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ग्रुप ऑफ सेवन (G-7) (GROUP OF SEVEN: G-7)

21 Jul 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

भारत ने कनाडा के कनानस्किस में आयोजित 51वें G-7 शिखर सम्मेलन (2025) में एक आउटरीच देश के रूप में भाग लिया।

अन्य संबंधित तथ्य

  • शिखर सम्मेलन के दौरान भारत और कनाडा ने अपने संबंधों को फिर से प्रगाढ़ करने का फैसला किया
    • दोनों देशों ने अपने-अपने उच्चायुक्तों को जल्द वापस भेजने पर सहमति जताई
    • भारत और कनाडा ने अर्ली प्रोग्रेस ट्रेड अग्रीमेंट (EPTA) पर दोबारा वार्ता शुरू करने का फैसला किया। इससे आगे चलकर व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) का रास्ता खुल सकता है।
  • 51वें G-7 शिखर सम्मेलन (2025) की मुख्य घोषणाएं:
    • कनानस्किस वाइल्डफायर चार्टर: "होल ऑफ सोसाइटी" दृष्टिकोण को अपनाया गया है। इसमें पारंपरिक ज्ञान, संधारणीय वन प्रबंधन और जन-जागरूकता अभियान शामिल हैं। भारत ने इस चार्टर का समर्थन किया है।
    • G-7 क्रिटिकल मिनरल्स एक्शन प्लान: क्रिटिकल मिनरल्स की आपूर्ति श्रृंखला को संधारणीय और भरोसेमंद बनाने के लिए एक साझा योजना बनाई गई।
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर प्रमुख पहल: G-7 GovAI ग्रैंड चैलेंज की शुरुआत की गई तथा एक साझा G-7 AI नेटवर्क (GAIN) स्थापित करने का निर्णय लिया गया।

ग्रुप ऑफ सेवन (G-7) के बारे में:

  • शुरुआत: G-7 की स्थापना 1975 में हुई थी। इसका उद्देश्य तत्कालीन ऊर्जा संकट के चलते आर्थिक और वित्तीय सहयोग बढ़ाना था।
  • स्वरूप: यह एक अनौपचारिक समूह है। इसमें विकसित और लोकतांत्रिक देश शामिल हैं। इसके सदस्य हैं: फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंगडम (UK), जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा।
    • रूस 1998 से 2014 तक इस समूह का हिस्सा था। उस समय इसे G-8 कहा जाता था।
    • मार्च 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा करने के कारण इसे समूह से निलंबित कर दिया गया था।
  • उद्देश्य और एजेंडा: G-7 हर साल बैठक करता है। बैठक में महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों जैसे- वैश्विक आर्थिक गवर्नेंस, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा, ऊर्जा नीति और अन्य महत्वपूर्ण वैश्विक विषयों पर चर्चा की जाती है।

 

G-7 की वर्तमान समय में प्रासंगिकता

  • वैश्विक सुरक्षा और संघर्षों पर प्रतिक्रिया:
    • यूक्रेन संकट: G-7 देशों ने आपस में मिलकर रूस पर प्रतिबंध लगाए और रूस की फ्रीज की हुई परिसंपत्तियों से यूक्रेन को आर्थिक सहायता प्रदान की।
    • चीन नीति: 2025 में G-7 ने ताइवान पर चीन के दबाव की निंदा की और विशेष रूप से 'वन चाइना पॉलिसी' (जिसमें केवल पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मान्यता दी जाती है) को संदर्भित नहीं किया।
      • साथ ही, G-7 ने पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (PGII) लॉन्च की। इसका उद्देश्य चीन की बेल्ट एंड रोड पहल को प्रतिसंतुलित करना है।
  • अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के एजेंडा को प्रभावित करता है: जैसे- संयुक्त राष्ट्र (UN), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक आदि।
    • टैक्स गवर्नेंस (कर नीति): भारत G-7 और OECD/G-20 के बेस इरोजन एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (BEPS) पर आधारित इंक्लूसिव फ्रेमवर्क का समर्थन किया है। इसका उद्देश्य वैश्विक कर नियमों को न्यायपूर्ण और स्थिर बनाना तथा लाभ स्थानांतरण तथा कंपनियों के बीच अनुचित टैक्स प्रतिस्पर्धा को रोकना है।
    • मनी लॉन्ड्रिंग (धन-शोधन) के खिलाफ कदम: वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) की स्थापना G-7 ने 1989 में की गई थी। इसका उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ ठोस उपाय विकसित करना और इन उपायों के प्रवर्तन की निगरानी करना है।
  • सतत और डिजिटल गवर्नेंस: उदाहरण के लिए- ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GPAI) और हिरोशिमा AI प्रोसेस जैसे प्रयासों के माध्यम से G-7 नैतिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, पारदर्शिता, डेटा सुरक्षा और साइबर सुरक्षा को बढ़ावा दे रहा है।
    • इसके अलावा G-7 क्लाइमेट क्लब 2050 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को पाने के लिए वैश्विक सहयोग को प्रोत्साहित कर रहा है।
  • ग्लोबल साउथ के साथ संलग्नता: G-7 ने भारत, दक्षिण अफ्रीका, ब्राज़ील जैसे गैर-सदस्य देशों से संवाद कर ग्लोबल साउथ के साथ अपनी साझेदारी मजबूत की है।
  • लोकतंत्रों का समूह": G-7 एक ऐसा समूह है, जो नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था, मानवाधिकारों, और लोकतांत्रिक मूल्यों का समर्थन करता है।
    • उदाहरण के लिए: यह चीन और रूस जैसे सत्तावादी देशों के प्रभाव को संतुलित करने के लिए एक साझे प्रतिरोध के रूप में कार्य करता है।

