डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम पर चिंताएँ
गूगल पे, फोनपे और अमेज़न पे जैसी डिजिटल भुगतान कंपनियाँ, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) के साथ मिलकर, DPDP अधिनियम के कुछ प्रावधानों से छूट की माँग कर रही हैं। उनका तर्क है कि प्रत्येक लेनदेन के लिए उपयोगकर्ता की सहमति की आवश्यकता बहुत कठिन है और इससे खासकर छोटी कंपनियों और स्टार्टअप्स पर लागत तथा जटिलताएँ बढ़ सकती हैं।
सहमति संबंधी अनिवार्यताओं से संबंधित मुद्दे
- उपयोगकर्ता की सहमति: अधिनियम में प्रत्येक डेटा प्रसंस्करण गतिविधि के लिए स्पष्ट सहमति पर जोर देने से डिजिटल भुगतान की प्रक्रिया बाधित हो सकता है।
- आवर्ती भुगतान: नए नियमों के तहत बिजली बिल जैसी सेवाओं के लिए स्वचालित डेबिट के लिए नई सहमति की आवश्यकता हो सकती है, जिससे प्रक्रिया जटिल हो जाएगी।
- वृद्धिशील लागतें: अतिरिक्त प्रमाणीकरण और सहमति प्रक्रियाओं की वजह से व्यय काफ़ी बढ़ जाता है, जो विशेष रूप से छोटे प्लेयर्स के लिए चुनौतीपूर्ण होता है।
उद्योग का तर्क
- छोटी कम्पनियों को अनुपालन के तकनीकी और वित्तीय बोझ से जूझना पड़ सकता है, जिससे उनकी वृद्धि में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- कानून के प्रावधानों की व्याख्या में अस्पष्टता है, जिसके कारण अनुपालन संबंधी अनिश्चितताएं पैदा होती हैं।
डेटा फ़िड्युशियरी संबंधी छूट
- DPDP अधिनियम की धारा 17, उपधारा 5, केंद्र सरकार को कुछ डेटा फिड्युशरीज़ को पांच साल तक की अवधि के लिए विशिष्ट प्रावधानों से छूट देने की अनुमति देती है।
- उद्योग इस समय का उपयोग वैकल्पिक समाधान विकसित करने के लिए करना चाहता है जो डेटा संरक्षण और डिजिटल नवाचार के बीच संतुलन स्थापित कर सके।
NPCI का दृष्टिकोण
- NPCI विशेष रूप से छोटे स्टार्टअप्स की वकालत करता है, जिनके पास नए अनुपालन के लिए प्रणालियों में सुधार करने हेतु संसाधनों की कमी हो सकती है।
- गैर-अनुपालन की वित्तीय लागत काफी अधिक है, जिसमें संभावित जुर्माना भी शामिल है। इसके कारण कम्पनियां इन लागतों को अपने परिचालन में शामिल करने के लिए प्रेरित होती हैं, जिससे संभवतः उपभोक्ता प्रभावित होते हैं।