तालिबान के साथ पाकिस्तान की जटिल गतिशीलता
अगस्त 2021 में तालिबान द्वारा काबुल पर पुनः कब्ज़ा करने के बाद से अफगानिस्तान में तालिबान के साथ पाकिस्तान के संबंध काफी विकसित हुए हैं। शुरुआत में इसे एक सामरिक जीत माना गया था, लेकिन तालिबान की वापसी ने पाकिस्तान के लिए अप्रत्याशित चुनौतियों को जन्म दिया है, विशेष रूप से सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के संदर्भ में।
आतंकवादी हमलों में वृद्धि
- TTP का पुनरुत्थान: तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP), अफगान तालिबान से अलग होने के बावजूद, उनकी विचारधारा को साझा करता है तथा उनकी वापसी से मजबूत हुआ है।
- उग्रवाद संबंधी आंकड़े: 2025 में पाकिस्तान में उग्रवाद संबंधी हिंसा के कारण कम से कम 2,414 लोग मारे गए, जिनमें खैबर पख्तूनख्वा सबसे अधिक प्रभावित हुआ।
पाक-अफगान तनाव
- सीमा पार संघर्ष: पाकिस्तान ने अफगान तालिबान पर TTP आतंकवादियों को शरण देने का आरोप लगाया, जिसके कारण सीमा पार संघर्ष हुआ और पाकिस्तान ने काबुल में हवाई हमले किए।
- युद्ध विराम: कतर ने एक सप्ताह तक चली घातक सीमापार मुठभेड़ों के बाद नाजुक युद्ध विराम की मध्यस्थता की।
कूटनीतिक और रणनीतिक बदलाव
- संरक्षक-ग्राहक से राज्य संबंध: पाकिस्तान द्वारा तालिबान को समर्थन और शरण देने का पूर्व संबंध अब जटिल राज्य-दर-राज्य संबंधों में परिवर्तित हो गया है।
- डूरंड रेखा विवाद: औपनिवेशिक युग की सीमा एक विवादास्पद मुद्दा बनी हुई है क्योंकि काबुल ने इसे मान्यता नहीं दी है।
- भारत की भूमिका: पाकिस्तान तालिबान के साथ भारत के बढ़ते राजनयिक संबंधों से चिंतित है।
पाकिस्तान की रणनीति के परिणाम
- नीतिगत विरोधाभास: तालिबान को पाकिस्तान का ऐतिहासिक समर्थन रणनीतिक गहराई के उद्देश्य से था, लेकिन अब इसके परिणामस्वरूप आंतरिक सुरक्षा चुनौतियां उत्पन्न हो गई हैं।
- अस्थिरता और उग्रवाद: अफगानिस्तान में सैन्य कार्रवाई के माध्यम से सुरक्षा बहाल करने के प्रयास सफल होने की संभावना नहीं है और इससे अस्थिरता बढ़ सकती है।
निष्कर्षतः, हालांकि पाकिस्तान ने शुरू में तालिबान की सत्ता में वापसी को लाभप्रद माना था, लेकिन आतंकवादी गतिविधियों का पुनरुत्थान, जटिल क्षेत्रीय गतिशीलता और नीतिगत विरोधाभासों के साथ मिलकर महत्वपूर्ण सुरक्षा और कूटनीतिक चुनौतियां प्रस्तुत करता है।