दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) संशोधन विधेयक
IBC संशोधन विधेयक भारत में दिवाला और दिवालियापन प्रक्रिया को बेहतर बनाने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण सुधार प्रस्तुत करता है। प्रमुख परिवर्तनों में लुक-बैक अवधि में संशोधन और समूह तथा सीमा-पार दिवालियेपन के प्रावधान शामिल हैं।
लुक-बैक अवधि संशोधन
- अब लुक-बैक अवधि की गणनादिवालियापन प्रक्रिया की शुरुआत (Initiation) से की जाएगी, न कि उसके औपचारिक आरंभ (Commencement) से।
- इस परिवर्तन का उद्देश्य लेन-देन की एक व्यापक श्रेणी को शामिल करना है, विशेष रूप से वे लेन-देन जो परिसंपत्तियों (Assets) को दिवालियापन प्रक्रिया से बाहर रखने के लिए किए गए हों।
- समायोजन में इस चिंता का समाधान किया गया है कि कॉर्पोरेट देनदार, परिहार्य लेनदेन की गुंजाइश को सीमित करने के लिए आवेदन स्वीकार करने में देरी कर सकते हैं।
समाधान पेशेवर और परिसमापक
- समाधान पेशेवरों और परिसमापकों को लेनदेन का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वास्तविक व्यावसायिक परिचालनों को वरीयता प्राप्त लेन-देन या धोखाधड़ी के रूप में गलत वर्गीकृत नहीं किया गया है।
परिसंपत्ति समाधान और सरकारी रियायतें
- यह हाल के IBBI विनियमों के अनुरूप है, जो विलय और बिक्री सहित परिसंपत्तियों के आंशिक समाधान की अनुमति देता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि समाधान प्रक्रिया के दौरान लाइसेंस और परमिट जैसी सरकारी रियायतें वैध रहें।
लेनदारों की समिति (CoC) और न्यायनिर्णयन प्राधिकरण
- परिसमापन के दौरान CoC पर्यवेक्षी भूमिका निभाता है।
- निर्णय देने वाले प्राधिकारी के पास CoC को अस्वीकृति से पहले समाधान योजना की खामियों को दूर करने के लिए 30 अतिरिक्त दिन का समय होता है।
- प्राधिकरण समाधान योजना के कार्यान्वयन और वितरण पद्धति को अलग-अलग अनुमोदित कर सकता है।
महत्व और उद्देश्य
- संशोधनों का उद्देश्य IBC की प्रभावकारिता को बढ़ाना, परियोजनाओं को अधिक बैंक योग्य बनाना तथा कुशल एवं निष्पक्ष दिवालियापन समाधान के संहिता के उद्देश्यों के साथ संरेखित करना है।