित करना, जहां डिजाइन से लेकर विनिर्माण तक की संपूर्ण क्षमताओं का एकीकरण हो। साथ ही, भारत की रणनीतिक अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना और वैश्विक जोखिम-निवारण में बढ़ावा देना है।

 

 

 

 

 

3. भारत के सेमीकंडक्टर विनिर्माण इकोसिस्टम का निर्धारण करने वाली जटिल चुनौतियाँ क्या हैं?

भारत का सेमीकंडक्टर विनिर्माण इकोसिस्टम बहुआयामी चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनका समाधान तकनीकी आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता के अपने दृष्टिकोण को साकार करने के लिए आवश्यक है-

  • उच्च पूँजी निवेश और वित्तीय जोखिम
    • पूँजी की अत्यधिक गहनता: एक आधुनिक सेमीकंडक्टर निर्माण संयंत्र (फैब) स्थापित करने की लागत $10 बिलियन से $20 बिलियन के बीच होती है, जिससे आवश्यक दीर्घकालिक निवेश को आकर्षित करना और बनाए रखना कठिन हो जाता है।
    • प्रोत्साहनों के लिए प्रतिस्पर्धा: भारत के प्रोत्साहनों को अमेरिका, चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे स्थापित सेमीकंडक्टर केंद्रों द्वारा दिए जाने वाले प्रोत्साहनों से प्रतिस्पर्धा करनी होगी, जहाँ लंबे समय से भारी सब्सिडी वाले उद्योग हैं।
      • 2023 में वेदांता-फॉक्सकॉन चिप परियोजना की समाप्ति एक बड़ी विफलता थी जिसने वित्तीय और तकनीकी चुनौतियों को उजागर किया।
  • विकसित इकोसिस्टम का अभाव और अवसंरचना की कमी
    • सीमित "फ्रंट-एंड" विनिर्माण: भारत का सेमीकंडक्टर उद्योग वर्तमान में असेंबली, टेस्टिंग, मार्किंग और पैकेजिंग (ATMP/OSAT) जैसे बैक-एंड संचालनों की ओर झुका हुआ है।
      • वास्तविक चिप्स बनाने वाले फ्रंट-एंड फैब्रिकेशन प्लांट्स का काफ़ी अभाव है, जो इस प्रक्रिया का सबसे अधिक मूल्यवर्धित हिस्सा हैं।
    • स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला का अभाव: भारत आवश्यक कच्चे माल, विशेष रसायनों, उच्च शुद्धता वाली गैसों और उपकरणों के लिए आयात पर अत्यधिक निर्भर है, जिससे लागत बढ़ती है और उद्योग वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों के प्रति सुभेद्य हो जाता है।
    • अविश्वसनीय बिजली और जल की आपूर्ति: चिप निर्माण के लिए अत्यधिक स्थाई बिजली और अत्यधिक मात्रा में अति-शुद्ध जल की बाधारहित, 24/7 आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
    • लॉजिस्टिक चुनौतियाँ: विनिर्माण केंद्रों, अनुसंधान केंद्रों और वैश्विक बाजारों के बीच कुशल संपर्क सहित मज़बूत अवसंरचना  का अभाव, पदार्थ और तैयार माल की आवाजाही में बाधा उत्पन्न करता है।
  • भू-राजनीतिक और विनियामकीय बाधाएँ
    • विदेशी तकनीक पर निर्भरता: भारत महत्वपूर्ण, स्वामित्व वाली विनिर्माण तकनीक और बौद्धिक संपदा (IP) के लिए विदेशी कंपनियों पर निर्भर है।
    • स्थापित कंपनियों से प्रतिस्पर्धा: भारत सेमीकंडक्टर विनिर्माण उद्योग में देर से प्रवेश किया है और उसे उन देशों से प्रतिस्पर्धा करनी होगी जिनके पास दशकों का अनुभव, स्थापित आपूर्ति श्रृंखलाएँ और बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्थाएँ हैं।
    • नौकरशाही में विलंब: विभिन्न सरकारी विभागों से मंज़ूरी और अनुमोदन प्राप्त करने की प्रक्रिया में काफ़ी विलंब हो सकता है, जिससे निवेशक हतोत्साहित हो सकते हैं।
  • अन्य मुद्दे
    • कौशल संबंधी असमानता: हालांकि दुनिया की 20% चिप डिज़ाइन प्रतिभाएँ भारत में रहती हैं, फिर भी निर्माण सुविधाओं में विनिर्माण को सहायता देने के लिए कौशल का एक बड़ा अंतर है।
    • संसाधन-गहन उत्पादन: सेमीकंडक्टर विनिर्माण एक ऊर्जा और जल-गहन प्रक्रिया है जिसमें खतरनाक रसायनों और विषाक्त धातुओं का उपयोग होता है, जिससे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय जोखिम पैदा होते हैं।

