भारत के संगठित विनिर्माण क्षेत्र में ठेका या संविदा रोजगार
ठेका मज़दूर भारत के संगठित विनिर्माण क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं और कुल कार्यबल में उनकी हिस्सेदारी 42% है, जो 1997-98 के बाद से सबसे ज़्यादा है। यह पिछले एक दशक की तुलना में लगभग 8 प्रतिशत अंकों की वृद्धि दर्शाता है।
रुझान और डेटा
- संविदाकरण में वृद्धि हो रही है, जो 1999-2000 के 20% से बढ़कर दोगुनी हो गई है।
- वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण (ASI) के आंकड़े इस प्रवृत्ति को उजागर करते हैं, जिसके नवीनतम आंकड़े 27 अगस्त, 2023 को जारी किए गए हैं।
संविदाकरण के निहितार्थ
- स्थायी कर्मचारियों की तुलना में अनुबंधित कर्मचारियों को अक्सर कम पारिश्रमिक और कम सामाजिक सुरक्षा लाभ मिलते हैं।
- यह प्रवृत्ति आंशिक रूप से केन्द्रीय और राज्य स्तर पर पुराने श्रम कानूनों में ढील के कारण है, जिससे कम्पनियों को स्थायी श्रमिकों के स्थान पर ठेका श्रमिकों को रखने की अनुमति मिल गई है।
- अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के अमित बसोले के अनुसार, कंपनियां कम वेतन पर अधिक श्रमिकों को नियुक्त कर सकती हैं। हालांकि, इससे समग्र क्रय शक्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जैसा कि TISS के बिनो पॉल ने भी कहा है।
आर्थिक परिप्रेक्ष्य
- ठेका श्रम के बढ़ते उपयोग से क्रय शक्ति में कमी के कारण समावेशी विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को सस्ते श्रम पर निर्भरता से हटकर नवाचार और उत्पादकता पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- रोजगार-संबद्ध प्रोत्साहन (ELI) योजना का उद्देश्य नियोक्ताओं को प्रोत्साहन और पहली बार नौकरी करने वाले कर्मचारियों को लाभ प्रदान करके औपचारिक रोजगार का विस्तार करना है।
वैश्विक संदर्भ और तुलना
- वैश्विक स्तर पर, अनुबंध रोजगार में भिन्नता है: अमेरिका में लगभग 10.8%, लैटिन अमेरिका में 10-20% तथा यूरोप में 12.3%
कानूनी और ऐतिहासिक पहलू
- भारत में औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के तहत 100 से अधिक कर्मचारियों वाली कम्पनियों पर बर्खास्तगी के लिए भारी लागत लगाई जाती है, जिससे कम्पनियां छोटी ही बनी रहती हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय में स्पष्ट किया गया है कि ठेका श्रमिक स्वचालित रूप से नियमित रोजगार के लिए पात्र नहीं होते हैं, जिससे ठेका श्रमिकों का उपयोग बढ़ रहा है।