भारत में रोगी सुरक्षा: चुनौतियां और पहल
विश्व स्तर पर, रोगी सुरक्षा एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है, क्योंकि अस्पताल और बाह्य रोगी देखभाल, दोनों के दौरान गंभीर नुकसान हो रहा है। भारत में, यह समस्या पुरानी बीमारियों के प्रबंधन की ओर रुझान के कारण और भी गंभीर हो गई है, क्योंकि इन बीमारियों के लिए बार-बार और जटिल उपचार की आवश्यकता होती है, जिससे सुरक्षा चूक का जोखिम बढ़ जाता है।
रोगी सुरक्षा में मौजूद चुनौतियाँ
- वैश्विक स्तर पर, अस्पताल में देखभाल के दौरान 10 में से 1 मरीज को क्षति का अनुभव होता है, तथा बाह्य रोगी देखभाल के मामले में यह आंकड़ा बढ़कर 10 में से 4 हो जाता है।
- कैंसर और मधुमेह जैसी दीर्घकालिक बीमारियों के लिए दीर्घकालिक देखभाल की आवश्यकता होती है, जिससे सुरक्षा जोखिम और भी बढ़ जाता है।
- चिकित्सा संबंधी नुकसान अक्सर तीव्र देखभाल में विशेषज्ञताओं के बीच खराब समन्वय के कारण उत्पन्न होता है।
- आम रोगी सुरक्षा संबंधी मुद्दों में अस्पताल में होने वाले संक्रमण, अनुचित नुस्खे और देरी से निदान शामिल हैं।
असुरक्षित देखभाल में योगदान देने वाले कारक
- स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को अत्यधिक दबाव का सामना करना पड़ता है, जिसमें स्टाफ की कमी और लंबी शिफ्ट अवधि शामिल हैं, जिसके कारण त्रुटियां होती हैं।
- यह अंतर अत्यधिक बोझ से दबे प्रदाताओं और अज्ञानी, निष्क्रिय रोगियों के कारण मौजूद है।
रोगी सुरक्षा बढ़ाने के वर्तमान प्रयास
- राष्ट्रीय रोगी सुरक्षा कार्यान्वयन ढांचा (2018-2025) एक व्यापक रोडमैप प्रदान करता है।
- सोसाइटी ऑफ फार्माकोविजिलेंस जैसी व्यावसायिक संस्थाएं प्रतिकूल दवा प्रतिक्रियाओं की निगरानी करती हैं।
- एनएबीएच ने रोगी सुरक्षा के लिए उच्च मानक निर्धारित किए हैं, हालांकि मान्यता 5% से भी कम अस्पतालों तक सीमित है।
नागरिक समाज और अन्य हितधारकों की भूमिका
- रोगी सुरक्षा एवं पहुंच पहल फाउंडेशन जैसे संगठन विनियामक स्पष्टता पर काम करते हैं।
- सुरक्षा को बढ़ावा देने में मीडिया, शैक्षणिक संस्थानों और प्रौद्योगिकी नवप्रवर्तकों की भूमिका है।
वैश्विक और राष्ट्रीय ढांचे
- विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक रोगी सुरक्षा कार्य योजना स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में सुरक्षा को एकीकृत करने की वकालत करती है।
- रोगी सलाहकार परिषदें (PAC) सुरक्षा और विश्वास बढ़ाने में प्रभावी हैं।
कार्यवाई के लिए बुलावा
- भारत को 2025 तक राष्ट्रीय रोगी सुरक्षा कार्यान्वयन फ्रेमवर्क के उद्देश्यों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- अस्पतालों को मान्यता प्राप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए तथा बेहतर रोगी सहभागिता के लिए पीएसी को अपनाना चाहिए।
- इस वर्ष नवजात शिशुओं और बच्चों की सुरक्षित देखभाल सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया है।
सरकारों, अस्पतालों, मरीजों और नागरिक समाज के समन्वित प्रयासों से रोगी सुरक्षा एक वास्तविकता बन सकती है, जिससे भारत में सुरक्षित स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित हो सकेगी।