संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के अस्थायी सदस्य के रूप में 5 देशों का चुनाव किया गया है।
- ये देश हैं: बहरीन, कोलंबिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, लातविया और लाइबेरिया।

UNSC के बारे में
- स्थापना: इसकी स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के माध्यम से हुई है। यह संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख अंगों में से एक है।
- उद्देश्य: अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना।
- सदस्य: 5 स्थायी सदस्य (P5) और 10 अस्थायी सदस्य (इन्फोग्राफिक देखिए)।
UNSC में सुधार के प्रस्ताव (2024)
- प्रस्तावित करने वाले: G4 राष्ट्र – भारत, ब्राज़ील, जर्मनी और जापान।
- सुधार की आवश्यकता क्यों है?
- स्थायी सदस्यों द्वारा वीटो शक्ति का दुरुपयोग,
- सभी क्षेत्रों का समान प्रतिनिधित्व नहीं मिला है,
- UNSC की मौजूदा स्थायी सदस्यता प्रणाली वर्तमान विश्व की वास्तविकताओं को नहीं दर्शाती है।
- प्रस्तावित सुधारों के प्रमुख प्रावधान:
- सदस्यता का विस्तार: 11 स्थायी और 14–15 अस्थायी सदस्य,
- सभी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व: 6 नए स्थायी सीटें अफ्रीका, एशिया-प्रशांत, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन, तथा पश्चिमी यूरोप/अन्य देशों के बीच वितरित की जाएँगी।
- नए स्थायी सदस्यों को प्रारंभ में वीटो शक्ति नहीं: इस प्रावधान की समीक्षा सुधारों के लागू के 15 वर्ष बाद की जाएगी।
अन्य संबंधित सुर्खियांपाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की तालिबान प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष और आतंकवाद-रोधी समिति (CTC) का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। तालिबान प्रतिबंध समिति के बारे में
आतंकवाद-रोधी समिति के बारे में
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Article Sources
1 sourceअमेरिका ने गावी (Gavi) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पर यह आरोप लगाया है कि वे टीकों की सुरक्षा पर उठने वाले वैध सवालों एवं असहमति को दबा रहे हैं।
- इससे पहले अमेरिका लंबे समय से गावी का सबसे बड़ा समर्थक था।

अमेरिका की वैश्विक गठबंधनों से स्वयं को अलग करने की बढ़ती प्रवृत्ति
- पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका ने कई प्रमुख वैश्विक संगठनों और संस्थानों से स्वयं को अलग कर लिया है। जैसे- संयुक्त राज्य अमेरिका WHO, पेरिस जलवायु समझौते, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी (UNRWA) आदि से बाहर हो गया है।
- एक वैश्विक महाशक्ति होने के नाते, अमेरिका के ऐसे फैसलों का अंतर्राष्ट्रीय गवर्नेंस पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।
अमेरिका द्वारा वैश्विक गठबंधनों से स्वयं को अलग करने की बढ़ती प्रवृत्ति के प्रभाव
- बहुपक्षवाद/ नियम-आधारित व्यवस्था का कमजोर होना: उदाहरण के लिए- अमेरिका के हटने के बाद इजरायल ने भी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से भागीदारी खत्म कर दी है।
- जलवायु परिवर्तन कार्यवाहियों पर प्रभाव: 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है और संयुक्त राज्य अमेरिका चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक है।
- स्वास्थ्य के लिए धन की कमी: अमेरिका के बाहर निकलने से संस्थानों में धन की कमी हो सकती है। उदाहरण के लिए- 2024 में अमेरिका ने WHO के कुल फंड का लगभग 15% वित्त-पोषित किया था।
- अन्य: अमेरिका के हटने से वैश्विक नेतृत्व में खालीपन पैदा होता है, जिसे चीन भर सकता है। इससे भारत की वैश्विक संगठनों में प्रभावशीलता कम हो सकती है।
Article Sources
1 sourceचीन ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) और परमानेंट कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन जैसी पारंपरिक संस्थाओं के वैश्विक विकल्प के रूप में औपचारिक रूप से IOMed की स्थापना की।
IOMed के बारे में
- उद्देश्य: अंतरराष्ट्रीय विवादों के समाधान हेतु मध्यस्थता करना।
- सदस्य: इंडोनेशिया, पाकिस्तान और बेलारूस सहित 30 से अधिक देशों ने संस्थापक सदस्य के रूप में भाग लिया।
- अधिकतर संस्थापक सदस्य एशिया, अफ्रीका और कैरेबियन क्षेत्र से हैं, जो इस नई संस्था के गैर-पश्चिमी दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।
- कार्यक्षेत्र:
- राष्ट्रों के बीच के विवाद समाधान,
- किसी राष्ट्र और दूसरे देश के नागरिकों के बीच विवाद का समाधान,
- अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक विवाद का समाधान।
भारत के विदेश मंत्रालय ने ई-पासपोर्ट और पासपोर्ट सेवा कार्यक्रम 2.0 को शुरू किया है।
ई-पासपोर्ट के बारे में
- ई-पासपोर्ट वास्तव में पेपर और इलेक्ट्रॉनिक पासपोर्ट का मिश्रित रूप है। इसमें एक रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) चिप और एक एंटीना पासपोर्ट के कवर में इनले के रूप में लगाया गया होता है।
- इसमें पासपोर्ट धारक की व्यक्तिगत जानकारी और बायोमेट्रिक डेटा दर्ज होता है।
- इसकी सुरक्षा प्रणाली का आधार पब्लिक-की इन्फ्रास्ट्रक्चर (PKI) तकनीक है।
- ई-पासपोर्ट जाली पासपोर्ट जैसी जालसाजी और धोखाधड़ी गतिविधियों से पासपोर्ट की सुरक्षा करता है और सीमा पर भारत के पासपोर्ट की प्रामाणिकता सुनिश्चित करता है।
तुर्किये ने आर्मेनिया और अजरबैजान से जंगेज़ुर कॉरिडोर खोलने की दिशा में कदम उठाने का आग्रह किया।
- आर्मेनिया और अजरबैजान 1917 से नागोर्नो-काराबाख (आर्टाख/Artsakh) क्षेत्र को लेकर संघर्षरत हैं। यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय रूप से अज़रबैजान का हिस्सा माना जाता है, लेकिन यहां मुख्यतः आर्मीनियाई नृजातीय समुदाय निवास करते हैं।
जंगेज़ुर कॉरिडोर के बारे में

- अवस्थिति: यह आर्मेनिया के स्यूनिक प्रांत से होकर गुजरने वाला प्रस्तावित 43 किलोमीटर लंबा परिवहन मार्ग है।
- उद्देश्य:
- कैस्पियन सागर में स्थित अजरबैजान के बाकू बंदरगाह को नखचिवन स्वायत्त क्षेत्र से जोड़ना और फिर आगे तुर्किये तक पहुंच बनाना है।
- नखचिवन, अज़रबैजान का पश्चिमी एन्क्लेव है और आर्मेनिया इस क्षेत्र को अज़रबैजान से अलग करता है।
- कैस्पियन सागर में स्थित अजरबैजान के बाकू बंदरगाह को नखचिवन स्वायत्त क्षेत्र से जोड़ना और फिर आगे तुर्किये तक पहुंच बनाना है।
- भारत की चिंताएँ:
- यह जंगेज़ुर कॉरिडोर चाबहार बंदरगाह और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारा (INSTC) में भारत के निवेश को प्रभावित कर सकता है।
- साथ ही यह कॉरिडोर उस क्षेत्र में भारत के प्रभाव को भी कम कर सकता है क्योंकि यह एक प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है।

