2010 राष्ट्रमंडल खेलों का प्रभाव
अभिनव बिंद्रा ने 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों द्वारा प्रशिक्षण रणनीतियों में लाए गए महत्वपूर्ण बदलाव पर प्रकाश डाला, जिसमें लंबे शिविर और बेहतर संसाधन उपलब्धता शामिल थी।
- इसके परिणामस्वरूप निशानेबाजी में भारत को पर्याप्त पदक प्राप्त हुए तथा उसने 101 में से 30 पदक जीते।
- यह सफलता कुश्ती, बैडमिंटन और मुक्केबाजी जैसे अन्य खेलों तक भी देखने को मिली।
अहमदाबाद में 2030 के राष्ट्रमंडल खेलों की संभावनाएं
बिंद्रा ने सवाल उठाया कि क्या 2030 के खेलों में शीर्ष एथलीटों को मिल रहे मौजूदा समर्थन को देखते हुए 2010 जैसा उत्साह दोहराया जा सकेगा।
- वास्तविक अवसर जमीनी स्तर पर विकास और कम प्रतिनिधित्व वाले खेलों को बढ़ावा देने में निहित है।
वैश्विक खेलों में भारत की भागीदारी
ओलंपिक में भारत की भागीदारी सीमित रही है तथा केवल आधे खेलों में ही भारत का प्रतिनिधित्व रहा है।
- भारत मुख्य रूप से कुश्ती में उत्कृष्ट है, जबकि एथलेटिक्स, तैराकी, साइकिलिंग, जिम्नास्टिक और कैनोइंग में इसकी उपस्थिति नगण्य है।
- उल्लेखनीय अपवादों में एथलेटिक्स में नीरज चोपड़ा और जिम्नास्टिक में दीपा करमाकर शामिल हैं।
प्रमुख खेलों में चुनौतियाँ और अवसर
आदिले सुमारिवाला विश्वस्तरीय बनने के लिए एथलेटिक्स और तैराकी जैसे खेलों में उच्च स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता पर बल देते हैं।
- राष्ट्रमंडल खेल इन खेलों के लिए एक कदम साबित हो सकते हैं।
2010 के खेलों से सबक
2010 के खेलों की सफलता के बावजूद, कई संगठनात्मक कमियां देखी गईं, जिससे प्रमुख खेल तैयारियां प्रभावित हुईं।
- कुछ खेलों के लिए मुख्य टीमों का चयन देर से किया गया तथा सुविधाएं भी अपर्याप्त रूप से तैयार की गईं।
- CAG रिपोर्ट में उपकरण खरीद में देरी जैसे मुद्दों पर प्रकाश डाला गया।
अहमदाबाद 2030 के लिए भविष्य की रणनीति
अभिनव बिंद्रा ने मेडल-हैवी ओलंपिक खेलों में भारत की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक सुनियोजित विकास कार्यक्रम पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दिया है।