AI अपनाना और बाजार पर प्रभाव
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को अपनाने की तेज़ गति इसके परिवर्तनकारी प्रभाव को उजागर करती है। उल्लेखनीय है कि चैटGPT ने दुनिया भर में केवल पाँच दिनों में 10 लाख उपयोगकर्ताओं तक पहुँच बनाई, जबकि टेलीफोनी और इंटरनेट जैसी पिछली तकनीकों को ऐसा करने में वर्षों या दशकों का समय लगा था।
AI प्रौद्योगिकी में प्रगति
- AI का अस्तित्व 50 वर्षों से अधिक समय से है, लेकिन हाल की प्रगति ने इसके विकास को गति दी है।
- प्रमुख प्रगतियों में तेज चिप्स, बेहतर एल्गोरिदम, सस्ता भंडारण और प्रचुर प्रशिक्षण डेटा शामिल हैं।
कॉर्पोरेट रणनीतियाँ और कानूनी चुनौतियाँ
एयरटेल जैसी कंपनियों ने AI तकनीक का लाभ उठाने के लिए रणनीतिक साझेदारियाँ की हैं। पेरप्लेक्सिटी के साथ एयरटेल की साझेदारी ग्राहकों को उन्नत AI मॉडल तक पहुँच प्रदान करती है, जिससे पेरप्लेक्सिटी का दायरा और उपयोगकर्ता डेटा तक पहुँच बढ़ती है।
- ऐसी साझेदारियां अनन्य होती हैं और इससे प्रतिस्पर्धा को लेकर चिंताएं पैदा होती हैं।
- रिलायंस जियो और ओपनAI भारत में चैटGPT के लिए सस्ती सदस्यता योजनाएं पेश करने के लिए इसी तरह की साझेदारी की संभावना तलाश रहे हैं।
प्रतिस्पर्धा संबंधी चिंताएँ और नियामक कार्रवाइयाँ
डिजिटल बाज़ारों में विशेष सौदे नेटवर्क प्रभावों के कारण प्रतिस्पर्धा के जोखिम पैदा करते हैं। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग पहले भी ऐप्स को पहले से इंस्टॉल करने जैसी अनुचित प्रथाओं की निंदा कर चुका है।
- ऐतिहासिक मामलों में माइक्रोसॉफ्ट के बंडलिंग मुद्दे और फेसबुक की फ्री बेसिक्स पहल शामिल हैं, जिसके कारण भारत में नेट न्यूट्रैलिटी विनियमन लागू हुए।
- एयरटेल-परप्लेक्सिटी साझेदारी से एक 'चारदीवारी वाला पारिस्थितिकी तंत्र' निर्मित होने का खतरा है, जो प्रतिस्पर्धा को सीमित कर देगा।
सक्रिय विनियमन की आवश्यकता
एक नई रिपोर्ट तकनीकी 'गेटकीपरों' और बंडलिंग जैसी प्रथाओं से निपटने के लिए सक्रिय विनियमन का आग्रह करती है। बड़ी टेक कंपनियाँ प्रतिस्पर्धा पर दीर्घकालिक प्रभावों के डर से विनियमन, विशेष रूप से पूर्व-निर्धारित उपायों का विरोध करती हैं।
- ओपनAI जैसी कम्पनियों से प्राप्त आधारभूत LLM पर पेरप्लेक्सिटी की निर्भरता, इसके विकास को बिग टेक से जोड़ती है।
- प्रमुख तकनीकी नेताओं द्वारा पेरप्लेक्सिटी में निवेश करने से यह बिग टेक के लिए एक सच्चे प्रतिस्पर्धी के रूप में उभरने की संभावना कम हो जाती है।
निष्कर्ष
बाज़ार अधिकारियों को पारदर्शिता की माँग करनी चाहिए, साझेदारियों का कड़ाई से मूल्यांकन करना चाहिए और प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं के प्रति सतर्क रहना चाहिए। 'मुफ़्त' पहुँच का आकर्षण भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था में दीर्घकालिक प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ता विकल्प के निहितार्थों पर हावी नहीं होना चाहिए।
नोट: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं और जरूरी नहीं कि वे बिजनेस स्टैंडर्ड के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों।