उत्तर भारत में मानसून का प्रभाव
भारी वर्षा ने पूरे उत्तर भारत में भारी तबाही मचाई है, जिससे कई क्षेत्र गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं।
प्रभावित क्षेत्र
- हिमाचल प्रदेश: कई जिले अलग-थलग पड़ गए हैं।
- जम्मू-कश्मीर: 40 से अधिक लोगों की मौत की खबर है; श्रीनगर और अनंतनाग में उफनती नदियां बाढ़ के निशान को पार कर गईं।
- पंजाब: पूरे गांव जलमग्न हो गए और कृषि भूमि नष्ट हो गई।
- दिल्ली: भारी बारिश के साथ यमुना का जलस्तर बढ़ा है।
अनियमित मानसून के परिणाम
- मानसून की अनिश्चितता बढ़ती जा रही है, तीव्र वर्षा के कारण तेजी से स्थानीय कटाव हो रहा है और पर्वतीय ढलान अस्थिर हो रहे हैं।
- इससे दूरस्थ बस्तियों के लिए जोखिम बढ़ गया और प्रतिक्रियात्मक उपायों के बजाय सक्रिय रणनीतियों की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है।
- अनियमित मानसून पैटर्न को "अभूतपूर्व" नहीं कहा जाना चाहिए, क्योंकि ये सबक से ध्यान भटकाते हैं।
चुनौतियाँ और सिफारिशें
- हिमालयी राज्यों में, ढलान-सुरक्षित इंजीनियरिंग के बिना वन-कटाई और सड़क-चौड़ीकरण से भूस्खलन का खतरा बढ़ रहा है।
- जलग्रहण क्षेत्रों की सिकुड़ती बफरिंग क्षमता के कारण ढलानों के टूटने का खतरा बढ़ जाता है तथा बांधों और नदियों में गाद जमा होने के कारण बाढ़ का भार और भी बढ़ जाता है।
- आपदाओं के बावजूद, पूर्व चेतावनी और निकासी प्रणालियाँ अपर्याप्त बनी हुई हैं।
- प्रभावी राहत प्रयासों की आवश्यकता है, लेकिन टिकाऊ बुनियादी ढांचे, भूस्खलन शमन और पूर्व चेतावनी प्रणालियों का विकास भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
भविष्य में होने वाली आपदाओं को न्यूनतम करने के लिए, आपदा के बाद की सहनशीलता से हटकर, कमजोरियों को व्यवस्थित रूप से कम करने पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।