परिचय (Introduction)
वर्ष 2025 में उस यात्रा के एक दशक पूर्ण हुए जब विश्व ने सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा को लागू करना शुरू किया था। यह एजेंडा लोगों और पृथ्वी के लिए, वर्तमान और भविष्य हेतु, शांति और समृद्धि का एक साझा खाका प्रस्तुत करता है। पिछले दस वर्षों में, SDGs ने वैश्विक और राष्ट्रीय नीतियों को दिशा दी है, जिससे सरकारों और संस्थाओं को संधारणीयता एवं आर्थिक और सामाजिक विकास को एकीकृत करने के लिए प्रोत्साहन मिला है। हालांकि, इस अवधि में कई व्यवधान भी आए — जैसे कोविड-19 महामारी, जलवायु आपातकाल, भू-राजनीतिक तनाव, और आर्थिक असमानताएं आदि।, इन चुनौतियों ने मिलकर इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति को धीमा कर दिया है।
1. सतत विकास लक्ष्य क्या हैं?
सतत विकास लक्ष्य (SDG), जिन्हें वैश्विक लक्ष्य (Global Goals) भी कहा जाता है, एक महत्त्वाकांक्षी और सार्वभौमिक रोडमैप है। ये सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा का हिस्सा हैं, जिनमें 17 SDGs और 169 परस्पर जुड़े हुए उप-लक्ष्य शामिल हैं। इन वैश्विक लक्ष्यों को वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाया गया था। इनका उद्देश्य वर्ष 2030 तक गरीबी को समाप्त करना, पृथ्वी को सुरक्षित रखना और सभी लोगों के लिए शांति एवं समृद्धि सुनिश्चित करना है। SDGs के मूल में सार्वभौमिकता का सिद्धांत निहित है—जिसका संकल्प है ‘किसी को भी पीछे न छोड़ना’ (Leave No One Behind)।
संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (UNDESA) के अंतर्गत आने वाला सतत विकास लक्ष्यों के लिए प्रभाग (DSDG), SDGs के 2030 एजेंडे के क्रियान्वयन हेतु जागरूकता, निगरानी और मूल्यांकन का कार्य संभालता है। SDG शिखर सम्मेलन हर चार साल में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में आयोजित किया जाता है और हर वर्ष सतत विकास पर उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (High-level Political Forum- HLPF) द्वारा इसकी समीक्षा की जाती है।
17 सतत विकास लक्ष्य (SDGs) एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, क्योंकि किसी एक क्षेत्र में की गई कार्रवाई का प्रभाव अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ता है। इसलिए, विकास को संतुलित होना चाहिए। SDGs ने सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों (MDGs, 2000–2015) की जगह ली, लेकिन ये उनसे अधिक व्यापक, सार्वभौमिक और समावेशी हैं। MDGs, जो मुख्य रूप से विकासशील राष्ट्रों और सामाजिक क्षेत्रों पर केंद्रित थे, उनके विपरीत, SDGs में आर्थिक विकास, सामाजिक समावेशन, और पर्यावरणीय स्थिरता — इन तीनों स्तंभों पर समान रूप से ध्यान केन्द्रित किया गया है, जो सतत विकास की आधारशिला बनाते हैं।

2.1. पिछले 10 वर्षों में किन सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) में सबसे अधिक प्रगति देखी गई है?
- वैश्विक भुखमरी: हाल के वर्षों में वैश्विक भुखमरी और खाद्य असुरक्षा में कमी आई है, लेकिन यह अभी भी महामारी-पूर्व के स्तर से ऊपर बनी हुई है। 2024 में, अनुमानत: 8.2% वैश्विक आबादी को भुखमरी का सामना करना पड़ा।
- स्वास्थ्य: मलेरिया रोकथाम के प्रयासों से वर्ष 2000 से लेकर अब तक 2.2 बिलियन मामलों को रोका गया है और 12.7 मिलियन लोगों का जीवन बचाया गया है। WHO के अनुसार, पिछले दशक में शिशु मृत्यु दर में 16% की कमी आई है।
- शिक्षा तक पहुंच: वर्ष 2015 से, 110 मिलियन अधिक बच्चे और युवा स्कूल में दाख़िल हुए हैं, जिसमें सभी स्तरों पर शिक्षा पूरी करने की दर बढ़ी है, और शिक्षा में लैंगिक अंतराल लगातार कम हो रहा है।
- अवसंरचना तक पहुंच: वर्ष 2023 तक, दुनिया की 92% आबादी को बिजली तक पहुंच मिल चुकी थी। साथ ही, इंटरनेट उपयोग कवर बढ़कर 68% हो गया है, जिससे लाखों लोगों को शिक्षा, रोजगार और सामाजिक भागीदारी के नए अवसर मिले हैं।
महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण: अब विश्व स्तर पर महिलाएं कुल संसदीय सीटों के 27% का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो 2015 में 22% था — यानी राजनीतिक भागीदारी में महिलाओं की स्थिति पहले से बेहतर हुई है।

2.2. किन सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) में सबसे कम प्रगति हुई या यहाँ तक कि गिरावट (reversal) देखी गई है?
