जातिगत अपराध मामले में अग्रिम जमानत पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
पृष्ठभूमि
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने किरण बनाम राजकुमार जीवराज जैन से जुड़े जातिगत अपराध मामले में अग्रिम जमानत देने वाले बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय के निष्कर्ष
- एससी/एसटी अधिनियम की धारा 18: पीड़ितों की सुरक्षा और प्रभावी अभियोजन सुनिश्चित करने के लिए अग्रिम जमानत पर रोक लगाती है।
- अपने निर्णय के समर्थन में राज्य मध्य प्रदेश बनाम राम कृष्ण बालोठिया (1995) जैसे मामलों का संदर्भ दिया गया।
- जाति-आधारित हमला और चुनावी दबाव अधिनियम के अंतर्गत अपराध के दायरे में आते हैं, जिससे अग्रिम जमानत का प्रावधान समाप्त हो जाता है।
- न्यायालय ने जमानत पर विचार के दौरान "मिनी-ट्रायल" से बचने पर जोर दिया।
- सार्वजनिक अपमान और हमले धारा 3(1)(R) के अंतर्गत आते हैं, जबकि चुनावी प्रतिशोध धारा 3(1)(O) के अंतर्गत आता है।
आशय
- एससी/एसटी अधिनियम द्वारा प्रदत्त मूलभूत सुरक्षा को सुदृढ़ करता है।
- "प्रथम दृष्टया परीक्षण" के सख्त अनुप्रयोग को सुनिश्चित करके विधायी मंशा को कमजोर होने से रोका जाता है।
- चुनावी न्याय और सामाजिक समानता के व्यापक निहितार्थों पर प्रकाश डाला गया।
- हाशिए पर पड़े समुदायों की सुरक्षा में कानून के शासन की आवश्यक प्रकृति पर जोर दिया गया।
सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय कमजोर समुदायों को डराने-धमकाने से रोकने और न्याय सुनिश्चित करने में एससी/एसटी अधिनियम के महत्व को रेखांकित करता है।