अमेरिका-रूस संबंध और परमाणु तनाव
अमेरिकी राष्ट्रपति की हालिया घोषणा अमेरिका-रूस संबंधों में एक महत्वपूर्ण और खतरनाक बदलाव का संकेत है। यह रूस की उस टिप्पणी के जवाब में आया है जिसमें उसने अमेरिकी टैरिफ की धमकियों को युद्ध की ओर एक संभावित कदम बताया था।
प्रमुख घटनाक्रम
- पनडुब्बी तैनाती: अमेरिका ने दो परमाणु पनडुब्बियों को रणनीतिक रूप से तैनात करने का आदेश दिया है। हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं है कि ये परमाणु हथियारों से लैस हैं या पारंपरिक हथियारों से।
- टैरिफ की धमकी: अमेरिका ने शुरू में यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए 50 दिन की समय सीमा तय की थी, बाद में इसे घटाकर 10-12 दिन कर दिया, जिससे रूस पर टैरिफ लगाने और भारत और चीन जैसे व्यापारिक साझेदारों पर द्वितीयक दंड लगाने की धमकी दी गई।
- कूटनीतिक दबाव: प्रस्तावित युद्ध विराम और यूक्रेन के नाटो में शामिल न होने के आश्वासन सहित कूटनीतिक प्रयासों के बावजूद, रूस के साथ केवल सीमित युद्धविराम ही हो पाया।
शांति में बाधाएँ
- भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण: पश्चिमी नेता तत्काल युद्ध विराम की मांग कर रहे हैं, जबकि रूस नाटो के विस्तार से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिए एक व्यापक शांति समझौते की मांग कर रहा है।
- सैन्य गतिशीलता: यूक्रेनी ड्रोन हमलों के बावजूद, रूस युद्ध के मैदान पर रणनीतिक गति बनाए रखता है।
- जटिल कारक: इजरायल के लिए ईरान पर बमबारी जैसी अमेरिकी कार्रवाइयों ने संभवतः रूस के रुख को कठोर बना दिया है।
निष्कर्ष
इन घटनाक्रमों के मद्देनज़र, अमेरिका का परमाणु रुख़ जोखिम भरा है। इसके बजाय, पश्चिमी माँगों और रूसी सुरक्षा चिंताओं के बीच के मतभेदों को दूर करने के कूटनीतिक प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, ताकि सीधे टकराव से बचा जा सके।