परिचय
भारत, जो कि विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है, 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने और 2030 तक अपनी 50% बिजली ज़रूरतों को गैर-जीवाश्म स्रोतों से पूरा करने के लिए अपनी ऊर्जा परिवर्तन प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा है। वर्तमान में, भारत का तेल आयात भू-राजनीति से गहराई से जुड़ा हुआ है; भारत के तेल आयात का लगभग 60% हिस्सा मध्य पूर्व से आता है। इसलिए, उस क्षेत्र में कोई भी राजनीतिक या सुरक्षा संबंधी अस्थिरता भारत के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन जाती है। साथ ही, भारत यह भी समझता है कि बढ़ते वैश्विक तापमान और जलवायु जोखिम एक चुनौती और अवसर दोनों हैं। इसी कारण, भारत नई और स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्रों में तेज़ी से प्रगति कर रहा है ताकि सतत (Sustainable) विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
1. ऊर्जा सुरक्षा से हम क्या समझते हैं?
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, ऊर्जा सुरक्षा का अर्थ है — ऊर्जा स्रोतों की निरंतर और बिना रुकावट उपलब्धता, वह भी सस्ती कीमत पर। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी नागरिकों को भरोसेमंद, किफायती और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से ऊर्जा की पहुँच मिल सके।

1.1 ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित करने वाले प्राथमिक कारक कौन-से हैं?
ऊर्जा सुरक्षा कई आपस में जुड़े घरेलू और वैश्विक कारकों पर निर्भर करती है। इनमें शामिल हैं:
- भौतिक कारक: किसी क्षेत्र की भूगर्भीय संरचना यह तय करती है कि वहाँ तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन उपलब्ध होंगे या नहीं। जिन क्षेत्रों में अवसादी चट्टानें (Sedimentary rocks) अधिक होती हैं, वहाँ जीवाश्म ईंधन मिलने की संभावना अधिक होती है।
- उदाहरण: मध्य पूर्व क्षेत्र में सऊदी अरब, इराक और ईरान जैसे देशों में विशाल तेल भंडार पाए जाते हैं।
- प्रौद्योगिकीय प्रगति: उत्खनन तकनीकों में नवाचार, नवीकरणीय ऊर्जा तकनीकें, जैसे- बैटरी भंडारण और स्मार्ट ग्रिड्स किसी देश की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत बनाती हैं।
- उदाहरण: संयुक्त राज्य अमेरिका शेल जैसी गहरी चट्टानों से तेल और प्राकृतिक गैस निकालने के लिए फ्रैकिंग तकनीक का उपयोग करता है।
- आयात पर निर्भरता और भू-राजनीतिक जोखिम: आयात पर अत्यधिक निर्भरता आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और कीमतों में वृद्धि का कारण बन सकती है, जिसका देश की ऊर्जा सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है।
- उदाहरण: रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक स्तर पर LNG की कीमतों में उछाल आया।
- बुनियादी ढाँचा: पर्याप्त भंडारण क्षमता, रिफाइनिंग सुविधा, और ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क नेटवर्क किसी देश की ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला की मजबूती तय करते हैं।
- उदाहरण: भारत में प्राकृतिक गैस पाइपलाइन नेटवर्क सीमित होने से कई क्षेत्रों में ऊर्जा की पहुँच प्रतिबंधित है। बंदरगाहों और ग्रिड संबंधी बाधाओं के कारण संकट के समय ऊर्जा वितरण प्रभावित हो सकता है।
- आर्थिक और नीतिगत कारक: मूल्य निर्धारण तंत्र, सब्सिडी और विनियामकीय ढाँचे, निवेश और दक्षता को प्रभावित करते हैं।
- उदाहरण: डीजल के दामों पर से सरकारी नियंत्रण हटाने से दक्षता बढ़ी और सरकार का राजकोषीय बोझ घटा। भारत की 2070 तक नेट ज़ीरो नीति जैसी दीर्घकालिक योजनाएँ सतत ऊर्जा सुरक्षा को दिशा देती हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग और रणनीतिक भंडार किसी देश की लचीलापन (resilience) बढ़ाते हैं।
- उदाहरण: भारत का इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA) और IEA के स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिज़र्व समझौते में सहयोग भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत बनाते हैं।
2. किसी राष्ट्र के विकास के लिए ऊर्जा सुरक्षा का क्या महत्व है?
