प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों का सशक्तिकरण
सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को पर्यावरणीय क्षति के लिए मुआवज़ा मांगने और भविष्य में होने वाले नुकसान को रोकने के लिए बैंक गारंटी की मांग करने का अधिकार दिया है। यह महत्वपूर्ण निर्णय दिल्ली उच्च न्यायालय के उस पूर्व निर्णय को पलट देता है जिसमें जल एवं वायु अधिनियमों की विशिष्ट धाराओं के तहत बोर्डों की क्षमताओं को सीमित कर दिया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की मुख्य बातें
- क्षतिपूर्ति और मुआवजा: प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर्यावरणीय क्षति के मामलों में क्षतिपूर्ति या प्रतिपूरक क्षतिपूर्ति लगा सकते हैं या बैंक गारंटी की मांग कर सकते हैं।
- धारा 33ए और 31ए की व्याख्या: यह निर्णय जल और वायु अधिनियमों के तहत इन धाराओं की व्याख्या को व्यापक बनाता है, जिससे बोर्डों को अदालत के हस्तक्षेप के बिना क्षतिपूर्ति वसूलने की अनुमति मिल जाती है।
- प्रदूषक द्वारा भुगतान का सिद्धांत: बोर्ड की शक्तियां इस सिद्धांत के अनुरूप होनी चाहिए तथा पर्यावरणीय नुकसान निर्धारित होने पर ही कार्रवाई शुरू करनी चाहिए।
- प्राकृतिक न्याय का उपयोग: कार्रवाइयों में प्राकृतिक न्याय, पारदर्शिता और निश्चितता सुनिश्चित करने वाले प्रक्रियात्मक कानूनों का पालन किया जाना चाहिए।
निहितार्थ और कर्तव्य
- प्रभावी कार्यप्रणाली: बोर्डों को सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा करने का वैधानिक दायित्व प्राप्त है, जिसके लिए उन्हें कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से कार्य करना आवश्यक है।
- उपचारात्मक शक्तियां: सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण बहाली के लिए उचित दंड या उपाय तय करने में बोर्ड की भूमिका पर जोर दिया है।
- मौलिक कर्तव्य: विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच, वायु और जल की सुरक्षा और संरक्षण के कर्तव्य पर जोर दिया गया।
निष्कर्ष
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय पर्यावरण नियामकों के रूप में प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की महत्वपूर्ण भूमिका को पुष्ट करता है, जिनके पास प्रदूषकों के विरुद्ध कार्रवाई करने, जवाबदेही सुनिश्चित करने और क्षतिग्रस्त पर्यावरण की बहाली के लिए पर्याप्त शक्तियां हैं।