हालांकि सरकार की पहल एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इन मूलभूत चुनौतियों का समाधान भारत के लिए एक प्रतिस्पर्धी और आत्मनिर्भर सेमीकंडक्टर विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के सफल निर्माण के लिए महत्वपूर्ण होगा।

4. भारतीय सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम को सुदृढ़ करने के लिए क्या प्रमुख कदम उठाए गए हैं?

भारत आयात पर निर्भरता कम करने, डिजिटल अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने, राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाने और तकनीकी आत्मनिर्भरता हासिल करने के उद्देश्य से सेमीकंडक्टर नवाचार और विनिर्माण के वैश्विक केंद्र के रूप में स्वयं को सक्रिय रूप से स्थापित कर रहा है।

  • भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM): दिसंबर 2021 में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तहत ₹76,000 करोड़ के परिव्यय के साथ शुरू किया गया, जिसमें निम्नलिखित योजनाएँ शामिल हैं-
    • सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले फ़ैब्स योजना: उन्नत नोड्स (28 NM) और डिस्प्ले तकनीकों (AMOLED, LCD) वाले फ़ैब्स स्थापित करने के लिए 50% तक वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • कंपाउंड सेमीकंडक्टर/ATMP-OSAT योजना: कंपाउंड सेमीकंडक्टर सहित असेंबली, परीक्षण, मार्किंग और पैकेजिंग (ATMP) / आउटसोर्स सेमीकंडक्टर असेंबली और परीक्षण (OSAT) इकाइयों के लिए 50% तक पूंजीगत सहायता प्रदान करती है।
    • डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना: पात्र डिज़ाइन स्टार्ट-अप/MSME के ​​लिए प्रति कंपनी ₹15 करोड़ तक का प्रोत्साहन।
  • प्रमुख निवेश और सुविधाओं की स्थापना:
    • टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स + PSMC (ताइवान): गुजरात के धोलेरा में पहला स्वदेशी कारखाना
    • माइक्रोन (अमेरिका): गुजरात के साणंद में सुविधा।
    • टाटा सेमीकंडक्टर असेंबली एंड टेस्ट (TSAT): मोरीगांव, असम (लक्ष्य: 48 मिलियन चिप्स/दिन)।
    • CG पावर + रेनेसास (जापान) + स्टार्स माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स (थाईलैंड): गुजरात के साणंद में OSAT इकाई।
    • सिकसेम प्राइवेट लिमिटेड, ओडिशा: भारत का पहला वाणिज्यिक सिलिकॉन कार्बाइड (SiC)-आधारित कंपाउंड फैब संयंत्र (EVs, रक्षा, रेलवे के लिए महत्वपूर्ण)।
  • प्रतिभा विकास और डिज़ाइन पारिस्थितिकी तंत्र:
    • प्रतिभा पाइपलाइन निर्माण: सेमीकंडक्टर/इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण में 85,000 इंजीनियरों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य।
    • पाठ्यक्रम उन्नयनVLSI डिज़ाइन और IC विनिर्माण के लिए AICTE-अनुमोदित पाठ्यक्रम।
    • रणनीतिक साझेदारियाँ: लैम रिसर्च (60,000 इंजीनियरों को प्रशिक्षण), माइक्रोन-IIT रुड़की, IBM और पर्ड्यू यूनिवर्सिटी  (Purdue University) जैसे वैश्विक अग्रणियों के साथ सहयोग।
    • स्वदेशी IP हाइलाइट: विक्रम 32-बिट प्रोसेसर (अंतरिक्ष मिशनों के लिए डिज़ाइन किया गया) का प्रदर्शन।
  • सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम (उद्योग मंच): सेमी (सेमीकंडक्टर इक्विपमेंट एंड मैटेरियल्स इंटरनेशनल) के सहयोग से एक प्रमुख कार्यक्रम, जो उद्योग जगत के अग्रणी व्यक्तियों, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और स्टार्ट-अप्स के लिए एक मंच के रूप में कार्य करेगा।
    • वैश्विक पहुँच: चौथे संस्करण (सितंबर 2025, नई दिल्ली) में जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और मलेशिया जैसे देशों के 300 से अधिक ग्लोबल एक्जिबिटर और पवेलियन शामिल हुए।