ऊर्जा सुरक्षा आर्थिक विकास, सामाजिक कल्याण, और राष्ट्रीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए बहुत आवश्यक है, क्योंकि यह ऊर्जा की विश्वसनीयता, किफ़ायत, और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करती है।
- आर्थिक विकास: उद्योगों, परिवहन और बुनियादी ढाँचे को ऊर्जा प्रदान करने के लिए विश्वसनीय और किफायती ऊर्जा आवश्यक है।
- उदाहरण: भारत का आर्थिक विकास विनिर्माण और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे ऊर्जा-गहन क्षेत्रों पर अत्यधिक निर्भर है।
- रक्षा क्षमताएँ: किसी भी देश की रक्षा क्षमताओं के लिए एक विश्वसनीय और सुरक्षित ऊर्जा आपूर्ति आवश्यक है। ऊर्जा आपूर्ति में बाधा आने पर सैन्य अभियानों और उपकरणों पर असर पड़ सकता है।
- उदाहरण: रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस ने यूक्रेन की कई ऊर्जा सुविधाओं पर हमला किया है।
- सामाजिक कल्याण: सस्ती ऊर्जा की उपलब्धता गरीबी घटाने, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, और शिक्षा के प्रसार में मदद करती है।
- उदाहरण: भारत की सौभाग्य योजना (Saubhagya Scheme) जैसे ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रमों ने लोगों के जीवन स्तर और उत्पादकता को बढ़ाया है।
- पर्यावरणीय स्थिरता: विविध और टिकाऊ ऊर्जा स्रोतों (जैसे सौर, पवन आदि) को अपनाने से ऊर्जा खपत के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है तथा जीवन स्तर में सुधार लाया जा सकता है।
- उदाहरण: नवीकरणीय ऊर्जा भारत के भारी उद्योगों की मौजूदा ऊर्जा खपत का लगभग 11% हिस्सा डीकार्बोनाइज़ कर सकती है।
- राजकोषीय स्थिरता: जीवाश्म ईंधनों के आयात बिल में कमी से चालू खाता संतुलन और वित्तीय स्थिरता में सुधार होता है।
- उदाहरण: 31 मार्च, 2025 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में, भारत ने कच्चे तेल के आयात पर 242.4 बिलियन डॉलर खर्च किए।
बॉक्स 2.1: भारत की ऊर्जा सुरक्षा में खाड़ी क्षेत्र का महत्वऊर्जा सुरक्षा आज भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख उद्देश्य बन गई है। इसका कारण बढ़ती ऊर्जा जरूरतें, वैश्विक अनिश्चितताएँ और तेज आर्थिक विकास है। 1980 के दशक से ही खाड़ी देश भारत के प्रमुख पेट्रोलियम आपूर्तिकर्ता रहे हैं और भारत की ऊर्जा सुरक्षा व्यवस्था में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
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3. ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए गए हैं?
भारत की ऊर्जा सुरक्षा उसके आर्थिक विकास और सतत विकास के लक्ष्यों का एक महत्वपूर्ण घटक है। सरकार ने नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने, ग्रिड स्थिरता बढ़ाने और कार्बन उत्सर्जन कम करने आदि के लिए विभिन्न पहल शुरू की हैं।
नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार | |
राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, 2023 |
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सौर ऊर्जा पहल |
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केंद्रीकृत डेटा संग्रह और समन्वय (CCDC) पवन पहल, 2020 |
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अवसंरचना | |
रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (SPR) कार्यक्रम |
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LNG टर्मिनल |
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ऊर्जा दक्षता | |
परफॉर्म, अचीव, ट्रेड (PAT) योजना |
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इलेक्ट्रिक वाहन अपनाना |
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अंतर्राष्ट्रीय सहयोग | |
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) |
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क्वाड स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला विविधीकरण कार्यक्रम |
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ग्रीन ग्रिड्स पहल - वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (GGI-OSOWOG) |
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4. ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में भारत के सामने कौन-सी प्रमुख बाधाएँ हैं?