- गरीबी: 30 वर्षों से, गरीबी के स्तर में लगातार गिरावट आ रही थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के प्रभाव के बाद से यह प्रवृत्ति उलट गई।
- आज भी लगभग 800 मिलियन लोग चरम गरीबी में जी रहे हैं। यदि वर्तमान गति से ही प्रगति की गई तो, 2030 तक केवल पाँच में से एक देश ही अपनी राष्ट्रीय गरीबी दर को आधा कर पाएगा।
- हालांकि, दुनिया की 52.4% आबादी को कम-से-कम एक सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त हुआ है, जो 2015 से अधिक है, फिर भी 3.8 बिलियन लोग अभी भी किसी भी तरह के सामाजिक सुरक्षा लाभ से वंचित हैं।
- भूखमरी: यह कुपोषण बच्चों के विकास और स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में ठिगनापन (stunting) 2012 में 26.4% था, जो 2024 में घटकर 23.2% हो गया, लेकिन हाल के आंकड़े फिर से स्थिति बिगड़ने की ओर संकेत करते हैं।
- महिलाओं और बच्चों में एनीमिया (रक्ताल्पता) और अपर्याप्त आहार विविधता वैश्विक पोषण लक्ष्यों को प्राप्त करने में बड़ी बाधा बनी हुई हैं।
- वैश्विक स्वास्थ्य: दशकों की मेहनत से हासिल की गई स्वास्थ्य उपलब्धियां अब धीमी पड़ गई हैं। संक्रामक और गैर-संक्रामक रोग अब भी मानव स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं।
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा: SDG 4, जिसका लक्ष्य सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना है, अपने लक्ष्य से पीछे चल रहा है। 2023 में 272 मिलियन बच्चे और युवा स्कूल से बाहर थे (UNESCO)।
- जल और स्वच्छता: SDG 6, जिसका उद्देश्य जल और स्वच्छता तक पहुंच सुनिश्चित करना है, वह भी अपने लक्ष्य से पिछड़ रहा है, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2024 तक 2.2 बिलियन लोगों के पास इसकी पहुंच का अभाव है।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन का प्रभाव लगातार गहरा रहा है। वर्ष 2024 को अब तक के सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज किया गया, जिसके साथ बाढ़, तूफान और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हुई है।
3. प्रमुख SDGs को प्राप्त करने में भारत ने कितनी प्रगति की है?
भारत में SDGs की कहानी लोगों की कहानी है — उनकी आकांक्षाओं, अवसरों और संघर्षों की कहानी। SDG सूचकांक में भारत ने अपनी रैंकिंग में लगातार सुधार किया है। भारत का स्थान वर्ष 2021 के 120वें स्थान से सुधर कर 2025 में 99वां हो गया है, जहां भारत का कुल स्कोर 100 में से 67 रहा — जो कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है:
- SDG 1 (गरीबी उन्मूलन): 135 मिलियन से अधिक लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकल चुके हैं, जो समावेशी विकास की दिशा में पर्याप्त लाभ को दर्शाते हैं।
- SDG 2 (भुखमरी का समापन): कुपोषण की दर घटकर 13.7% रह गई है, जो खाद्य सुरक्षा और पोषण स्तर में सुधार का संकेत देता है।
- SDG 3 (अच्छा स्वास्थ्य और खुशहाली): मातृ मृत्यु दर प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 130 (2014–16) से घटकर 80.5 हो गई है। यह बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं और मातृत्व देखभाल के स्तर में प्रगति को दर्शाता है।
- SDG 4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा): प्राथमिक स्तर पर नामांकन दर अब 99.9% तक पहुंच गई है। साथ ही छात्रों की निरंतरता और साक्षरता दर में भी सुधार हुआ है, जो समावेशी शिक्षा की ओर प्रगति को प्रदर्शित करता है।
- SDG 6 (स्वच्छ जल और स्वच्छता): 93% आबादी को कम से कम बुनियादी पेयजल सेवाओं तक पहुंच प्राप्त है।
- SDG 7 (किफायती और स्वच्छ ऊर्जा): 74% आबादी को खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन और प्रौद्योगिकी तक पहुँच प्राप्त है।
- SDG 10 (असमानताओं में कमी करना): भारत अब आय की समानता में कमी के मामले में वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर है, जहां गिनी स्कोर 25.5 है — जो आय की असमानता में कमी को दर्शाता है।
भारत में SDGs के लिए सर्वोत्तम पहलें (Best Practice Case Studies)
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3.1. भारत ने SDGs को अपनी विकास योजनाओं में कैसे एकीकृत किया?
