भारत में मानसून वर्षा
इस वर्ष भारत में सामान्य स्तर की तुलना में मानसूनी वर्षा में 8% की वृद्धि हुई, जो सतही तौर पर लाभदायक प्रतीत होती है।
कृषि प्रभाव
- खरीफ फसलों के अंतर्गत बोया गया क्षेत्र लगभग 15 लाख हेक्टेयर बढ़कर मध्य सितम्बर तक कुल 1,110 लाख हेक्टेयर हो गया।
- चावल की खेती में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो पिछले वर्ष के 430 लाख हेक्टेयर की तुलना में 8.45 लाख हेक्टेयर बढ़कर 438 लाख हेक्टेयर से अधिक हो गई।
- अन्य फसलों जैसे दालें, मोटे अनाज और तिलहन में भी इसी प्रकार की वृद्धि देखी गई।
पानी की उपलब्धता
भारत के मुख्य जलाशयों में कुल उपलब्ध जल क्षमता पिछले वर्ष के 157.8 बीसीएम से बढ़कर 163 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) हो गई।
अत्यधिक वर्षा के प्रतिकूल प्रभाव
- हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पंजाब के जिलों में मूसलाधार बारिश के कारण बाढ़ आ गई तथा नदियों के उफान पर होने के कारण कुछ क्षेत्र अलग-थलग पड़ गए।
- भूस्खलन, शहरी और ग्रामीण बाढ़, भूमि कटाव और गाद जमने के कारण काफी क्षति हुई।
क्षेत्रीय वर्षा विविधताएँ
- उत्तर-पश्चिम भारत में मौसमी वर्षा औसत से 27% अधिक रही, मध्य भारत में 15% और दक्षिण प्रायद्वीप में 10% अधिक रही।
मौसम संबंधी घटनाओं की गलत व्याख्या
- 'बादल फटने' की कई रिपोर्टें आईं, हालांकि मौसम विज्ञान की दृष्टि से तमिलनाडु में केवल एक घटना ही मापदंड पर खरी उतरी।
- गलत लेबलिंग से सार्वजनिक धारणा प्रभावित होती है, तथा रोके जा सकने वाली घटनाओं के बजाय दुर्लभ, अप्रत्याशित घटनाओं का संकेत मिलता है।
पूर्वानुमान और सरकारी जिम्मेदारी
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने सामान्य से अधिक वर्षा का पूर्वानुमान लगाया है, फिर भी अत्यधिक वर्षा की घटनाओं के लिए तैयारी के बजाय पूर्वानुमान की सटीकता पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
अत्यधिक वर्षा को महज प्राकृतिक उदारता के रूप में देखने के स्थान पर बुनियादी ढांचे की कमियों को दूर करने और आपदा तैयारी को बढ़ाने की आवश्यकता है।
इस दृष्टिकोण को अपनाने में विफलता को सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में सरकारी लापरवाही के रूप में देखा जा सकता है।