ऊर्जा भारत की आर्थिक प्रगति की रीढ़ है, जो उद्योगों और बुनियादी ढाँचे को आकार दे रही है और महत्वपूर्ण बदलावों से गुज़र रही है। हालाँकि, चुनौती केवल बढ़ती ऊर्जा माँग को पूरा करने में ही नहीं, बल्कि इसे स्थायी, कुशल और समतापूर्ण तरीके से पूरा करने में भी है।

- आयात निर्भरता (ग्राफ़ देखें): भारत अपने कच्चे तेल का लगभग 85% और प्राकृतिक गैस का 50% से अधिक आयात करता है। इस निर्भरता के कारण देश को वैश्विक मूल्य अस्थिरता और भू-राजनीतिक जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
- उदाहरण के लिए, कोविड-19 महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध, गाजा संकट और रूसी तेल निर्यात पर अमेरिकी प्रतिबंध जैसे व्यवधान, वैश्विक ईंधन की कीमतों और भारत के आयात बिल को प्रभावित कर रहे हैं।
- बुनियादी ढाँचे की सीमाएँ: भारत का पावर ग्रिड अकुशलता से ग्रस्त है, जिसमें उच्च पारेषण और वितरण घाटा, और अस्थिर प्रकृति के कारण नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण शामिल है। इसके अलावा, तेल, प्राकृतिक गैस आदि के भंडारण की सीमित क्षमता संकट के समय आपूर्ति की विश्वसनीयता को बाधित करती है।
- उदाहरण के लिए, एसपीआर भण्डारण की कुल क्षमता 5.33 एमएमटी कच्चे तेल की है, जो लगभग 9.5 दिनों की राष्ट्रीय मांग को पूरा कर सकती है।
- नवीकरणीय ऊर्जा की ओर धीमा परिवर्तन: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए उच्च प्रारंभिक लागत, भूमि की आवश्यकता के कारण विवाद और देरी होती है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निजी और सार्वजनिक निवेश हतोत्साहित होता है।
- वर्तमान में, लगभग 200 गीगावाट क्षमता प्रचालन में है, 90 गीगावाट क्षमता निर्माणाधीन है तथा 44 गीगावाट क्षमता विकास के चरण में है।
- जलवायु प्रतिबद्धताएं बनाम विकास आवश्यकताएं: बढ़ती ऊर्जा मांग, औद्योगिक विकास के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता, भारत के 2070 तक नेट-ज़ीरो के लक्ष्य के साथ टकराव पैदा करती है।
- उदाहरण के लिए भारत में कुल ऊर्जा मांग 2035 तक लगभग 35% बढ़ जाएगी।
- 2035 तक उद्योग में कोयले की खपत 50% बढ़ जाएगी (आईईए)।
- कुल तकनीकी और वाणिज्यिक (एटीएंडसी) घाटा: डिस्कॉम को चोरी, बिलिंग त्रुटियों और प्रभावी मीटरिंग की कमी के कारण एटीएंडसी घाटा (2022-23 में लगभग 15.41%) का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा, उच्च एटीएंडसी घाटे से उपयोगिता कंपनियों के राजस्व में कमी आती है, जिससे बुनियादी ढांचे में निवेश करने और सेवा वितरण में सुधार करने की उनकी क्षमता कम हो जाती है।

- कोयले पर निर्भरता: कोयला भारत का प्राथमिक ऊर्जा स्रोत बना हुआ है, खासकर बिजली और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए। इसके अलावा, घरेलू कोयले (निम्न-श्रेणी) के उत्पादन में देरी और अकुशलता के कारण आयात पर निर्भरता बढ़ रही है।
- उदाहरण के लिए, 2023-24 में, देश की कुल प्राथमिक ऊर्जा ज़रूरतों का 61% कोयले से पूरा किया जाएगा। भारत के लिए कोयले की प्रासंगिकता के कारण इस प्रकार हैं:
- कम ऊर्जा घनत्व: भारत में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत 27.3 गीगाजूल (GJ) है, जबकि 2023 में चीन में यह 120 GJ और अमेरिका में 277.3 GJ होगी।
- गैर-कोयला ऊर्जा स्रोतों में रुकावट संबंधी समस्याएं: इससे ऊर्जा ग्रिड स्थिरता के लिए खतरा पैदा होता है।
- कोयला उत्पादन में वृद्धि: वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का कोयला उत्पादन 1047.57 मीट्रिक टन तक पहुंच गया है।
- रोजगार: यह क्षेत्र कोल इंडिया लिमिटेड में 239,000 से अधिक श्रमिकों तथा संविदात्मक एवं परिवहन भूमिकाओं में हजारों लोगों को रोजगार प्रदान करता है।
- सरकारी आय: कोयला क्षेत्र रॉयल्टी, जीएसटी और अन्य शुल्कों के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकारों को प्रतिवर्ष 70,000 करोड़ रुपये से अधिक का योगदान देता है।
- कोयले पर भारी उद्योगों की निर्भरता: भारतीय भारी उद्योगों, जैसे इस्पात, एल्यूमीनियम और सीमेंट उत्पादन के लिए यह महत्वपूर्ण स्रोत है।
