असम भूकंप के 75 साल बाद हिमालय बड़ी पनबिजली परियोजनाओं के लिए तैयार | Current Affairs | Vision IAS

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    असम भूकंप के 75 साल बाद हिमालय बड़ी पनबिजली परियोजनाओं के लिए तैयार

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    1950 का असम भूकंप 

    15 अगस्त 1950 को, जब भारत अपना स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, शाम 7:30 बजे एक विनाशकारी भूकंप आया, जिसकी तीव्रता 8.6 थी। इसे भूमि पर अब तक दर्ज किया गया सबसे शक्तिशाली भूकंप माना जाता है। इस भूकंप का गहरा प्रभाव मुख्य रूप से पूर्वोत्तर भारत में पड़ा, जबकि इसके झटके म्यांमार, बांग्लादेश, तिब्बत और दक्षिण चीन तक महसूस किए गए। 

    भौगोलिक और भूकंपीय अवलोकन

    • यह भूकंप हिमालय के पूर्वी छोर के निकट उस सीमा पर 15 किलोमीटर की गहराई में आया, जहाँ भारतीय प्लेट और यूरेशियाई प्लेट (Eurasian Plate) आपस में टकराते हैं। 
    • यह दरार पूर्वी हिमालय के मिश्मी थ्रस्ट से लेकर अरुणाचल प्रदेश के हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट तक फैली हुई है। 

    प्रभाव और विनाश 

    • बुनियादी ढांचे का महत्वपूर्ण विनाश: घरों, खेतों, रेलवे पटरियों और पुलों को गंभीर क्षति हुई।
    • भारत में 1,500 से अधिक लोग मारे गये तथा 50,000 से 100,000 मवेशी मारे गये।
    • असम के शिवसागर-सादिया क्षेत्र में काफी विनाश हुआ था।
    • तिब्बत के क्षेत्रों में भारी क्षति हुई तथा बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए, जिनमें येदोंग गांव का यारलुंग जांग्बो नदी में समा जाना भी शामिल है। 
    • भूकंप के बाद भूस्खलन के कारण नदियाँ अवरुद्ध हो गईं, जिससे अचानक बाढ़ आ गई। इससे और अधिक विनाश हुआ तथा जान-माल की हानि हुई। 

    भूवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि 

    • असम भूकंप ने इस क्षेत्र में प्लेट टेक्टोनिक्स और भूकंपीय गतिविधियों की समझ को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 
    • इस भूकंप में स्ट्राइक-स्लिप गति का एक घटक प्रदर्शित हुआ, जो हिमालयी भूकंपों की विशिष्ट थ्रस्ट प्रणाली से भिन्न था।
    • GPS डेटा पूर्वी हिमालय में जटिल टेक्टोनिक गतिविधि का संकेत देता है, जिसमें भारतीय और यूरेशियन प्लेटों का अभिसरण 10 मिमी से 38 मिमी/वर्ष तक है।
    • पूर्वी हिमालय सिंटैक्सिस (EHS) एक प्रमुख क्षेत्र है, जहां भूकंप की उत्पत्ति होने की संभावना है, जो संरचनात्मक जटिलता और प्लेट घूर्णन की विशेषता रखता है। 

    ऐतिहासिक संदर्भ और भविष्य के निहितार्थ 

    • ऐतिहासिक अभिलेखों और भूवैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि पूर्वोत्तर भारत क्षेत्र ने अतीत में कई महत्वपूर्ण भूकंपों का अनुभव किया है। 
    • इस भूकंप ने हिमालय में बड़ी भूकंपीय घटनाओं की संभावना को रेखांकित किया है, जिससे पता चलता है कि मध्य हिमालय विशेष रूप से संवेदनशील है। 
    • आज, बढ़ते शहरीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास ने भूकंप के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ा दिया है। 
    • पूर्वी हिमालय में जलविद्युत परियोजनाओं सहित भविष्य की विकासात्मक गतिविधियों में भूकंपीय जोखिमों पर विचार किया जाना चाहिए। 

    कुल मिलाकर, असम का भीषण भूकंप हिमालय क्षेत्र में भूकंपीय खतरों की एक स्पष्ट चेतावनी है। चूँकि, भारतीय प्लेट अपनी विवर्तनिक यात्रा जारी रखे हुए है, इसलिए भविष्य के जोखिमों को कम करने के लिए तैयारी और सतर्क विकास आवश्यक है।

    • Tags :
    • Earthquake
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