भारत में शहरी नगर निगम वित्त
शहरी भारत राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में महत्वपूर्ण योगदान देता है, फिर भी यहाँ की नगर पालिकाएँ देश के 1% से भी कम कर राजस्व का प्रबंधन करती हैं। यह राजकोषीय संरचना भारतीय शहरों को विफल कर चुकी है, जिससे वे अंतर-सरकारी हस्तांतरण, ऋण और योजनाओं पर निर्भर हो गए हैं। आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने की अपेक्षा के बावजूद, नगरपालिकाओं में वित्तीय स्वायत्तता और पूर्वानुमानित राजस्व स्रोतों का अभाव है, जिसका मुख्य कारण कराधान शक्तियों का केंद्रीकरण है।
नगर निगम के राजस्व पर जीएसटी (GST) का प्रभाव
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू होने से शहरों के राजस्व स्रोतों में लगभग 19% की हानि हुई है।
- चुंगी, प्रवेश कर, और स्थानीय अधिभार जैसे पारंपरिक राजस्व स्रोतों को जीएसटी ढाँचे में समाहित कर लिया गया है।
- वादा किए गए प्रतिपूरक तंत्र अक्सर नगरपालिकाओं को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे राज्य और केंद्रीय अनुदानों पर उनकी निर्भरता बढ़ जाती है।
म्यूनिसिपल बांड और विश्वसनीयता से जुड़ी चुनौतियाँ
- ऋण-योग्यता के मूल्यांकन के दोषपूर्ण ढांचे के कारण भारतीय नगरपालिका बांडों की विश्वसनीयता कम है।
- किसी शहर की ऋण-योग्यता का आकलन अक्सर उसके "स्वयं के राजस्व" प्रदर्शन के आधार पर किया जाता है, जिसमें नियमित अनुदान और हस्तांतरण की अनदेखी की जाती है।
- क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) जैसे संस्थान अनुदान को "गैर-आवर्ती आय" (non-recurring income) के रूप में देखते हैं, जो शहरों की वित्तीय स्थिरता को कमजोर करता है।
वर्तमान राजस्व मॉडल से संबंधित मुद्दे
- संपत्ति कर संग्रहण और उपयोगकर्ता शुल्क सीमित समाधान हैं, जो शहर की राजस्व क्षमता में केवल 20-25% का योगदान करते हैं।
- यह मॉडल निवासियों पर, विशेष रूप से निम्न आय वाले क्षेत्रों में, अत्यधिक बोझ डालता है।
- "उपयोगकर्ता द्वारा भुगतान" का तर्क सार्वजनिक वस्तुओं को निजी वस्तुओं में बदल देता है, जो अन्यायपूर्ण है।
स्कैंडिनेवियाई मॉडल से सबक
- स्कैंडिनेवियाई देश अपने कल्याणकारी राज्य को एक सुदृढ़ स्थानीय कर आधार पर स्थापित करते हैं, जो नगर पालिकाओं को आयकर लगाने और वसूलने की अनुमति देता है।
- यह मॉडल पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है तथा शहरों को दीर्घकालिक आवश्यकताओं के लिए योजना बनाने की अनुमति देता है।
- उच्च स्तरीय सरकारों से प्राप्त हस्तांतरण को एक साझा राजकोषीय पारिस्थितिकी तंत्र के हिस्से के रूप में देखा जाता है।
भारत में राजकोषीय संघवाद की पुनर्कल्पना
- एक ऐसे मॉडल की आवश्यकता है जहाँ नगर पालिकाओं के पास अनुमानित, पर्याप्त और बिना शर्त वाला राजस्व हो।
- नगर निगम बांडों को अनुदान और साझा करों को शहर की आय के वैध घटकों के रूप में मान्यता देनी चाहिए।
- रेटिंग प्रणाली में पारदर्शिता और नागरिक भागीदारी सहित शासन क्षमता पर भी विचार किया जाना चाहिए।
- शहरों को उधार लेने के लिए अपनी जीएसटी क्षतिपूर्ति या राज्य के हिस्से को संपार्श्विक (Collateral) के रूप में उपयोग करने के लिए सशक्त बनाया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
सहकारी संघवाद को बहाल करने के लिए सुधार ज़रूरी हैं। नगर निगम के वित्त को एक नैतिक और राजनीतिक प्रश्न के रूप में देखा जाना चाहिए, यह मानते हुए कि शहर लागत केंद्र नहीं, बल्कि राष्ट्रीय समृद्धि के आधार हैं।