भारत की आर्थिक स्थिति और असमानता
हाल ही में, भारत सरकार ने 25.5 के गिनी सूचकांक का हवाला देते हुए कहा कि भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के साथ ही सबसे समतावादी समाजों में से भी एक है। यह आँकड़ा भारत को स्लोवाक गणराज्य, स्लोवेनिया और बेलारूस के बाद दुनिया का चौथा सबसे समतावादी देश बनाता है।
गिनी सूचकांक क्या है?
- इतालवी सांख्यिकीविद् कोराडो गिनी द्वारा तैयार किया गया गिनी सूचकांक 0 से 1 के पैमाने पर असमानता को मापता है, जहां उच्चतर मान अधिक असमानता को दर्शाते हैं।
- विश्व बैंक की गरीबी और इक्विटी ब्रीफ के अनुसार, भारत का गिनी सूचकांक 2011-12 के 28.8 से बढ़कर 2022-23 में 25.5 हो गया है।
- हालाँकि, विश्व असमानता डेटाबेस आय असमानता में वृद्धि को दर्शाता है, जिसमें गिनी सूचकांक 2004 के 52 से बढ़कर 2023 में 62 हो गया था।
डेटा संबंधी सीमाएँ और गलत व्याख्याएँ
- भारत असमानता को मापने के लिए उपभोग डेटा का उपयोग करता है, जो आय डेटा की तुलना में असमानता को कम करके आंकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तुलना करने पर उपभोग आधारित गिनी मूल्य भ्रामक हैं।
सर्वेक्षण डेटा संग्रह में चुनौतियाँ
- सर्वेक्षणों में अक्सर सबसे धनी लोगों के आंकड़े शामिल नहीं हो पाते हैं और सैंपल संबंधी कमियाँ भी चुनौती हैं।
- सर्वेक्षण डेटा को आयकर डेटा के साथ एकीकृत करके इन कमियों को दूर किया जा सकता है, जैसा कि विश्व असमानता प्रयोगशाला द्वारा किया गया है।
गिनी सूचकांक की समस्याएं
- गिनी सूचकांक संपत्ति वितरण के चरम स्तरों पर होने वाले परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील नहीं होता, जबकि यह मध्य वर्ग में होने वाले बदलावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होता है।
- पाल्मा अनुपात को एक वैकल्पिक उपाय के रूप में सुझाया गया है, जो जनसंख्या के चरम हिस्सों की आय हिस्सेदारी पर केंद्रित होता है।
असमानता के सटीक माप का महत्व
असमानता को समझना प्रभावी सरकारी नीतियाँ बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक है। यदि असमानता के स्तर को गलत समझा जाए, तो इससे सामाजिक और आर्थिक समस्याएँ बढ़ सकती हैं, जो अंततः असंतोष और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।