5. भारत अपनी सेमीकंडक्टर आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए और क्या कर सकता है?

भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर पावरहाउस बनने के लिए बहुआयामी और रणनीतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, साथ ही इसमें लक्षित नीतिगत हस्तक्षेप, इकोसिस्टम विकास और दीर्घकालिक दृष्टिकोण का संयोजन भी शामिल है।

  • "फूल-स्टैक" इकोसिस्टम विकास पर ध्यान केंद्रित करना: केवल एडवांस-नोड निर्माण संयंत्रों (फैब्स) के लिए प्रयास करने के बजाय, भारत को एक संपूर्ण सेमीकंडक्टर मूल्य श्रृंखला का निर्माण करना चाहिए। इसमें शामिल हैं:
    • डिज़ाइन और अनुसंधान एवं विकास: सरकार को विशेष चिप्स, जैसे कि AI, 5G और ऑटोमोटिव क्षेत्रों के लिए, (जिनकी बौद्धिक संपदा भारत में निहित हो) स्वदेशी डिज़ाइन को बढ़ावा देकर सेमीकंडक्टर डिज़ाइन में मजबूत आधार का लाभ उठाना चाहिए।
    • कंपाउंड सेमीकंडक्टर: सिलिकॉन कार्बाइड (SiC) और गैलियम नाइट्राइड (GaN) जैसे विशिष्ट, उच्च-विकास वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना, जो इलेक्ट्रिक वाहनों, पावर इलेक्ट्रॉनिक्स और उच्च-आवृत्ति अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक हैं।
    • सहायक उद्योग: महत्वपूर्ण घटकों और सामग्रियों, जैसे कि विशेष रसायन, उच्च-शुद्धता वाली गैसें और सबस्ट्रेट्स के स्थानीय निर्माण को प्रोत्साहित करना।
  • नीति और वित्तीय ढाँचे को सुदृढ़ करना
    • दीर्घकालिक और स्थाई प्रोत्साहन: सरकार को एक पूर्वानुमानित और प्रतिस्पर्धी प्रोत्साहन ढाँचा प्रदान करना चाहिए जो अन्य देशों को टक्कर दे सके।
      • इस पूँजी-गहन और दीर्घकालिक विकास अवधि (Gestation) वाले उद्योग में निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिए ISM जैसी मौजूदा योजनाओं को लंबे समय तक जारी रखा जा सकता है।
    • विदेशी सहयोग को सुगम बनाना: प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और कौशल विकास को सक्षम बनाने वाले संयुक्त उद्यमों और साझेदारियों के माध्यम से वैश्विक नेताओं को आकर्षित करने के लिए अमेरिका-भारत iCET (महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी पर पहल) जैसे सहयोगों का उपयोग करना।
    • आयात संबंधित बाधाओं का समाधान करना: महत्वपूर्ण कच्चे माल और उपकरणों के आयात की प्रक्रिया को सरल और सुव्यवस्थित बनाना और स्थानीय निर्माताओं के लिए लागत प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने हेतु उच्च सीमा शुल्क और लाइसेंसिंग आवश्यकताओं जैसे मुद्दों का समाधान करना।
  • एक विश्व स्तरीय टैलेंट पाइपलाइन का निर्माण करना
