अंतर्राष्ट्रीय आपदा रोधी अवसंरचना सम्मेलन 2025 (International Conference on Disaster Resilient Infrastructure 2025) | Current Affairs | Vision IAS
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अंतर्राष्ट्रीय आपदा रोधी अवसंरचना सम्मेलन 2025 (International Conference on Disaster Resilient Infrastructure 2025)

21 Jul 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, फ्रांस में आयोजित 7वें अंतर्राष्ट्रीय आपदा रोधी अवसंरचना सम्मेलन (International Conference on Disaster Resilient Infrastructure: ICDRI) में भारत के आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure) में अफ्रीकी संघ शामिल हुआ। 

अन्य संबंधित तथ्य 

  • ICDRI 2025 द्वारा लघु द्वीपीय विकासशील देश (Small Island Developing States: SIDS) में तटीय रेसिलिएंस के लिए कार्रवाई का आह्वान किया गया है।
    • ICDRI: यह आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) के तहत एक मंच है। यह जलवायु अनुकूलन, तटीय लचीलेपन और संधारणीय विकास पर चर्चा और कार्रवाई को आगे बढ़ाता है।
  • इस वर्ष का सम्मेलन यूरोप में आयोजित होने वाला पहला सम्मेलन है। इसकी सह-मेजबानी ICDRI एवं फ्रांस सरकार द्वारा की जा रही है। 
    • इस सम्मेलन की थीम है: "शेपिंग अ रेसिलिएंट फ्यूचर फॉर कोस्टल रीजंस"।

तटीय क्षेत्रों से संबंधित सुभेद्यता

  • मानव जीवन और संपत्ति के लिए जोखिम: तटीय क्षेत्र पूरी दुनिया में खतरों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं, क्योंकि दुनिया की 60% से अधिक आबादी और दो-तिहाई बड़े शहर तटीय क्षेत्रों में स्थित है। 
    • भारत में लगभग 25 करोड़ लोग समुद्र तट से 50 कि.मी. के दायरे में रहते हैं। 
  • जलवायु परिवर्तन: अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण तटीय क्षेत्रों में समुद्र जल स्तर में वृद्धि, बाढ़, और तूफानों जैसी आपदाओं की तीव्रता एवं आवृत्ति में वृद्धि होगी।
  • आर्थिक नुकसान: उदाहरण के लिए, वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट (Global Assessment Report: GAR), 2025 के अनुसार, चक्रवात फेनी (2019) के कारण ओडिशा में विद्युत से संबंधित लगभग 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अवसंरचना क्षतिग्रस्त हुई थी। 
  • पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के लिए खतरा: उदाहरण के लिए- मैंग्रोव जोखिम सूचकांक के अनुसार, बार बार आने वाले चक्रवातों और समुद्र के जल स्तर में वृद्धि के कारण, वर्ष 2100 तक दुनिया के आधे मैंग्रोव को गंभीर खतरों का सामना करना पड़ सकता है।
  • सामाजिक रूप से कमजोर समुदायों पर प्रभाव: तटीय क्षेत्र में आपदाओं के बढ़ने से तटीय क्षेत्रों में सामाजिक रूप से कमजोर आबादी, जैसे बुजुर्गों, देशज मछुआरे समुदायों, आदि के लिए पहले से मौजूद असमानताओं में और वृद्धि होने की संभावना है। 
  • तटीय क्षेत्रों के लिए गंभीर खतरे:
    • सुनामी: उदाहरण के लिए- 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी ने 230,000 से अधिक लोगों की जान चली गई और लाखों लोगों को विस्थापित हो गए। साथ ही, इसने भारत सहित 14 देशों के संबंधित तटीय क्षेत्रों को तबाह कर दिया। 
    • चक्रवात: उदाहरण के लिए- चक्रवात 'रिमल' (2024) ने भारत और बांग्लादेश को काफी प्रभावित किया। 
    • तूफानी ज्वार: उदाहरण के लिए- 2023 में कच्छ और मोरबी जिलों के निचले क्षेत्रों में 2 से 2.5 मीटर ऊँची तूफानी ज्वारीय लहरें आई थी। (IMD)
    • तटीय अपरदन: उदाहरण के लिए- MoEFCC के अनुसार, भारत की 33.6% तटीय रेखा अपरदन के कारण खतरे में है।

आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) के बारे में 

  • शुरुआत: CDRI की स्थापना भारत द्वारा वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन (United Nations Climate Action Summit) में की गई थी।
  • परिचय: यह एक वैश्विक साझेदारी है। इसमें राष्ट्रीय सरकारें, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां, बहुपक्षीय विकास बैंक, और निजी क्षेत्रक शामिल हैं।
  • उद्देश्य: सतत विकास सुनिश्चित करते हुए जलवायु और आपदा जोखिमों को सहने में सक्षम (रेसिलिएंस) अवसंरचना प्रणालियों को बढ़ावा देना।
  • सदस्य: 56 सदस्य, सचिवालय नई दिल्ली (भारत) में।
  • रिपोर्ट: ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर रेसिलिएंस रिपोर्ट। 
  • गवर्नेंस: CDRI की गवर्निंग काउंसिल में दो राष्ट्रीय सरकारों के प्रतिनिधि सह-अध्यक्ष होते हैं, जिनमें से भारत स्थायी सह-अध्यक्ष है।
  • प्रमुख पहलें  
    • इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर रेसिलिएंट आईलैंड स्टेटस (Infrastructure for Resilient Island States: IRIS): यह पहल लघु द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) में रेसिलिएंट, संधारणीय और समावेशी अवसंरचना को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई है। 
    • इंफ्रास्ट्रक्चर रेसिलिएंस एक्सलेरेटर फंड (Infrastructure Resilience Accelerator Fund): यह फंड  UNDP और UNDRR के सहयोग से स्थापित किया गया है। इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर आपदा-रोधी अवसंरचना प्रणाली के विकास को समर्थन देना है।  

भारत द्वार तटीय सुभेद्यता के शमन हेतु शुरू की गयी पहलें

  • तटीय विनियमन क्षेत्र (Coastal Regulation Zone: CRZ) अधिसूचना (2019): इसका उद्देश्य तटीय क्षेत्रों और समुद्री क्षेत्रों का संरक्षण करना तथा मछुआरों और अन्य स्थानीय समुदायों की आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करना है। 
  • एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन परियोजना (Integrated Coastal Zone Management Project: ICZMP): यह परियोजना ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में लागू की जा रही है। इसका उद्देश्य संधारणीय प्रथाओं के माध्यम से तटीय और समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण करना है। 
  • तटीय सुभेद्यता सूचकांक (Coastal Vulnerability Index: CVI): भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस) ने विभिन्न मापदंडों के आधार पर विभिन्न तटीय क्षेत्रों की भेद्यता का आकलन और मानचित्रण करने के लिए CVI विकसित किया है।
  • बहु-आपदा सुभेद्यता मानचित्र (Multi-Hazard Vulnerability Maps): भारतीय राष्ट्रीय समुद्री सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) ने विभिन्न मानकों के आधार पर भारत के तटीय क्षेत्रों की सुभेद्यता का आकलन एवं मानचित्रण करने के लिए यह सूचकांक विकसित किया है। 
  • तटीय प्रबंधन सूचना प्रणाली (Coastal Management Information System: CMIS): यह एक डेटा संग्रह प्रक्रिया है। इसमें निकटवर्ती समुद्री क्षेत्रों से जानकारी एकत्र की जाती है। यह जानकारी विशेष स्थलों पर तटीय सुरक्षा संरचनाओं के नियोजन, डिज़ाइन और निर्माण में सहायक होती है। 
  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change: NAPCC): इस योजना में राष्ट्रीय जल मिशन जैसी पहलें शामिल हैं, जो संधारणीय जल एवं वानिकी प्रबंधन के माध्यम से तटीय क्षेत्रों की रेसिलिएंस क्षमता को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देती हैं। 

निष्कर्ष 

तटीय क्षेत्र और द्वीपीय राष्ट्र समुद्र जल स्तर में वृद्धि, चक्रवात, अपरदन और चरम मौसमी घटनाओं जैसी बढ़ती जलवायु आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। भारत, CDRI और अपनी राष्ट्रीय पहलों के माध्यम से रेसिलिएंस एवं समावेशी अवसंरचना निर्माण की दिशा में प्रयासरत है। जलवायु जोखिमों के बढ़ते प्रभावों से निपटने के लिए स्थानीय जरूरतों और नवाचार पर आधारित वैश्विक कार्रवाई आवश्यक है ताकि तटीय समुदायों एवं पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा की जा सके।

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