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आक्रमणों का विरोध करने वालों का जश्न मनाना अंधराष्ट्रवाद नहीं है - यह इतिहास को पुनः प्राप्त करना है

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भारत की सभ्यता की यात्रा

भारत का इतिहास आध्यात्मिकता, विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में निरंतर विकास से जुड़ा है। हालांकि, इस परंपरा को कायम रखने वाले हिंदू साम्राज्यों की सामूहिक स्मृति मुख्यधारा की चेतना में कम हो गई है।

ऐतिहासिक विलोपन

18वीं से 16वीं शताब्दी के बीच, कई आक्रमणों ने भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को निशाना बनाया। 12,000 से ज़्यादा मंदिरों को अपवित्र किया गया या ध्वस्त कर दिया गया, और भारत की ऐतिहासिक कहानी को बदलने की कोशिश की गई।

प्रतिरोध और सामंजस्य

  • विजयनगर साम्राज्य:
    • इस्लामी विस्तार के विरुद्ध एक दक्षिणी मोर्चा।
    • हरिहर, बुक्का और कृष्णदेवराय जैसे शासकों के अधीन यह हिंदू राजनीति, वास्तुकला और शासन का केंद्र बन गया।
    • 1565 में तालिकोटा के युद्ध में इसका पतन एक सभ्यतागत विघटन था।
  • शिवाजी महाराज:
    • सांस्कृतिक दृष्टि और आध्यात्मिक भक्ति का प्रतिनिधित्व किया।
    • स्वराज की घोषणा की गई, जिसमें राजनीतिक स्वतंत्रता से परे सभ्यतागत पुनरुद्धार पर जोर दिया गया।
    • उनके शासन में बहुलवाद और योग्यतावाद जैसी विशेषताएं शामिल थीं।

आधुनिक प्रतिरोध: स्वामी विवेकानंद

19वीं सदी में स्वामी विवेकानंद ने भारत को उसकी असली पहचान की याद दिलाकर मनोवैज्ञानिक उपनिवेशवाद का मुकाबला किया। 1893 में विश्व धर्म संसद में उनके संबोधन में भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत पर जोर दिया गया था।

निष्कर्ष

भारत के समृद्ध इतिहास को संरक्षित करने के लिए, सभ्यता के गौरव के उत्सव और आख्यानों को पुनः प्राप्त करना आवश्यक है, जिसमें सत्य और स्मृति पर जोर दिया जाता है। यह प्रयास शिवाजी और विवेकानंद जैसी महान विभूतियों द्वारा निर्देशित संतुलन को बहाल करने और भारत के संप्रभु अतीत का सम्मान करने से संबंधित है।

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  • indian civilisation
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