भारत-चीन संबंध
प्रधानमंत्री ने भारत-चीन संबंधों में रणनीतिक स्वायत्तता पर ज़ोर देते हुए सुझाव दिया कि उनके संबंधों को किसी तीसरे देश के नज़रिए से नहीं देखा जाना चाहिए। यह संदेश ऐसे समय में आया है जब दोनों देश 2020 में सीमा तनाव से प्रभावित संबंधों को स्थिर करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं।
प्रमुख चर्चाएँ और समझौते
- सामरिक स्वायत्तता: दोनों नेताओं ने स्वतंत्र कूटनीति के महत्व पर बल दिया तथा इस बात पर प्रकाश डाला कि उनके देशों को भू-राजनीतिक क्षेत्र में उपकरण के बजाय आत्मनिर्भर इकाई के रूप में देखा जाना चाहिए।
- व्यापार और आर्थिक संबंध:
- नेताओं ने वैश्विक व्यापार व्यवधानों, विशेष रूप से अमेरिकी टैरिफ के कारण उत्पन्न व्यवधानों के बीच व्यापार घाटे को कम करने और निवेश संबंधों को बढ़ाने पर चर्चा की।
- भारत ने संयुक्त उद्यमों के माध्यम से गैर-रणनीतिक क्षेत्रों में चीनी निवेश की अनुमति देने की इच्छा व्यक्त की।
- सीमा पर शांति: प्रधानमंत्री ने द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के लिए सीमा पर शांति के महत्व को रेखांकित किया तथा दोनों नेताओं ने सीमा संबंधी मुद्दों के निष्पक्ष और उचित समाधान के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की।
- आतंकवाद का मुकाबला: प्रधानमंत्री ने आतंकवाद के बारे में चिंता जताई तथा चीन से आग्रह किया कि वह इस खतरे से निपटने के लिए भारत के साथ सहयोग करे, विशेषकर चीन-पाकिस्तान सैन्य संबंधों को देखते हुए।
प्रगति और भविष्य की दिशाएँ
- सकारात्मक गति: दोनों नेताओं ने 2024 में कज़ान में अपनी पिछली बैठक के बाद से अपने संबंधों में हुई प्रगति को स्वीकार किया, तथा प्रतिद्वंदी के बजाय विकास भागीदार बने रहने की आवश्यकता पर बल दिया।
- लोगों से लोगों के बीच संबंध: वे सांस्कृतिक आदान-प्रदान को मजबूत करने और कैलाश मानसरोवर यात्रा तथा दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें पुनः शुरू करने के महत्व पर सहमत हुए।