ब्रह्मपुत्र पर चीन का बांध निर्माण
चीन ने भारत-तिब्बत सीमा के पास ब्रह्मपुत्र नदी पर 167.8 अरब डॉलर की लागत से एक विशाल जलविद्युत बांध का निर्माण शुरू किया है, जो पूरा होने पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बन जाएगा। इस परियोजना ने भारत और बांग्लादेश में नदी के प्रवाह में संभावित व्यवधान को लेकर चिंताएँ पैदा कर दी हैं।
परियोजना का विवरण
- यह बांध तिब्बत के मेडोग काउंटी में "ग्रेट बेंड" पर स्थित है, जिसकी उत्पादन क्षमता 60,000 मेगावाट है।
- यह यांग्त्ज़ी नदी पर स्थित थ्री गॉर्जेस बांध से भी बड़ा है, जो वर्तमान में विश्व का सबसे बड़ा जलविद्युत स्टेशन है।
उठाई गईं चिंताएँ
- अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बांध को संभावित "वाटर बम" तथा स्थानीय जनजातियों और आजीविका के लिए "अस्तित्व का खतरा" बताया तथा आशंका जताई कि अचानक पानी छोड़े जाने से विनाशकारी बाढ़ आ सकती है।
- विशेषज्ञों ने बाढ़, बांधों की विफलता, भूस्खलन और भूकंप से संबंधित जोखिमों पर प्रकाश डाला है, क्योंकि तिब्बत एक भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र है।
भारत की प्रतिक्रिया
- भारत ने आधिकारिक तौर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन वह नदी पर चीन की गतिविधियों पर नजर रख रहा है।
- विदेश मंत्रालय ने पारदर्शिता और निचले क्षेत्र में आने वाले देशों के साथ परामर्श की आवश्यकता पर बल दिया है।
- भारत, चीनी जलविद्युत परियोजनाओं का मुकाबला करने के लिए प्रवाह प्रबंधन हेतु बांधों के निर्माण पर विचार कर रहा है, जिसमें अरुणाचल प्रदेश में अपर सियांग परियोजना भी शामिल है।
- राष्ट्रीय जल विकास प्राधिकरण जल पुनर्वितरण के लिए ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों को गंगा बेसिन से जोड़ने का प्रस्ताव रखता है।
भारत को जल विज्ञान संबंधी आंकड़े प्राप्त करने के लिए चीन के साथ कूटनीतिक रूप से बातचीत करना चाहिए तथा भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों के साथ आपदा संबंधी तैयारियां भी सुनिश्चित करनी चाहिए।