आत्मनिर्भर भारत और फार्मास्युटिकल क्षेत्रक की चुनौतियाँ
आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा भारत के लिए, विशेष रूप से औषधि क्षेत्रक में, एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। हालाँकि, इसकी सफलता एक मज़बूत गुणवत्ता नियंत्रण ढाँचे पर निर्भर करती है।
सामने आने वाली चुनौतियाँ
- भारत का लक्ष्य फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्रक में अपनी वैश्विक उपस्थिति को बढ़ाना है, लेकिन गुणवत्ता संबंधी मुद्दे गंभीर खतरे पैदा करते हैं।
- खांसी की दवाइयों की गुणवत्ता को लेकर कई बार चिंताएं उठी हैं, जिससे भारतीय औषधि कंपनियों के प्रति विश्वास प्रभावित हुआ है।
हाल की घटनाएँ और सरकारी प्रतिक्रिया
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारतीय दवा निर्माताओं के लिए संशोधित अनुसूची एम मानदंडों का कड़ाई से अनुपालन करने की मांग की है।
- तमिलनाडु औषधि नियंत्रण विभाग की रिपोर्ट में कोल्ड्रिफ कफ सिरप के नमूनों में डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की मात्रा स्वीकार्य स्तर से अधिक पाई गई, जो राजस्थान और मध्य प्रदेश में कम से कम 16 बच्चों की मौत का संदिग्ध कारण है।
- यद्यपि प्रभावित राज्यों में प्रारंभिक परीक्षणों में DEG का पता नहीं चला, परन्तु तमिलनाडु के नमूनों में यह पाया गया।
- रिपोर्ट में उत्पादन सुविधा में अच्छे विनिर्माण और अच्छे प्रयोगशाला प्रथाओं में मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें गैर-फार्माकोपियल ग्रेड प्रोपिलीन ग्लाइकॉल को एक सहायक पदार्थ के रूप में उपयोग किया जाता है, जो संभवतः DEG और एथिलीन ग्लाइकॉल जैसे नेफ्रोटॉक्सिक पदार्थों के साथ दवा को संदूषित करता है।
- केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने संबंधित कंपनी का विनिर्माण लाइसेंस रद्द करने की सिफारिश की है।
- मध्य प्रदेश में प्रभावित बच्चों को यह सिरप देने वाले डॉक्टर को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
सुधार के लिए सिफारिशें
- भारत को खराब गुणवत्ता वाली दवाओं के प्रति शून्य-सहिष्णुता की नीति अपनानी चाहिए और कड़ी निगरानी लागू करनी चाहिए।
- सक्रिय उपाय आवश्यक हैं - कार्रवाई केवल घटना के बाद ही नहीं की जानी चाहिए।
- अच्छे प्रयोगशाला अभ्यासों के लिए मौजूदा ढांचे को दवा बैचों के नियमित, औचक निरीक्षण के साथ सख्ती से लागू किया जाना चाहिए, तथा प्रत्येक उल्लंघन के लिए दंड सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
- सरकार को यह बताना होगा कि जीवन को खतरे में डालने वाली कोई भी लापरवाही अस्वीकार्य है।