आपातकाल के 50 साल (50 years of Emergency) | Current Affairs | Vision IAS
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आपातकाल के 50 साल (50 years of Emergency)

21 Jul 2025
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

25 जून, 1975 को भारत में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की गई थी, जो 21 मार्च, 1977 तक प्रभावी रहा था। इस वर्ष (2025) इस घटना को 50 साल पूरे हुए हैं।

1975 में आपातकाल क्यों लगाया गया था?

  • सामाजिक अशांति: उस समय देश में सरकार के खिलाफ व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन, हड़तालें और आंदोलन हो रहे थे। इनमें जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुआ जेपी आंदोलन विशेष था। इस आंदोलन ने इंदिरा गांधी की सरकार पर गंभीर सवाल उठाए थे। इन सब के चलते सरकार ने दावा किया कि देश में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए आपातकाल लगाना जरूरी है।
  • 1971 के युद्ध के बाद आर्थिक संकट: युद्ध के बाद देश गंभीर आर्थिक समस्याओं, जैसे- महंगाईबेरोजगारी और आर्थिक ठहराव से जूझ रहा था। वैश्विक तेल संकट ने इस स्थिति को और बिगाड़ दिया।
  • राजनीतिक कारण: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राजनारायण' वाद में इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया। साथ ही, उन पर चुनाव में गड़बड़ी करने का आरोप भी लगा था। न्यायालय के इस फैसले और बढ़ती राजनीतिक अशांति के चलते इंदिरा गांधी ने सत्ता को अपने हाथ में रखने के उद्देश्य से आपातकाल की घोषणा कर दी।

आपातकाल के दौरान हुए प्रमुख संविधान संशोधन

  • 38वां संशोधन (1975): इस संशोधन ने राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की उद्घोषणा को न्यायिक समीक्षा से बाहर कर दिया। इसमें उपबंध किया गया कि अनुच्छेद 352, 356 और 360 के तहत राष्ट्रपति का निर्णय 'अंतिम एवं निर्णायक' होगा।
  • 39वां संशोधन (1975): इसने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और लोक सभा अध्यक्ष के चुनाव विवादों को तय करने के तरीके में बदलाव किया।
    • अब ये विवाद संसद द्वारा निर्धारित किसी प्राधिकरण द्वारा तय किए जाने थे। इसका अर्थ था कि इन पदों को न्यायपालिका के न्यायिक दायरे से प्रभावी ढंग से बाहर कर दिया गया।
  • 42वां संशोधन (1976): इसे 'लघु संविधान' भी कहा जाता है, क्योंकि इसके द्वारा संविधान में कई बड़े महत्वपूर्ण बदलाव किए गए थे:
    • अनुच्छेद 31C के तहत राज्य की नीति के निदेशक तत्वों को मौलिक अधिकारों के ऊपर प्राथमिकता दी गई।
    • सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट्स की शक्तियों को कई तरह से कम किया गया:
      • संविधान में अनुच्छेद 32A जोड़ा गया, जिसने सुप्रीम कोर्ट को राज्य के कानूनों की संवैधानिक वैधता पर विचार करने की शक्ति से वंचित कर दिया। (हालांकि, इसे 43वें संविधान संशोधन द्वारा निरस्त कर दिया गया था)
      • अनुच्छेद 131A और 226A के तहत हाई कोर्ट्स को केंद्र सरकार के कानूनों की समीक्षा से वंचित किया गया था। 
    • लोक सभा का कार्यकाल 5 साल से बढ़ाकर 6 साल कर दिया गया था।
    • इसने संसद को संविधान में संशोधन करने की लगभग असीमित शक्ति दे दी। इसके लिए अनुच्छेद 368 में खंड 4 और 5 शामिल किए गए थे।
  • आपातकाल के दौरान, नागरिकों की स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था उदाहरण के लिए- ADM जबलपुर वाद। मीडिया पर सेंसरशिप लगा दी गई थी। आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (MISA) जैसे कानूनों के तहत बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की गई थी। 

