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QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में सुधार (IMPROVEMENT IN QS WORLD UNIVERSITY RANKINGS)

21 Jul 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2026 में भारतीय शिक्षण संस्थानों की संख्या और रैंकिंग में उल्लेखनीय सुधार दर्ज किया गया है।

QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के बारे में

  • जारीकर्ता: इसे लंदन स्थित वैश्विक उच्चतर शिक्षा विश्लेषण संस्था क्वाक्वारेल्ली साइमंड्स (QS) प्रतिवर्ष जारी करता है।
  • पांच मूल्यांकन मापदंड (अलग-अलग भारांश): शोध एवं नवाचार, रोजगारपरकता व आउटकम, वैश्विक सहभागिता, लर्निंग अनुभव और सततता।
  • संकेतक (Indicators): इन मापदंडों को आगे 10 संकेतकों में बांटा गया है, जैसे अकादमिक प्रतिष्ठा आदि।
    • इस वर्ष वैश्विक सहभागिता के तहत 'अंतर्राष्ट्रीय छात्र विविधता' नामक एक नया संकेतक भी इसमें शामिल किया गया है।

रैंकिंग के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

  • पांच गुना वृद्धि: QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में भारत की संस्थाओं की संख्या 2015 की रैंकिंग 11 से बढ़कर 2026 की रैंकिंग में 54 हो गई। इस रैंकिंग में अब संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और चीन के बाद चौथे स्थान पर सर्वाधिक संस्थान भारत के हैं।
    • यह G-20 देशों में भारत का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।
  • प्रमुख नए जुड़ाव: इस साल 8 भारतीय विश्वविद्यालय इस सूची में शामिल किए गए हैं, जो किसी भी अन्य देश से अधिक हैं।
  • शीर्ष-स्तरीय प्रदर्शन: 6 भारतीय संस्थान वैश्विक स्तर पर शीर्ष 250 संस्थानों में शामिल हैं।
  • संस्थागत विविधता: इसमें सार्वजनिक और निजी संस्थान दोनों शामिल हैं। इनमें केंद्रीय विश्वविद्यालय, डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय और तकनीकी संस्थान शामिल हैं।
  • IIT का दबदबा: इसमें 12 IITs शामिल हुए हैं, जिनमें IIT दिल्ली वैश्विक स्तर पर 123वें स्थान पर भारतीय संस्थानों में सबसे ऊपर है।

भारतीय विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में सुधार क्यों हुआ है?

  • शैक्षणिक प्रदर्शन प्रतिष्ठा में सतत प्रगति: प्रति फैकल्टी साइटेशन मानदंड में 8 भारतीय विश्वविद्यालय विश्व के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों में शामिल हैं, जो जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका से भी बेहतर है।
  • इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में उत्कृष्ट प्रदर्शन: टॉप 100 संस्थानों में कई भारतीय संस्थान, विशेषकर इंजीनियरिंग व प्रौद्योगिकी क्षेत्र के संस्थान शामिल हैं।
  • अवसंरचना का विकास: हाल ही में, अवसंरचना के विकास के लिए प्रधान मंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान (PM-USHA) जैसी कई पहलें की गई हैं।
  • रोजगार क्षमता में सुधार: पीएम इंटर्नशिप योजना, नेशनल अप्रेंटिसशिप ट्रेनिंग स्कीम (NATS), NATS 2.0 पोर्टल जैसी पहलों से सुधार दर्ज किया गया है। 
  • सततता में भारतीय उच्चतर शिक्षण संस्थानों की प्रभावी भूमिका: ज्ञान के आदान-प्रदान तथा पर्यावरणीय शोध में भारतीय संस्थानों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
  • नीतिगत सुधार: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 उच्च गुणवत्ता युक्त और समानता एवं समावेशन वाली उच्चतर शिक्षा को बढ़ावा देती है।

भारत में उच्चतर शिक्षा संस्थानों की रैंकिंग की व्यवस्था:

  • राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF): इसे 2015 में लॉन्च किया गया था। यह देश भर के संस्थानों को रैंक प्रदान करने की एक पद्धति की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।
    • संचालन: शिक्षा मंत्रालय के उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा।
    • मापदंड: शिक्षण, अधिगम व संसाधन, अनुसंधान और व्यावसायिक प्रथाएं, स्नातक परिणाम, पहुंच व समावेशिता तथा धारणा। 
  • उच्चतर शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE): 2010-11 से जारी इस सर्वेक्षण में शिक्षक, छात्र नामांकन, पाठ्यक्रम, परीक्षा परिणाम, शिक्षा वित्त, अवसंरचना आदि को कवर किया जाता है।
    • संचालन: भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा।