शुरुआत से ही, भारत के नेतृत्व ने "संपूर्ण-सरकार दृष्टिकोण" (whole-of-government approach) के माध्यम से SDGs को विकास योजनाओं के केंद्र में रखा है—यह दृष्टिकोण ऊर्ध्वाधर रूप से (केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकार) और क्षैतिज रूप से (विभिन्न मंत्रालयों में) दोनों तरह से लागू किया गया है। नीति आयोग को SDGs के लिए नोडल संस्था के रूप में यह ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी, जो पूरे सिस्टम में प्रयासों का समन्वय करता है और स्वामित्व को बढ़ावा देता है।
SDGs को प्राप्त करने के लिए भारत की स्थिति को बेहतर बनाने हेतु निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:
- SDG इंडिया इंडेक्स: नीति आयोग द्वारा शुरू किया गया यह सूचकांक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सार्वजनिक आंकड़ों के आधार पर रैंक प्रदान करता है। इसका उद्देश्य स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और प्रगति की निगरानी करना है।
- SDGs का स्थानीयकरण: जिला स्तर और पंचायती राज संस्थाओं में SDGs के कार्यान्वयन को बढ़ावा दिया गया है। इसके लिए पंचायत एडवांसमेंट इंडेक्स को लागू किया गया, जिससे स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार समाधान तैयार किए जा सकें।
- संस्थागत एकीकरण: कई राज्यों ने अरबों डॉलर के बजट को SDG लक्ष्यों के साथ जोड़ा है, ताकि वित्तीय संसाधन विकास लक्ष्यों के अनुरूप खर्च किए जा सकें।
- लक्षित विकास कार्यक्रम: भारत ने प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, स्वच्छ भारत मिशन, आयुष्मान भारत योजना, पीएम-मुद्रा योजना, सौभाग्य योजना, जैसी पहलें शुरू कीं, जो विभिन्न SDGs लक्ष्यों से जुड़ी हुई हैं।
- हितधारकों की भागीदारी: भारत ने नागरिक समाज, शैक्षणिक संस्थानों और निजी क्षेत्रक को सक्रिय रूप से शामिल किया है। भारत ने अब तक तीन दौर की स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षाओं (VNRs) में अपने अनुभव और सर्वोत्तम प्रथाएं साझा की हैं।
- मिशन LiFE: यह पर्यावरण संरक्षण के लिए सतत उपभोग और व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देता है।
भारत में SDGs का स्थानीयकरण (Localization of SDGs in India)"स्थानीयकरण" का अर्थ है सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा को स्थानीय और क्षेत्रीय स्तरों के अनुकूल बनाना। इसमें स्थानीय लक्ष्य निर्धारित करना, उन्हें प्राप्त करने के तरीके खोजना, और प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति को मापना शामिल है। स्थानीयकरण मुख्य रूप से दो बातों पर ध्यान केंद्रित करता है: स्थानीय सरकारें स्थानीय कार्रवाई के माध्यम से SDGs को प्राप्त करने में कैसे मदद कर सकती हैं, और SDGs स्थानीय विकास योजनाओं और नीतियों का मार्गदर्शन कैसे कर सकते हैं। SDG लक्ष्यों के स्थानीयकरण का महत्त्व:
17 सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) में से 15 सीधे तौर पर भारत में स्थानीय सरकारों द्वारा किए गए कार्यों से जुड़े हैं। SDG स्थानीयकरण को प्रभावी बनाने के लिए, स्थानीय योजनाओं को बजट के साथ जोड़ा जाना चाहिए ताकि कार्यान्वयन के लिए उचित धन सुनिश्चित हो सके। इसके लिए एक ऐसे दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच समन्वय (ऊर्ध्वाधर अभिसरण) और एक ही स्तर पर विभागों और क्षेत्रों के बीच सहयोग (क्षैतिज अभिसरण) को प्रोत्साहित करे। प्रगति को ट्रैक करने और आवश्यकता पड़ने पर परिवर्तन करने के लिए स्थानीय स्तर पर मजबूत निगरानी प्रणालियों का विकास करना भी महत्वपूर्ण है। |
4. 2030 तक SDGs के लक्ष्यों को साकार करने में दुनिया के सामने मुख्य चुनौतियां कौन-सी हैं?
