भारत की समुद्री हरित क्रांति
वैश्विक शिपिंग उद्योग टिकाऊपन की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव के दौर से गुज़र रहा है, जो कड़े उत्सर्जन मानकों, शून्य-कार्बन जहाजों और ईंधनों की ओर वित्तीय बदलावों और तकनीकी प्रगति के कारण संभव हो पाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत इस बदलाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
सरकारी पहलें और नेतृत्व
- भारत ने अपने जहाज निर्माण और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से 69,725 करोड़ रुपये (8 बिलियन डॉलर) के पैकेज को मंजूरी दी है।
- यह निवेश 2047 तक विकसित भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप, कम कार्बन शिपिंग की दिशा में वैश्विक बदलाव में अग्रणी बनने की भारत की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है।
अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) ने 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है।
- यूरोप पहले से ही जहाज उत्सर्जन के लिए कार्बन शुल्क लागू कर रहा है और FuelEU समुद्री विनियमों के माध्यम से ईंधन मानकों को कड़ा कर रहा है।
भारत के सामरिक लाभ
- नवीकरणीय ऊर्जा की कम लागत (लगभग 2 रुपये प्रति किलोवाट घंटा टैरिफ) हरित ईंधन की कीमत को प्रतिस्पर्धी बनाती है।
- हाल ही में हरित अमोनिया के लिए लगभग 52 रुपये प्रति किलोग्राम की बोली लगाई गई है, जिससे वैश्विक बाजार में भारतीय उत्पादन लागत आकर्षक हो गई है।
- भारत का औद्योगिक आधार हरित परिवर्तन के अनुकूल हो रहा है, तथा स्वच्छ ईंधन के लिए उपकरण बनाने की क्षमता भी विकसित हो रही है।
- अगली पीढ़ी के समुद्री ईंधनों को कुशलतापूर्वक संभालने और निर्यात करने के लिए रणनीतिक रूप से स्थित बंदरगाह और कुशल कार्यबल मौजूद हैं।
निवेश और बुनियादी ढांचा विकास
- दीनदयाल, वी.ओ. चिदंबरनार और पारादीप बंदरगाहों को हरित ईंधन केन्द्रों में बदलने की योजना।
- हरित ईंधन की निरंतर मांग और आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय हरित शिपिंग कॉरिडोर बनाने पर ध्यान केंद्रित करना।
आर्थिक और सामरिक प्रभाव
- वैश्विक मानकों के साथ तालमेल बिठाने से निर्यात बाजार तक पहुंच बनी रहेगी और भारत के उद्योगों को कार्बन दंड से सुरक्षा मिलेगी।
- हरित समुद्री क्षेत्र के लिए घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने से रोजगार सृजन होगा और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
- इससे यह सुनिश्चित होगा कि भारत वैश्विक निम्न-कार्बन समुद्री अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख भागीदार बने।
आगे की राह
हरित समुद्री अर्थव्यवस्था के प्रति भारत की प्रतिबद्धता न केवल एक अनुकूलन है, बल्कि परिवर्तन का नेतृत्व करने के लिए एक रणनीतिक पहल है, जो 2047 तक समृद्ध और टिकाऊ विकसित भारत के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण को दर्शाती है।