इजरायल-अमेरिका-ईरान संघर्ष (ISRAEL-US-IRAN CONFLICT) | Current Affairs | Vision IAS
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इजरायल-अमेरिका-ईरान संघर्ष (ISRAEL-US-IRAN CONFLICT)

21 Jul 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, इजरायल डिफेंस फोर्सेज (IDF) ने "ऑपरेशन राइजिंग लायन" की शुरुआत की। इसके तहत ईरान के परमाणु ढांचे और बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता पर एक बड़ा हमला किया गया।

संघर्ष की प्रमुख घटनाएं

  • इजरायल के हमले: यह हमला IAEA के शासी बोर्ड (35 सदस्य देशों) के उस मतदान के बाद हुआ, जिसमें ईरान को 1974 के समझौते का उल्लंघनकर्ता घोषित किया गया था। उल्लेखनीय है कि यह 2006 के बाद ऐसा पहला निष्कर्ष था।
    • इजरायल ने ईरान के हमले के खिलाफ अपनी नई हवाई रक्षा प्रणाली 'बराक मागेन' या 'लाइटनिंग शील्ड' को सक्रिय किया।
  • ईरान की प्रतिक्रिया: ईरान ने इजरायल के खिलाफ 'ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 3' शुरू किया।
  • अमेरिका की भागीदारी: अमेरिका ने "ऑपरेशन मिडनाइट हैमर" शुरू किया, जिसमें ईरान के 3 परमाणु प्रतिष्ठानों—नतांज (ईरान का मुख्य यूरेनियम संवर्धन केंद्र), इस्फ़हान और फोर्डो पर सटीक हवाई हमले किए गए।
    • अमेरिका ने GBU-57 मैसिव ऑर्डिनेंस पेनिट्रेटर (MOP) का इस्तेमाल किया। यह एक सटीक-निर्देशित पारंपरिक बम है, जो सतह के नीचे 200 फीट तक प्रवेश कर सकता है और फिर विस्फोट करता है।
  • भारत की प्रतिक्रिया:
    • भारत ने दोनों पक्षों से अपील की कि वे कोई उकसाने वाला कदम न उठाएं और फिर से वार्ता की राह पर लौटें।
    • भारत ने ईरान-इजरायल संघर्ष पर शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की चर्चाओं में हिस्सा लेने से परहेज किया, जिनमें इजरायली सैन्य हमलों की निंदा की गई थी।

'बराक मागेन' या 'लाइटनिंग शील्ड' के बारे में

  • यह बराक एमएक्स (Barak MX) मिसाइल रक्षा प्रणाली का एक विशेष संस्करण है। इसे नौसेना के जहाजों को विभिन्न हवाई खतरों जैसे ड्रोन, क्रूज मिसाइल और बैलिस्टिक मिसाइल से बचाने के लिए बनाया गया है।
  • यह इजरायल की मौजूदा प्रणालियों आयरन डोम, डेविड स्लिंग, एरो और भविष्य की लेज़र प्रणाली 'आयरन बीम' की संपूरक है।

 

