अमेरिका-भारत व्यापार संबंध: चुनौतियां और रणनीतिक विचार
लोकतांत्रिक मूल्यों और रणनीतिक अभिसरण पर आधारित अमेरिका-भारत व्यापार संबंध विभिन्न आर्थिक और भू-राजनीतिक कारकों के कारण अधिक चुनौतीपूर्ण चरण में प्रवेश कर रहे हैं।
टैरिफ लगाना
- अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर 25% से अधिक टैरिफ लगा दिया है, जिससे व्यापार वार्ता जटिल हो गई है।
- यद्यपि अमेरिका को भारतीय निर्यात भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल 2% से अधिक है, तथापि वस्त्र, रसायन, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटो कलपुर्जे जैसे क्षेत्रों में यह महत्वपूर्ण है।
- टैरिफ से निर्यात आय में 30 बिलियन डॉलर तक की संभावित हानि हो सकती है।
भू-राजनीतिक गतिशीलता
- रूस के साथ भारत के ऊर्जा और रक्षा संबंध अमेरिका के लिए बेचैनी का कारण हैं।
- युद्धकालीन छूट के कारण भारत ने रूस से तेल आयात में वृद्धि की, लेकिन ये छूटें कम हो रही हैं, जिससे विविधीकरण की गुंजाइश बन रही है।
- भारत अमेरिका से एलएनजी और कच्चे तेल सहित नए स्रोतों की खोज कर रहा है।
आर्थिक विचार
- भारत की अर्थव्यवस्था कई निर्यात-निर्भर अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत मजबूत घरेलू खपत से समर्थित है।
- बढ़ती वित्तीय अनिश्चितता, पूंजी बहिर्वाह और कमजोर होते रुपये ने दबाव बढ़ा दिया है।
- भारतीय रिजर्व बैंक को मुद्रास्फीति, ब्याज दरों और विनिमय दर की गतिशीलता को संतुलित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
रक्षा और रणनीतिक साझेदारी
- भारत स्वदेशी उत्पादन और अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के साथ साझेदारी के माध्यम से रूस पर अपनी रक्षा खरीद निर्भरता को दूर कर रहा है।
- रक्षा खरीद में यह बदलाव अमेरिका के साथ रणनीतिक संबंधों को मजबूत कर सकता है।
वैश्विक व्यापार गतिशीलता
- अमेरिकी टैरिफ कार्रवाई से न केवल भारत बल्कि ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, जापान और वियतनाम जैसे सहयोगी देश भी प्रभावित होंगे।
- भारत को घरेलू प्राथमिकताओं का त्याग किए बिना अपने सामरिक महत्व का लाभ उठाने के लिए स्मार्ट सौदेबाजी में संलग्न होना चाहिए।
- संभावित "मिनी-सौदों" में कृषि, ऊर्जा पहुंच और प्रौद्योगिकी जैसे संरचनात्मक मुद्दों का समाधान किया जाना चाहिए।
आर्थिक रणनीति और भविष्य का दृष्टिकोण
- अल्पकालिक अस्थिरता के बावजूद भारत के बाजार के मूल सिद्धांत मजबूत बने हुए हैं।
- वित्तीय सेवाएं, उपभोक्ता वस्तुएं और प्रौद्योगिकी जैसे रणनीतिक क्षेत्र व्यापार तनाव से अछूते हैं।
- भारत की निर्यात पर कम निर्भरता उसे रणनीतिक लचीलापन प्रदान करती है, लेकिन उसे आत्मसंतुष्टि से बचना होगा।
- भारत को वैश्विक स्तर पर लचीला और प्रभावशाली बने रहने के लिए अपने ऊर्जा स्रोतों, रक्षा साझेदारियों और व्यापार स्थितियों में संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।