आपातकाल के बाद सुधार

  • शाह आयोग: मई 1977 में शाह आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग का मुख्य कार्य आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों की जांच करना था। इनमें जबरन बंध्याकरण, सरकारी कर्मचारियों को ज़बरदस्ती रिटायर करना, न्यायालय व संसद पर विविध निषेध आदि सत्ता दुरुपयोग शामिल थे।
  • आंतरिक आपातकाल के बाद 44वां संविधान संशोधन अधिनियम (1978):
    • अनुच्छेद 352 में संशोधन (आपातकाल की घोषणा से संबंधित):
      • आपातकाल लगाने के पुराने आधार "आंतरिक अशांति" को बदलकर व्यापक व स्पष्ट शब्द "सशस्त्र विद्रोह" किया गया। यह बदलाव इसलिए किया गया, ताकि "आंतरिक अशांति" जैसी अस्पष्ट अर्थ वाली शब्दावली का भविष्य में गलत इस्तेमाल नहीं किया जा सके।
      • भविष्य में जल्दबाजी में लिए गए फैसलों पर रोक लगाने के लिए कुछ सुरक्षा उपाय शामिल किए गए। अब राष्ट्रपति के लिए आपातकाल की उद्घोषणा करने से पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल से लिखित में सहमति लेना जरूरी कर दिया गया।
      • आपातकाल की घोषणा को एक माह के भीतर विशेष बहुमत द्वारा संसद से अनुमोदन प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया गया।
    • मौलिक अधिकार: अनुच्छेद 359 का दायरा सीमित किया गया। इसका अर्थ यह था कि आपातकाल के दौरान भी नागरिकों के अपराधों के लिए दोषसिद्धि से संरक्षण का अधिकार (अनुच्छेद 20) तथा जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21) आपातकाल के दौरान लागू रहेंगे अर्थात् इन्हें निलंबित नहीं किया जा सकेगा।
      • संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटाकर अनुच्छेद 300A के तहत एक सामान्य संवैधानिक अधिकार बना दिया गया।
    • अनुच्छेद 257A का निरसन: यह अनुच्छेद केंद्र सरकार को किसी भी राज्य में कानून-व्यवस्था की गंभीर स्थिति से निपटने के लिए केंद्र के किसी भी सशस्त्र बल या अन्य बल को तैनात करने की अनुमति देता था। इस अनुच्छेद को हटा दिया गया।
    • लोक सभा का कार्यकाल: अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन करके लोक सभा का कार्यकाल 6 साल से घटाकर वापस 5 साल कर दिया गया।
    • न्यायिक समीक्षा की बहाली: इस संशोधन ने न्यायपालिका की उस शक्ति को वापस बहाल कर दिया, जिसके माध्यम से वह राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति से संबंधित चुनाव विवादों की न्यायिक समीक्षा कर सकती थी।

राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) के बारे में

  • आधार: राष्ट्रीय आपातकाल केवल निम्नलिखित तीन स्थितियों में ही घोषित किया जा सकता है:
    • युद्ध (War);
    • बाहरी आक्रमण (External aggression); तथा 
    • सशस्त्र विद्रोह (Armed rebellion)।
  • उद्घोषणा: राष्ट्रपति आपातकाल तब उद्घोषित कर सकते हैं, जब कैबिनेट की लिखित सिफारिश उन्हें प्राप्त हो जाती है।
  • संसदीय स्वीकृति: आपातकाल की घोषणा को एक माह के भीतर संसद के दोनों सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) से अनुमोदन मिलना जरूरी है।
    • यदि इस दौरान लोक सभा भंग हो जाती है, तो नई लोक सभा के गठित होने के 30 दिनों के भीतर इसे अनुमोदन मिलना अनिवार्य है। इस बीच, राज्य सभा का अनुमोदन जरूरी हो जाता है।
  • आवश्यक बहुमत: आपातकाल की उद्घोषणा के संकल्प को विशेष बहुमत यानी सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत से पारित होना आवश्यक है।
  • अवधि: आपातकाल एक बार में अधिकतम 6 महीने तक जारी रह सकता है। हर 6 महीने में पुनः संसद की मंजूरी से इसे अनिश्चितकाल तक बढ़ाया जा सकता है।
  • रद्द करना: आपातकाल को राष्ट्रपति कभी भी समाप्त कर सकता है। यदि लोक सभा में आपातकाल के विरोध में प्रस्ताव पारित हो जाए, तो उसे हटाना अनिवार्य है। यह शक्ति राज्य सभा को प्राप्त नहीं है। 

राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के प्रभाव

  • केंद्र-राज्य संबंधों पर:
    • केंद्र सरकार किसी भी विषय पर राज्यों को निर्देश दे सकती है।
    • अनुच्छेद 250 के तहत संसद राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है।
    • राष्ट्रपति राज्यों और केंद्र के बीच राजस्व वितरण में बदलाव कर सकता है।
  • लोक सभा और विधान सभाओं के कार्यकाल पर:
    • संसद कानून बनाकर लोक सभा और राज्य विधान सभाओं का कार्यकाल हर बार 1 वर्ष तक बढ़ा सकती है।
    • हालांकि, यह अवधि आपातकाल समाप्त होने के 6 महीने से आगे नहीं बढ़ाई जा सकती।
  • मौलिक अधिकारों पर:
    • अनुच्छेद 358 के तहत: अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता का अधिकार) स्वतः निलंबित हो जाता है। हालांकि, यह प्रावधान केवल युद्ध या बाहरी आक्रमण के कारण लगे आपातकाल के दौरान ही लागू होता है। यह बदलाव 44वें संविधान संशोधन द्वारा किया गया था।
    • अनुच्छेद 359 के तहत: राष्ट्रपति के आदेश द्वारा अन्य मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर) को निलंबित किया जा सकता है।

निष्कर्ष

आपातकाल से मिली सीख आज भी बहुत प्रासंगिक है। राष्ट्रीय हित या स्थिरता के नाम पर सत्ता के दुरुपयोग का खतरा हमेशा बना रहता है, जिससे असंतोष की अभिव्यक्ति को दबाया जा सकता है और संवैधानिक अधिकारों का हनन किया जा सकता है। यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि लोकतंत्र को सुरक्षित रखने के लिए सतर्कता बनाए रखना जरूरी है, ताकि संवैधानिक सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रताएं बनी रहें।

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