G-7 के समक्ष मौजूद प्रमुख चुनौतियां 

  • अर्थव्यवस्था में गिरावट: 1980 के दशक में G-7 की वैश्विक GDP में लगभग 70% हिस्सेदारी थी, लेकिन 2021 तक यह घटकर लगभग 44% रह गई है। अब उभरती अर्थव्यवस्थाएं (जैसे कि चीन, भारत आदि) विकास का नेतृत्व कर रही हैं।
  • आम सहमति-आधारित निर्णय प्रक्रिया: इस प्रक्रिया में निर्णय लेने में काफी कठिनाई होती है, जिससे निर्णायक कार्रवाई में बाधा आती है। उदाहरण के तौर पर 51वें G-7 ने यूक्रेन युद्ध पर ठोस वक्तव्य जारी नहीं किया, क्योंकि अमेरिका ने इसका विरोध किया था।
  • कानूनी प्राधिकार का अभाव: G-7 एक अनौपचारिक मंच है। इसके पास स्थायी सचिवालय या बाध्यकारी कानूनी ढांचा नहीं है। इस कारण इसके निर्णयों का पालन करना अनिवार्य नहीं है। इससे सामूहिक कार्रवाई की क्षमता सीमित हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए- 2025 का कनानस्किस वाइल्डफायर चार्टर स्वैच्छिक अनुपालन पर निर्भर करता है।
  • ग्लोबल साउथ का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व: भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया और नाइजीरिया जैसी प्रमुख उभरती शक्तियां तथा अफ्रीकन यूनियन (AU) जैसे समूह G-7 में शामिल नहीं हैं।
  • वैकल्पिक समूहों से प्रतिस्पर्धा: ब्रिक्स प्लस जैसे समूह G-7 का एक विकल्प प्रदान करते हैं, जिनका प्रतिनिधित्व ज्यादा व्यापक है।

G-7 में भारत के रणनीतिक हित

  • पश्चिम और ग्लोबल साउथ के बीच रणनीतिक संतुलन: भारत स्वयं को विकसित पश्चिमी देशों (G-7) तथा विकासशील देशों (ग्लोबल साउथ) के बीच एक सेतु के रूप में प्रस्तुत करता है।
  • आर्थिक और तकनीकी सहयोग: उदाहरण के लिए, भारत G-7 की PGII (पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट) जैसी पहलों का समर्थक रहा है। PGII का उद्देश्य विकासशील देशों में अवसंरचना में निवेश करना है।
  • लोकतंत्र और रणनीतिक प्रभाव: भारत का लोकतांत्रिक ढांचा और आर्थिक वृद्धि (भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है) उसे G-7 चर्चाओं में एक प्रभावशाली देश बनाते हैं।
  • द्विपक्षीय वार्ताओं का मंच: उदाहरण के लिए- भारतीय प्रधान मंत्री ने कनाडा के प्रधान मंत्री से भेंट कर बिगड़ते संबंधों को सुधारने की कोशिश की।

निष्कर्ष 

G-7 देशों को अपनी सोच अधिक समावेशी बनानी चाहिए तथा ऐसा एजेंडा तय करना चाहिए, जो आज की वैश्विक परिस्थितियों के अनुकूल हो। यह भारत के लिए एक अवसर है, जिसमें वह अधिक न्यायपूर्ण और समावेशी निर्णय प्रक्रिया का समर्थन कर सकता है, और ग्लोबल साउथ और विकसित देशों के बीच एक सेतु की भूमिका निभा सकता है। 

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