सारंडा वन्यजीव अभयारण्य पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में झारखंड सरकार को सारंडा क्षेत्र में एक नए वन्यजीव अभयारण्य की औपचारिक घोषणा करने का आदेश दिया है। सारंडा एक जैव विविधता वाला क्षेत्र है, जो अपने हरे-भरे साल के जंगलों और अतीत में अवैध खनन गतिविधियों के लिए जाना जाता है।
मामले की पृष्ठभूमि
- यह मामला जुलाई 2022 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में दायर एक याचिका से उत्पन्न हुआ, जिसमें सारंडा को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने की मांग की गई थी।
- याचिकाकर्ता ने बताया कि इस क्षेत्र को अविभाजित बिहार के तहत 1968 में "खेल अभयारण्य" घोषित किया गया था, तथा उन्होंने कहा कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत इसे अभयारण्य माना जाना चाहिए।
- NGT द्वारा क्षेत्र के पारिस्थितिक महत्व को स्वीकार करने के बावजूद झारखंड सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिसके परिणामस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा।
सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही
- सर्वोच्च न्यायालय ने झारखंड सरकार को 314 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने का आदेश दिया।
- न्यायालय ने राज्य सरकार की देरी की आलोचना की तथा खनन हितों के संबंध में प्रस्तावित अभयारण्य की सीमाओं की समीक्षा के लिए स्पष्टीकरण मांगा।
- झारखंड सरकार ने अदालत को अपनी प्रतिबद्धता का आश्वासन दिया, लेकिन बाद में सामुदायिक अधिकारों की रक्षा के लिए अभयारण्य के लिए कम क्षेत्रफल का प्रस्ताव रखा, जिस पर अदालत ने समीक्षा करने पर सहमति व्यक्त की।
सारंडा का पारिस्थितिक और आर्थिक महत्व
सारंडा, जिसका अर्थ है "सात सौ पहाड़ियाँ", झारखंड का एक जैविक रूप से समृद्ध वन प्रभाग है, जो लगभग 856 वर्ग किलोमीटर में फैला है। यह हाथियों और भालूओं सहित विविध वन्यजीवों का आश्रय स्थल है, और एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक गलियारे के रूप में कार्य करता है।
खनन का प्रभाव
- न्यायमूर्ति एम.बी. शाह आयोग और अन्य अध्ययनों की रिपोर्ट के अनुसार, अवैध खनन के कारण इस क्षेत्र में वन्यजीव घनत्व और जैव विविधता में काफी कमी आई है।
- सारंडा में लौह अयस्क का महत्वपूर्ण भंडार है, जो भारत के कुल भंडार का 26% है, जिससे खनन गतिविधियों के आर्थिक निहितार्थ उजागर होते हैं।
राज्य की चिंताएँ और जनजातीय अधिकार
- झारखंड सरकार वन अधिकार अधिनियम और अन्य कानूनी प्रावधानों के अनुसार, अभयारण्य घोषणा को जनजातीय अधिकारों और निर्वाह गतिविधियों के संरक्षण के साथ संतुलित करने की आवश्यकता पर बल देती है।
- सारंडा क्षेत्र पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आता है, जहां हो और मुंडा जैसे आदिवासी समुदाय निवास करते हैं।
खनन विवाद
सारंडा क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से खनन विवादों में उलझा रहा है। यूपीए सरकार के दौरान अवैध खनन गतिविधियों को उजागर किया गया था, जिससे लौह अयस्क और मैंगनीज से भारी अवैध मुनाफ़ा कमाया गया था।
सतत खनन पहल
- शाह आयोग के निष्कर्षों के आधार पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने सारंडा के लिए एक स्थायी खनन योजना विकसित की, जिसमें 'प्रवेश और निषेध' क्षेत्रों की रूपरेखा तैयार की गई तथा खनन सीमा निर्धारित की गई।