धर्मनिरपेक्षता सिर्फ़ एक शब्द नहीं है। यह भारत और उसके संविधान का मूल है | Current Affairs | Vision IAS

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धर्मनिरपेक्षता सिर्फ़ एक शब्द नहीं है। यह भारत और उसके संविधान का मूल है

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भारतीय संविधान में "धर्मनिरपेक्ष" शब्द का समावेश

"धर्मनिरपेक्ष" शब्द को भारत के संविधान की प्रस्तावना में 42वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से 1976 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में आपातकाल के दौरान जोड़ा गया था। यह शब्द मौलिक स्वतंत्रता और प्रेस सेंसरशिप पर दमन के बीच जोड़ा गया था। 

42वें संशोधन के विवादास्पद परिवर्तन

  • व्यक्तिगत अधिकारों में कटौती।
  • न्यायपालिका की न्यायिक समीक्षा की शक्ति को कम कर दिया गया।
  • संसद को संविधान में संशोधन की असीमित शक्तियाँ प्रदान की गईं।
  • राज्यों से शक्तियां केंद्र को हस्तांतरित कर दी गईं, जिससे संघीय ढांचा प्रभावित हुआ।

अलोकतांत्रिक संदर्भ के बावजूद, न्यायालयों द्वारा संविधान के मूल ढांचे के भाग के रूप में "धर्मनिरपेक्ष" शब्द को शामिल किया जाना बरकरार रखा गया है, जैसा कि 1973 में ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले में पुष्टि की गई थी। 

संविधान में धर्मनिरपेक्षता

  • अनुच्छेद 25 अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने के अधिकार की गारंटी देता है।
  • प्रस्तावना में न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर जोर दिया गया है, जिसमें स्वाभाविक रूप से धर्मनिरपेक्षता भी शामिल है। 

भारतीय धर्मनिरपेक्षता, अपने विशिष्ट चरित्र के कारण धर्म और राज्य के बीच सख्त अलगाव लागू नहीं करती, बल्कि सभी धर्मों को बराबर सम्मान देती है। यह गतिशील प्रकृति निरंतर बहस और पुनर्परिभाषाओं को जन्म देती है। 

समकालीन घटनाक्रम 

  • "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" और "वसुधैव कुटुंबकम" पर सरकार का जोर एक समावेशी लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। 

चुनौतियों के बावजूद, उम्मीद बनी हुई है कि भारत की अंतर्निहित बहुलता और संवैधानिक सिद्धांत इसके धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखेंगे। प्रस्तावना में "धर्मनिरपेक्षता" शब्द केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि यह भारत की पहचान और शासन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 

  • Tags :
  • Secularism
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