उच्चतर शिक्षा में विद्यमान चुनौतियां

  • कम प्रत्यायन दर (Accreditation Rate): देश भर के 39% से भी कम विश्वविद्यालयों को प्रत्यायन प्राप्त है। इसका मुख्य कारण प्रत्यायन प्रक्रिया में शामिल उच्च लागत है।
  • लक्ष्य से कम सकल नामांकन अनुपात (GER): वर्तमान GER 28.4% (2021-22) राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत 50% के लक्ष्य (2035 तक) से काफी कम है।
  • अपर्याप्त अनुसंधान वित्त-पोषण: अनुसंधान और विकास (R&D) पर सरकारी खर्च कम (GDP का लगभग 0.7%) है। इससे उच्चतर शिक्षा संस्थानों (HEIs) में कमजोर नवाचार परिणाम मिलते हैं।
  • उद्यमिता और नवाचार कौशल में कमी: शिक्षा जगत एवं उद्योग के बीच संबंध न होने तथा सॉफ्ट स्किल्स प्रशिक्षण पर जोर न देने के कारण कार्यबल कौशल में एक महत्वपूर्ण अंतराल मौजूद है।
  • अप्रचलित पाठ्यक्रम: विशेष रूप से AI और अन्य उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए व्यावहारिक अनुप्रयोगों के मामले में पाठ्यक्रम में अक्सर संशोधन एवं अपडेशन कम होता है।
  • खंडित विनियामक फ्रेमवर्क: बहु-विषयक शिक्षा और अनुसंधान विश्वविद्यालयों (MERUs) के लिए एक मजबूत फ्रेमवर्क की अनुपस्थिति का मुख्य कारण विविध विनियामक निकायों (जैसे- UGC, AICTE) का मौजूद होना है।

भारत में उच्चतर शिक्षा में सुधार के लिए आगे की राह

  • उद्योग-अकादमिक सहयोग: तेलंगाना एकेडमी फॉर स्किल एंड नॉलेज (TASK) जैसी साझेदारियों को प्रोत्साहित करना चाहिए। साथ ही, संयुक्त परियोजनाओं और उद्योग संबंध प्रकोष्ठों (IRCs) के माध्यम से विश्वविद्यालय-उद्योग सहयोग को मजबूत करना चाहिए।
    • ऑक्सफोर्ड उच्च मांग वाली विशिष्टताओं में प्रवेश बढ़ाने के लिए श्रम बाजार पूर्वानुमान का उपयोग करता है।
  • आवश्यकता-आधारित शिक्षा: आंध्र प्रदेश ने जनवरी 2025 में भारत की पहली कौशल आधारित जनगणना आयोजित की थी, जिसमें कमियों की पहचान की गई थी और लक्षित तकनीकी शिक्षा प्रस्तुत की गई थी।
  • विविध अकादमिक ब्रांड: अकादमिक संस्थानों को उन विषयों में भी निवेश बढ़ाना चाहिए जिनमें नामांकन कम है। साथ ही अंतर्विषयक डिग्रियों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) को सामाजिक विज्ञान और कला के साथ एकीकृत करके शिक्षा को अधिक संतुलित व समग्र बनाया जाना चाहिए।
  • विनियामक समेकन: राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उल्लेखित एकल विनियामक (भारतीय उच्चतर शिक्षा आयोग) के माध्यम से "सरल लेकिन कठोर" विनियमन को लागू करना चाहिए।
  • संकाय की स्वायत्तता: गुजरात के स्किल्स4फ्यूचर कार्यक्रम की तरह उद्योग-प्रासंगिक पाठ्यक्रम डिजाइन करने के लिए संकाय को स्वायत्तता प्रदान करनी चाहिए। इससे महत्वपूर्ण कमियों को दूर किया जा सकेगा।
  • वित्त-पोषण में वृद्धि: केरल के मॉडल का पालन करते हुए, सकल नामांकन अनुपात को बढ़ावा देने हेतु वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करनी चाहिए। 
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