भारत में ई-कचरे का अवलोकन
भारत के तेज़ डिजिटल परिवर्तन ने महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप एक गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य समस्या भी उत्पन्न हुई है: इलेक्ट्रॉनिक कचरा (ई-कचरा)। ई-कचरा दुनिया भर में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला ठोस अपशिष्ट प्रवाह है और भारत में गंभीर चुनौतियाँ पेश करता है, खासकर अनौपचारिक पुनर्चक्रण प्रथाओं के माध्यम से हाशिए पर रहने वाले समुदायों को प्रभावित करता है।
ई-कचरा उत्पादन और प्रबंधन
- भारत ने 2025 में 2.2 मिलियन मीट्रिक टन (MT) ई-कचरा उत्पन्न किया, जो विश्व स्तर पर चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर है।
- यह 2017-18 के 0.71 मिलियन मीट्रिक टन से 150% वृद्धि दर्शाता है तथा अनुमान है कि 2030 तक यह लगभग दोगुना हो जाएगा।
- 60% से अधिक ई-कचरा 65 शहरों से उत्पन्न होता है, जिनमें दिल्ली, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र प्रमुख हैं।
- 322 औपचारिक पुनर्चक्रण इकाइयों के बावजूद, भारत के आधे से अधिक ई-कचरे का प्रसंस्करण अनौपचारिक रूप से किया जाता है, जो अकुशल अपशिष्ट प्रबंधन को उजागर करता है।
अनौपचारिक पुनर्चक्रण प्रथाएँ
अनौपचारिक क्षेत्र, जिसमें कबाड़ीवाले, कबाड़ी विक्रेता और झुग्गी-झोपड़ी वाले वर्कशॉप शामिल हैं, अधिकांश ई-कचरे का प्रबंधन खतरनाक तरीकों से करते हैं।
- प्रक्रियाओं में मैनुअल विघटन, खुली हवा में जलाना, एसिड लीचिंग और अनुचित डंपिंग शामिल हैं।
- इन विधियों से 1,000 से अधिक विषैले पदार्थ निकलते हैं, जैसे- सीसा, कैडमियम, पारा और स्थायी कार्बनिक प्रदूषक।
- सीलमपुर जैसे क्षेत्रों में PM 2.5 का स्तर अक्सर सुरक्षित सीमा से अधिक हो जाता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा होता है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
ई-कचरे के संपर्क और मौजूदा कमजोरियों के बीच संबंध स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को और बढ़ा देता है, जिससे एक सिंडेमिक वातावरण का निर्माण होता है।
- श्वसन संबंधी बीमारियाँ: सूक्ष्म कण पदार्थ गंभीर श्वसन संबंधी समस्याएं पैदा करते हैं, जिससे श्रमिकों पर काफी प्रभाव पड़ता है।
- तंत्रिका संबंधी क्षति: न्यूरोटॉक्सिन के संपर्क में आने से संज्ञानात्मक हानि और विकासात्मक देरी होती है, विशेष रूप से बच्चों में।
- त्वचा और नेत्र संबंधी विकार: बिना सुरक्षा के सीधे संपर्क से चकत्ते, जलन और आंखों में जलन होती है।
- आनुवंशिक और प्रणालीगत प्रभाव: DNA क्षति और ऑक्सीडेटिव तनाव में वृद्धि आम बात है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करती है।
वर्तमान नीतियां और चुनौतियां
- ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2022 का उद्देश्य उत्तरदायित्व में सुधार करना और प्रबंधन को औपचारिक बनाना है, लेकिन इसका कार्यान्वयन कमजोर है।
- 2023-24 में केवल 43% ई-कचरे का ही आधिकारिक रूप से प्रसंस्करण किया गया, जिससे नीति प्रवर्तन में अंतराल का पता चलता है।
- EPR क्रेडिट कीमतों पर कानूनी लड़ाई ने अनुपालन चुनौतियां पैदा कर दी हैं।
प्रस्तावित समाधान
- अनौपचारिक श्रमिकों को बेहतर बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच के साथ विनियमित क्षेत्र में एकीकृत करके उन्हें औपचारिक बनाना।
- डिजिटल ट्रैकिंग, पर्यावरण ऑडिट और सशक्त प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के माध्यम से प्रवर्तन को मजबूत करना।
- चिकित्सा निगरानी का विस्तार करना तथा ई-कचरा हॉटस्पॉट में बच्चों पर ध्यान केंद्रित करना।
- स्थानीय पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों और विकेन्द्रीकृत उपचार केन्द्रों में नवाचार को बढ़ावा देना।
- जन जागरूकता बढ़ाएं और स्कूलों में ई-कचरा शिक्षा को एकीकृत करना।
निष्कर्ष
भारत एक ऐसे नाज़ुक मोड़ पर है जहाँ तकनीक को स्वास्थ्य और पर्यावरणीय क्षरण की कीमत पर नहीं अपनाया जाना चाहिए। इस ज़हरीले संकट को चुपचाप सामान्य होने से रोकने के लिए व्यवस्थागत सुधार ज़रूरी है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि तकनीक मानव गरिमा और स्वास्थ्य को बेहतर बनाए।