भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार वार्ता और विश्व व्यापार संगठन की भूमिका
दिल्ली में अमेरिकी व्यापार दूत के साथ भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार वार्ता की निर्धारित बहाली, विश्व व्यापार संगठन (WTO) के उस महत्वपूर्ण मोड़ को उजागर करती है जिस पर वह खुद को पाता है। इस संस्था को ऐसे दौर में अपनी प्रासंगिकता साबित करनी होगी, जहाँ बहुपक्षवाद पर लगातार सवाल उठ रहे हैं।
विश्व व्यापार संगठन के सामने चुनौतियाँ
- विकासशील देशों की भूमिका: विश्व व्यापार संगठन शक्तिशाली देशों द्वारा निर्धारित नियमों के विरुद्ध एक सुरक्षा कवच रहा है। नियम-आधारित व्यापारिक व्यवस्था बनाए रखने में विफलता इस भूमिका को प्रभावित कर सकती है।
- भारत की नेतृत्वकारी भूमिका: ऐतिहासिक रूप से 'वैश्विक दक्षिण' की आवाज के रूप में भारत को विश्व व्यापार संगठन को पुनर्जीवित करने के प्रयासों का नेतृत्व करना चाहिए, जिसके लिए स्पष्ट दृष्टिकोण और रणनीतिक लचीलेपन की आवश्यकता है।
आलोचनाएँ और रणनीतिक चिंताएँ
- बहुपक्षीय पहलें:
- भारत ने विकास के लिए निवेश सुविधा (IFD) और MSMEs जैसी पहलों पर आम सहमति को रोक दिया है, जिसके बारे में आलोचकों का तर्क है कि इससे विकासशील देशों के लिए व्यापार विस्तार के अवसर सीमित हो जाते हैं।
- बहुपक्षीय ई-कॉमर्स वार्ता का विरोध इस दृष्टिकोण पर आधारित है कि इससे बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली कमजोर होती है। हालांकि, भारत अधिक लचीला दृष्टिकोण अपना सकता है।
- विवाद निपटान प्रणाली:
- अमेरिकी प्रतिरोध के कारण विश्व व्यापार संगठन का अपीलीय निकाय निष्क्रिय है। हालांकि, कई देश MPIA में शामिल हो गए हैं, लेकिन भारत इससे बाहर रहा है।
- भारत को अपीलीय निकाय के पुनरुद्धार की वकालत करते हुए अंतरिम समाधान के रूप में MPIA में शामिल होने पर विचार करना चाहिए।
- विशेष एवं विभेदक उपचार (S&DT):
- विकसित देश S&DT में संशोधन पर ज़ोर दे रहे हैं और विकासशील देशों द्वारा इसके दुरुपयोग का आरोप लगा रहे हैं। भारत को अपना लचीलापन बनाए रखने के लिए इन वार्ताओं में आगे बढ़ना होगा।
डिजिटल व्यापार और नए विषय
- डिजिटल व्यापार: भारत डिजिटल व्यापार की बदलती प्रकृति का हवाला देते हुए बाध्यकारी प्रतिबद्धताओं का विरोध करता है। यह द्विपक्षीय सौदों में डिजिटल व्यापार अध्यायों को शामिल करता है, जो नियामक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण को दर्शाता है।
- उभरते विषय: ऐतिहासिक रूप से संशयी रहा भारत, व्यापार वार्ताओं में जेंडर, MSMEs और जलवायु जैसे विषयों के प्रति धीरे-धीरे खुलापन दिखा रहा है। विश्व व्यापार संगठन को नए विषयगत कार्यों के लिए वास्तविक विकास सहायता और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सुनिश्चित करना चाहिए।
भारत की रणनीतिक भूमिका
भारत को बाधा डालने वाले के रूप में देखे जाने से बचना चाहिए और बहुपक्षवाद के प्रति सशर्त खुलापन प्रदर्शित करना चाहिए, जिससे उसके हितों की रक्षा होगी और बहुपक्षीय वार्ताएँ जीवित रहेंगी। विश्व व्यापार संगठन (WTO) में मतभेदों को दूर करने और उसे पुनर्जीवित करने के लिए उसका नेतृत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है।