    • उद्योग-अकादमिक सहयोग को प्रगाढ़ करना: सेमीकंडक्टर निर्माण, प्रक्रिया प्रौद्योगिकी और क्लीनरूम संचालन में विशेष पाठ्यक्रमों को शामिल करने के लिए विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में सुधार करके कौशल अंतराल को समाप्त करना।
    • व्यावहारिक प्रशिक्षण: उदाहरण के लिए, "चिप्स टू स्टार्टअप" (C2S) प्रोग्राम को व्यावहारिक प्रशिक्षण और परीक्षण प्रयोगशालाओं, इलेक्ट्रॉनिक डिज़ाइन ऑटोमेशन (EDA) उपकरणों आदि तक पहुँच प्रदान करके पूरक बनाया जा सकता है।
    • प्रतिभा को बनाए रखना: प्रतिस्पर्धी वेतन प्रदान करके, नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देकर और अनुसंधान एवं विकास के अवसर प्रदान करके एक आकर्षक वातावरण का निर्माण करना।
  • मज़बूत अवसंरचना का विकास करना
    • सुनिश्चित विद्युत और जल: स्थाई, उच्च-गुणवत्ता वाली बिजली और अति-शुद्ध जल की निरंतर आपूर्ति की गारंटी।
    • सेमीकंडक्टर क्लस्टर स्थापित करनाप्लग-एंड-प्ले सुविधाओं वाले विशेष क्लस्टर या ज़ोन बनाएँ जिनमें क्लीन रूम, लॉजिस्टिक्स और उपयोगिताओं सहित सभी आवश्यक अवसंरचना हों।
    • विनियामकीय अनुमोदनों को सुव्यवस्थित करना: सभी आवश्यक सरकारी अनुमोदनों में तेजी लाने और नौकरशाही संबंधी विलंब को कम करने के लिए सिंगल विंडो क्लियरेंस सिस्टम को क्रियान्वयित करना।
  • घरेलू माँग का लाभ उठाएँ
  • सेमीकंडक्टरों के लिए "मेक इन इंडिया" को बढ़ावा देना: ऐसी नीतियों का निर्माण करना जो स्थानीय निर्माताओं को घरेलू कारखानों से चिप्स प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करें, जिससे एक कैप्टिव मार्केट उपलब्ध हो।
  • सरकारी खरीद: मांग बढ़ाने के लिए सरकारी खरीद को एक रणनीतिक उपकरण के रूप में उपयोग करना।

इन क्षेत्रों को व्यवस्थित रूप से संबोधित करके, भारत उपभोक्ता से सेमीकंडक्टर के उत्पादक और निर्यातक के रूप में परिवर्तित हो सकता है, तथा वैश्विक प्रौद्योगिकी मूल्य श्रृंखला में एक विश्वसनीय और महत्वपूर्ण अभिकर्ता के रूप में अपनी वांछित प्रस्थिति को हासिल कर सकता है।

निष्कर्ष

भारत की सेमीकंडक्टर क्रांति एक जटिल लेकिन प्राप्त करने योग्य लक्ष्य है। "फूल-स्टैक" दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करके, प्रतिभाओं को पोषित करके और व्यवसाय-अनुकूल वातावरण निर्मित करके, भारत न केवल अपनी तकनीकी आत्मनिर्भरता सुनिश्चित कर सकता है, बल्कि वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला में एक विश्वसनीय और महत्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में भी अपनी पहचान बना सकता है, जिससे प्रधानमंत्री का विश्व के लिए यह दृष्टिकोण साकार होगा कि "जब मुश्किलें आएँ, तो आप भारत पर दांव लगा सकते हैं"।

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