- नीतिगत एवं विनियामक चुनौतियाँ: ऊर्जा नीतियाँ प्रायः राज्यों में विखंडित होती हैं, जिसके कारण कार्यान्वयन में अक्षमताएँ उत्पन्न होती हैं।
- भारत का विद्युत एवं ऊर्जा क्षेत्र भारतीय संविधान की समवर्ती सूची (7वीं अनुसूची) के अंतर्गत है, जिसके कारण केन्द्र एवं राज्य दोनों स्तरों पर अनेक नीतियां बनाई गई हैं।
- तकनीकी और कौशल बाधाएं: ऊर्जा-संबंधी अनुसंधान और विकास में सीमित निवेश, नवीकरणीय ऊर्जा, भंडारण और दक्षता में नवाचार को कम करता है।
- इसके अलावा, कार्यबल में नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के प्रबंधन और रखरखाव में पर्याप्त प्रशिक्षण का अभाव है।
- डेटा संग्रहण और प्रबंधन में विसंगतियां: एकीकृत दृष्टिकोण का अभाव, कार्यप्रणाली में भिन्नता, तथा कई हितधारकों (सार्वजनिक और निजी दोनों) की भागीदारी के परिणामस्वरूप खंडित और अविश्वसनीय डेटा प्राप्त होता है, जिससे प्रभावी नीति निर्माण, संसाधन आवंटन और दीर्घकालिक ऊर्जा नियोजन में बाधा उत्पन्न होती है।
बॉक्स 4.1: ऊर्जा सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन का प्रभावबढ़ता हुआ जलवायु परिवर्तन वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा के लिए खतरा बनता जा रहा है, क्योंकि यह ईंधन और संसाधनों की विश्वसनीय आपूर्ति को प्रभावित करता है।
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5. भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कौन से कदम उठाने चाहिए?
भारत की ऊर्जा सुरक्षा इसके आर्थिक विकास, संधारणीयता संबंधी लक्ष्यों और भारत के महत्वाकांक्षी जलवायु और विकास लक्ष्यों का एक महत्वपूर्ण घटक है। इसमें 'विकसित भारत 2047' और 'नेट ज़ीरो 2070' की परिकल्पना भी शामिल है। इसके लिए ऊर्जा क्षेत्रक और इसके विकास की व्यापक समझ आवश्यक है।
- ऊर्जा क्षेत्रक में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना: ऊर्जा परिवहन नेटवर्क तक गैर-भेदभावपूर्ण पहुँच सुनिश्चित करके, राज्य के समन्वय के साथ बिजली और टैरिफ क्षेत्रक में सुधारों को लागू करके, बाज़ार-आधारित मूल्य निर्धारण तथा प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी और क्रॉस-सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाकर।
- ऊर्जा भंडारण: जर्मनी के सफल ऊर्जा भंडारण प्रणाली (ESS) जैसे समाधानों के सहयोग से एक सुदृढ़ ESS प्रणाली का विकास करना।
- इसके अतिरिक्त, भारत चौबीसों घंटे नवीकरणीय ऊर्जा प्रदान करने के लिए सरलीकृत अनुमोदनों और अनुकूल टैरिफ दरों के माध्यम से सौर-पवन-भंडारण हाइब्रिड परियोजनाओं के विकास को प्रोत्साहित कर सकता है।
- ऊर्जा आपूर्ति का विविधीकरण: ऊर्जा आयात पर निर्भरता को कम करने और वैश्विक ऊर्जा कीमतों में उतार-चढ़ाव से उत्पन्न जोखिमों को कम करने के लिए ऊर्जा मिश्रण में विविधीकरण लाना।
- इसके अलावा, सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विस्तार करके जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को कम करना, स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए इथेनॉल, कंप्रेस्ड बायोगैस और प्राकृतिक गैस जैसे वैकल्पिक ईंधन स्रोतों को बढ़ावा देना, और स्थिर एवं विविधीकृत ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए परमाणु ऊर्जा तथा अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं का विकास करना।
- प्रौद्योगिकी एकीकरण: किफायती, विश्वसनीय और संधारणीय बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOMs) को बिजली चोरी से निपटने, लोड प्रबंधन को बेहतर बनाने और परिचालन लागत को कम करने के लिए उन्नत मीटरिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर (AMI), स्वचालित निगरानी और नियंत्रण प्रणालियों, तथा रियल टाइम अपडेट के साथ सुदृढ़ GIS जैसे प्रमुख प्रवर्तकों को अपनाना चाहिए।
