सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश ने छठे 'चीन-दक्षिण एशिया सहयोग मंच' के दौरान अपनी पहली त्रिपक्षीय बैठक आयोजित की।
अन्य संबंधित तथ्य
- इस बैठक का उद्देश्य क्षेत्रीय सहयोग और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना था, जिसमें चीन दोनों देशों के बीच संवाद को सुगम बनाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा था।
- यह चीन द्वारा भारत के पड़ोस में शुरू की गई दूसरी त्रिपक्षीय वार्ता है। इससे पहले चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों के बीच भी इसी तरह की बैठक हुई थी।
- तीनों देशों ने निम्नलिखित पर कार्य करने पर सहमति प्रकट की-
- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में आपसी सहयोग को और आगे तक ले जाना;
- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का अफगानिस्तान तक विस्तार करना; तथा
- क्षेत्रीय आपसी संपर्क के नेटवर्क को मजबूत करना।
- तीनों देशों ने निम्नलिखित पर कार्य करने पर सहमति प्रकट की-
- इसके अलावा, कई विश्लेषण चीन, तुर्किये और पाकिस्तान के बीच उभरते रणनीतिक गठजोड़ की ओर भी इशारा कर रहे हैं, जैसा कि पहलगाम संकट के दौरान उनकी समन्वित प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट होता है।
- ये गतिविधियां इस क्षेत्र में भारत के पारंपरिक प्रभाव को चुनौती देती हैं। चीन का उद्देश्य अफगानिस्तान से लेकर बंगाल की खाड़ी तक एक रणनीतिक व सामरिक प्रभाव क्षेत्र बनाना है।
इन त्रिपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने वाले कारक
- ऐतिहासिक पहलू: पाकिस्तान और चीन दोनों के भारत के साथ लंबे समय से सीमा विवाद रहे हैं। 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद चीन व पाकिस्तान की रणनीतिक साझेदारी काफी गहरी हो गई थी।
- चीन की आक्रामक क्षेत्रीय नीति: दक्षिण एशिया में अपना भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ाकर क्षेत्रीय वर्चस्व स्थापित करना और हिंद महासागर के व्यापार मार्गों तक पहुंच हासिल करना।
- भारत के खिलाफ रणनीतिक संतुलन स्थापित करना: बांग्लादेश जैसे देश भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को कमतर करने और अधिक रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करने के लिए चीन के साथ संबंधों का लाभ उठाते हैं।
- अवसंरचना कूटनीति: चीन भारत के पड़ोसी देशों को तीव्र गति से और बड़े पैमाने पर अवसंरचना के विकास के लिए धन उपलब्ध करा रहा है।
दक्षिण एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव
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भारत के लिए चीन के बढ़ते प्रभाव से जुड़ी चिंताएं/ निहितार्थ
- भू-रणनीतिक घेराबंदी: चीन ने 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' रणनीति के तहत कई सामरिक बंदरगाहों पर पहले ही अपनी मौजूदगी स्थापित कर ली है। उदाहरण के लिए– हंबनटोटा बंदरगाह (श्रीलंका)।
- यदि बांग्लादेश की जमीन का विद्रोही गतिविधियों को बढ़ावा देकर पूर्वोत्तर भारत को अस्थिर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
- समानांतर क्षेत्रीय सहयोग: चीन द्वारा बनाए गए वैकल्पिक क्षेत्रीय मंचों के कारण भारत-नेतृत्व वाले मंच जैसे बिम्सटेक (BIMSTEC) का महत्त्व कम हो सकता है।
- बिम्सटेक/ BIMSTEC- बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल।
- क्षेत्रीय प्रभाव में कमी: उदाहरण के लिए- बांग्लादेश ने तीस्ता नदी परियोजना में चीन को शामिल करने में रुचि व्यक्त की है, जो लंबे समय से भारत और बांग्लादेश के बीच विवाद का विषय रही है।
- भारत की कनेक्टिविटी संबंधी पहलों पर प्रभाव: BRI परियोजनाओं को बढ़ावा मिलने से भारत की पहलें, जैसे BBIN (बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल) और भारत–मध्य पूर्व –यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकती हैं।
भारत द्वारा अपनाई जाने वाली रणनीति
- रणनीतिक साझेदारियों के माध्यम से संतुलन: भारत को दक्षिण एशिया में चीनी प्रभाव को संतुलित करने के लिए जापान, अमेरिका जैसे समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए। उदाहरण के लिए, क्वाड (QUAD)।
- विकास परियोजनाओं का क्रियान्वयन: विदेश मंत्रालय को एक विशेष सेल स्थापित करनी चाहिए, जिसके माध्यम से पड़ोसी देशों के साथ परियोजनाओं और पहलों के लिए समन्वय किया जा सके।
- डेवलपमेंट फंड: बिम्सटेक जैसे क्षेत्रीय मंचों के अधीन कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए एक क्षेत्रीय विकास कोष स्थापित करने की संभावना पर विचार करना चाहिए।
- द्विपक्षीय और बहुपक्षीय/ क्षेत्रीय फ्रेमवर्क्स: बहुपक्षीय और क्षेत्रीय फ्रेमवर्क्स की नियमित समीक्षा करनी चाहिए, ताकि इन्हें बदलती क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुसार ढाला जा सके।
- भारत को अपनी "एक्ट ईस्ट पॉलिसी" से बेहतर परिणाम हासिल करने के लिए सक्रिय रूप से कार्य करना चाहिए।
- RIC के माध्यम से जुड़ाव: हाल ही में, चीन और रूस ने RIC (रूस-भारत-चीन) को फिर से सक्रिय करने में रुचि दिखाई है। इसे 1990 के दशक के अंत में रूस ने शुरू किया था, लेकिन 2020 के गलवान घाटी संघर्ष जैसे कारकों के कारण यह निष्क्रिय अवस्था में है।
निष्कर्ष
चीन–पाकिस्तान–बांग्लादेश की त्रिपक्षीय बैठक दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में एक अहम घटनाक्रम है। भारत के लिए जरूरी है कि वह अपनी विदेश नीति को सक्रिय, समावेशी और संतुलित बनाए। इसमें भारत को उसके आर्थिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव से मदद मिल सकेगी। साथ ही, भारत अपने हितों की रक्षा कर सकेगा और पड़ोस में अपना प्रभाव को बनाए रख सकेगा।