ईरान-इजरायल-अमेरिका संघर्ष के प्रभाव

वैश्विक प्रभाव

  • परमाणु तनाव में वृद्धि: अग्रिम सैन्य कार्रवाई परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए बनाए गए वैश्विक मानकों की साख को कमजोर करती है। ये मानक परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के तहत स्थापित किए गए थे।
    • ईरान ने IAEA (अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) के साथ सहयोग को निलंबित कर दिया है और NPT से बाहर निकलने की योजना बना रहा है। इससे यह संकेत मिलता है कि वह खुलकर परमाणु हथियार बनाने की दिशा में बढ़ सकता है।
  • व्यापार और ऊर्जा सुरक्षा के लिए खतरा: ईरान की संसद ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इससे वैश्विक स्तर कच्चे तेल और LNG की कीमतें बढ़ सकती हैं तथा शिपिंग बीमा व माल ढुलाई की लागत में वृद्धि हो सकती है।
    • एक अनुमान के अनुसार इस जलडमरूमध्य से विश्व के 35% तेल और 20% LNG का व्यापार होता है।
  • समुद्र के नीचे बिछी केबल अवसंरचना में बाधा: कई हाई-कैपेसिटी रूट जैसे- यूरोप-इंडिया गेटवे (EIG), फ्लैग/ FLAG (फाइबर ऑप्टिक लिंक अराउंड द ग्लोब) आदि ऐसे समुद्री मार्गों से गुजरते हैं, जो इजरायल-ईरान संघर्ष वाले समुद्री क्षेत्रों जैसे लाल सागर, गल्फ ऑफ ओमान, और होर्मुज जलडमरूमध्य के पास अवस्थित हैं।
    • उदाहरण के लिए- वर्ष 2024 में क्षेत्रीय संघर्ष बढ़ने पर लाल सागर में तीन बड़ी केबल क्षतिग्रस्त हो गई थी। इससे अफ्रीका, खाड़ी देशों और दक्षिण एशिया में इंटरनेट की गति एवं कनेक्टिविटी में बाधाएं आने लगी थीं।
  • शक्ति शून्यता (Power Vacuum): ईरान के कमजोर पड़ने से सीरिया, इराक और लेबनान में उसका प्रभाव कम होने लगेगा, जिससे भविष्य में इन देशों में नवीन संघर्षात्मक प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए- ईरान ने अपने सहयोगियों की मदद से "एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस" नामक अनौपचारिक समूह के ज़रिए क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाया था।

भारत पर प्रभाव

  • द्विपक्षीय व्यापार में गिरावट:
    • ईरान: अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण भारत ने ईरान से तेल आयात रोक दिया। इससे दोनों देशों के बीच व्यापार, जो 2017 में 14 बिलियन डॉलर था, वह 2024 में घटकर 1.4 बिलियन डॉलर रह गया था।
    • इजरायल के साथ भारत का व्यापार 2022 में 11 बिलियन डॉलर था, किंतु खाड़ी क्षेत्र में तनाव में वृद्धि के कारण यह 2024 में घटकर 3.75 बिलियन डॉलर का रह गया।
  • भू-राजनीतिक निहितार्थ: भारत के इजरायल और ईरान दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, इसलिए भारत को अपने हितों के मध्य बहुत सोच-समझकर संतुलन बनाना पड़ता है।
    • उदाहरण के लिए- इजरायल रक्षा और तकनीक के क्षेत्र में अहम साझेदार है, जबकि ईरान ऊर्जा सुरक्षा और यूरेशिया तक पहुंच के लिए महत्वपूर्ण है।
  • अवसंरचना और कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर असर: अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरेशिया के साथ व्यापार तथा कनेक्टिविटी के लिए भारत की चाबहार बंदरगाह, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा जैसी परियोजनाएं प्रभावित होंगी। 
    • उदाहरण के लिए- इजरायल के हाइफ़ा बंदरगाह पर ईरान के मिसाइल हमलों ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे में उसकी भूमिका को बाधित कर दिया है।
  • भू-राजनीतिक पुनर्संरचना: यदि ईरान का पतन होता है, तो पश्चिम एशिया बहुध्रुवीय (multipolar) से बदलकर अमेरिका के नेतृत्व वाले एकध्रुवीय (unipolar) ढांचे में जा सकता है। इससे भारत जैसे गैर-पश्चिमी देशों का इस क्षेत्र में महत्त्व कम हो जाएगा।
  • विदेश में भारतीयों की सुरक्षा: बढ़ते तनाव के कारण इजरायल में लगभग 28,000 और ईरान में 10,765 भारतीयों को उच्च जोखिम का सामना करना पड़ रहा है।
    • भारत ने ईरान और इजरायल के संघर्ष क्षेत्रों से भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए ऑपरेशन सिंधु शुरू किया है।

निष्कर्ष

भारत‑इजरायल संबंधों में ईरान के साथ संबंधों को संतुलित करना, बहुत जटिल है। यह संतुलन भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और दोनों देशों के मध्य प्रतिकूल संबंधों के बावजूद उनके साथ समानांतर संबंध बनाए रखने की आवश्यकता को दर्शाता है। ईरान और इजरायल दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध होने के कारण, भारत के पास यह अवसर है कि वह दोनों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाए, खासकर तब जब उनका टकराव जारी है और आगे चलकर बड़े भू‑राजनीतिक तनाव की आशंका बढ़ रही है।

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