- वित्त-पोषण की कमी: SDG क्षेत्रों में सार्वजनिक और निजी निवेश आवश्यक जरूरतों से बहुत कम है। विकासशील देशों को SDG कार्यान्वयन के लिए हर साल अनुमानत: 4.2 ट्रिलियन डॉलर की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
- हाल ही में आयोजित चौथे अंतर्राष्ट्रीय विकास वित्त सम्मेलन (FFD4) में विकासशील देशों में SDG वित्त-पोषण की कमी को दूर करने के लिए सेविल प्रतिबद्धता (Seville Commitment) अपनाई गई।
- सेविले प्रतिबद्धता को सर्वसम्मति से अपनाया गया है, जो विकासशील देशों में $4 ट्रिलियन वार्षिक SDG वित्त-पोषण अंतराल को पाटने का मार्ग प्रशस्त करती है।
- इसमें बहुपक्षीय बैंकों को मज़बूत करना, क्रेडिट रेटिंग विधियों में सुधार करना, और घरेलू वित्तीय बाज़ारों को विकसित करना, स्थानीय स्तर पर पूंजी तक पहुँच बढ़ाना, संयुक्त वित्त-पोषण को बढ़ाना आदि शामिल है।
- इसके अंतर्गत निम्नलिखित मंच और कार्यक्रम भी शुरू किए गए — सीविले फोरम ऑन डेट (आधिकारिक रूप से प्रारंभ); डेट "पॉज़ क्लॉज़" एलायंस; डेट स्वैप्स फॉर डेवलपमेंट हब और डेट-फॉर-डेवलपमेंट स्वैप प्रोग्राम।
- हाल ही में आयोजित चौथे अंतर्राष्ट्रीय विकास वित्त सम्मेलन (FFD4) में विकासशील देशों में SDG वित्त-पोषण की कमी को दूर करने के लिए सेविल प्रतिबद्धता (Seville Commitment) अपनाई गई।
- जलवायु और पर्यावरणीय तनाव: बढ़ता ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जैव विविधता की हानि और चरम जलवायु घटनाएँ (जैसे- बाढ़, सूखा, तूफान आदि) विकास की उपलब्धियों को खतरे में डाल रही हैं।
- 2020-2023 के बीच जलवायु आपदाओं से वैश्विक आर्थिक नुकसान लगभग 173 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष अनुमानित है।
- भू-राजनीतिक संघर्ष: यूक्रेन, पश्चिम एशिया और अफ्रीका में युद्ध और तनाव के कारण व्यापार, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा प्रभावित हुई है।
- इन संघर्षों के कारण कई देशों को अपने विकास संबंधी संसाधन रक्षा और मानवीय सहायता पर व्यय करने पड़ रहे हैं।
- महामारी के बाद के प्रभाव: स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार के संकेतक अभी तक कोविड-19 से पूरी तरह उबर नहीं पाए हैं।
- सीखने में आई रुकावट और स्वास्थ्य सेवाओं में बाधाएँ मानव विकास की वर्षों की प्रगति को पीछे धकेल चुकी हैं।
- असमानता और बहिष्करण: आय में बढ़ती असमानता, ग्रामीण-शहरी अंतराल और डिजिटल अंतराल समावेशी प्रगति को रोक रही हैं। यदि नीतियाँ समावेशी नहीं बनाईं गईं, तो “किसी को पीछे न छोड़ने” का सिद्धांत मंद पड़ सकता है।
- प्रशासनिक समन्वय की कमी: केंद्र और स्थानीय प्राधिकरणों के बीच कमज़ोर समन्वय जवाबदेही और दक्षता को सीमित कर करता है।
निष्कर्ष
SDG कार्यान्वयन के दस वर्षों में प्रगति और अवरोध दोनों ही देखने को मिलते हैं। इन लक्ष्यों ने राष्ट्रीय कार्रवाई और वैश्विक एकजुटता को प्रेरित किया है, लेकिन 2030 तक लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह तेज़ी से कठिन होती जा रही है। भारत का उदाहरण, जो विकास को समावेशन और प्रौद्योगिकी को संधारणीयता के साथ एकीकृत करता है, विश्व के लिए एक मूल्यवान सबक प्रदान करता है। इसलिए, अगले पाँच वर्ष कार्रवाई और जवाबदेही पर केन्द्रित होने चाहिए।
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