भारत की ऋण-योग्यता पर फिच रेटिंग्स
फिच रेटिंग्स ने भारत के लिए स्थिर दृष्टिकोण के साथ अपनी BBB- रेटिंग बरकरार रखी है, जिसमें देश के वित्तीय परिदृश्य में ताकत और चुनौतियों दोनों पर जोर दिया गया है।
मुख्य निष्कर्षों पर एक नजर
- आर्थिक विकास और बाह्य वित्त:
भारत के आर्थिक विकास को "मजबूत" और इसकी बाह्य वित्तीय स्थिति को "ठोस" बताया गया है। - सरकारी वित्त:
इसे "ऋण कमजोरी" माना जा रहा है, क्योंकि अनुमान से कमजोर नॉमिनल GDP वृद्धि के कारण सार्वजनिक ऋण में वृद्धि होने की आशंका है। - GST सुधार:
यद्यपि इनका उद्देश्य विकास को समर्थन देना है, फिर भी ये संभावित रूप से "थोड़े राजस्व-नकारात्मक" हैं।
ऋण और घाटे का दृष्टिकोण
- ऋण-GDP अनुपात: नॉमिनल GDP वृद्धि में गिरावट को देखते हुए, 2024-25 के 80.9% से बढ़कर 2025-26 तक GDP का 81.5% होने की उम्मीद है।
- दीर्घकालिक ऋण न्यूनीकरण लक्ष्य: वित्त वर्ष 2030 तक ऋण में मामूली गिरावट का अनुमान है, जो 78.5% तक रहेगा, जो नॉमिनल GDP वृद्धि दर के 10.5% तक पहुंचने पर निर्भर है।
- राजकोषीय घाटा: इस वित्त वर्ष में वार्षिक राजकोषीय घाटा 40 आधार अंकों की कमी के साथ सकल घरेलू उत्पाद का 4.4% रह जाएगा, लेकिन 2026-27 से इसमें कमी की गति धीमी होने की उम्मीद है।
आर्थिक ताकत
- समष्टि आर्थिक स्थिरता: भारत का विकास रिकॉर्ड और सुधरती राजकोषीय विश्वसनीयता "मजबूत" हो रही है। इस वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 6.5% रहने का अनुमान है, जो BBB औसत 2.5% से अधिक है।
- घरेलू मांग: सार्वजनिक पूंजीगत व्यय और निजी उपभोग के कारण इसके ठोस बने रहने की उम्मीद है। हालांकि, निजी निवेश मध्यम रह सकता है।
प्रमुख जोखिम और चुनौतियाँ
- अमेरिकी टैरिफ जोखिम: भारतीय वस्तुओं पर शुल्क से "मध्यम नकारात्मक जोखिम" उत्पन्न होता है। हालांकि, फिच को उम्मीद है कि बातचीत के माध्यम से इसमें कटौती की जाएगी।
- सुधारों की गति: महत्वपूर्ण सुधार, विशेषकर भूमि और श्रम कानूनों पर, राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण हैं, लेकिन राज्य स्तर पर प्रगति हो सकती है।
- मुद्रास्फीति नियंत्रण: मुद्रास्फीति को कम रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के प्रयासों पर गौर किया जा रहा है। इसके अनुसार 2025-26 में औसत खुदरा मुद्रास्फीति 3.1% रहने की उम्मीद है।