- कौशल विकास: राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के माध्यम से विशेष प्रशिक्षण तंत्र को लागू करना, ITI और पॉलिटेक्निक पाठ्यक्रमों में ऊर्जा-विशिष्ट मॉड्यूल (जैसे- सौर तकनीशियन, पवन टरबाइन रखरखाव) को एकीकृत करना तथा अनुसंधान एवं विकास (R&D) से जुड़े प्रशिक्षण के लिए उद्योग तथा शिक्षा जगत के साथ सहयोग को बढ़ावा देना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं तक पहुंचने, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुगम बनाने, नवाचार में तेजी लाने और उभरती ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए मिशन इनोवेशन (MI), IEA के तहत प्रौद्योगिकी सहयोग कार्यक्रमों (TCPs) और अन्य रणनीतिक साझेदारियों जैसे द्विपक्षीय और बहुपक्षीय प्लेटफार्मों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना।
- नीतियों को मजबूत करना: अधिक-से-अधिक क्षेत्रों को शामिल करने के लिए PAT योजना का विस्तार करना और उसमें गहनता लाना, तथा ऊर्जा प्रबंधन प्रणालियों को मजबूत करने के उपायों को बढ़ावा देना, और क्षेत्र-विशिष्ट ऊर्जा दक्षता या निम्न-कार्बन रोडमैप को विकसित करना।
- समग्र योजना: भारत की ऊर्जा मांग भविष्य में भी लगातार बढ़ेगी; सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि ऊर्जा योजना में जल-ऊर्जा अंतर्संबंध के साथ-साथ भविष्य की स्पेस कूलिंग/ तापमान नियंत्रण संबंधी जरूरतों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
ऊर्जा सुरक्षा के लिए भारत की परमाणु ऊर्जा महत्वाकांक्षाएंभारत ने ऊर्जा स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की अपनी व्यापक रणनीति के तहत, 2032 तक अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को 22.5 GW तक बढ़ाने का अल्पकालिक लक्ष्य और 2047 तक 100 GW तक पहुंचाने का दीर्घकालिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। बजट 2025-26 में, भारत सरकार ने एक परमाणु ऊर्जा मिशन शुरू किया और 2033 तक कम-से-कम 5 स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किए गए और चालू लघु मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs) विकसित करने के लिए 20,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। परमाणु ऊर्जा को अपनाने का कारणसंयंत्र के लिए कम भूमि की आवश्यकता: 2022 के वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के एक अध्ययन के अनुसार, परमाणु संयंत्रों में कोयला संयंत्रों की तुलना में प्रति यूनिट विद्युत उत्पादन के लिए 27वें हिस्से के बराबर भूमि की आवश्यकता होती है।
परमाणु ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा के साथ-साथ विश्वसनीय और लचीली ऊर्जा प्रदान करते हुए, भारत के स्वच्छ ऊर्जा मिश्रण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकती है। अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग सुनिश्चित करने के लिए, इसे सामाजिक स्वीकृति, उच्च पूंजी लागत, सीमित घरेलू विनिर्माण और ईंधन आपूर्ति सुरक्षा से संबंधित चुनौतियों को दूर करना होगा। विनियमन को मजबूत करना, निजी निवेश को आकर्षित करना, स्थानीय उद्योग को बढ़ावा देना और थोरियम तथा लघु मॉड्यूलर रिएक्टर प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाना महत्वपूर्ण कदम होगा। इसके अतिरिक्त, परमाणु संयंत्रों को बेहतर सुरक्षा और लचीलापन उपायों के माध्यम से बढ़ते जलवायु जोखिमों के अनुकूल होना चाहिए। |
निष्कर्ष
तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ विश्व के तीसरे सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता के रूप में, भारत 2030 तक ऊर्जा मांग में अपेक्षित 35% की वृद्धि को पूरा करने के साथ-साथ 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने की दोहरी चुनौती का सामना कर रहा है। इसके लिए ऐसे परिवर्तनकारी रणनीतियों की आवश्यकता है जो न्यायसंगत आर्थिक विकास, ऊर्जा सुरक्षा और संधारणीयता को संतुलित करें। भारत का ऊर्जा संक्रमण और विकार्बनिकरण प्रयास न केवल वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के लिए आवश्यक हैं, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और न्यायसंगत सामाजिक प्रभाव को प्रोत्साहित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। स्वच्छ ऊर्जा निवेश को बढ़ावा देकर, भारत हरित रोज़गार का सृजन कर सकता है, ऊर्जा पहुँच का विस्तार कर सकता है और समावेशी विकास को बढ़ावा दे सकता है।
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