सुर्ख़ियों में क्यों?
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (GBD) रिपोर्ट के अनुसार, भारत को अब संचारी रोगों की तुलना में गैर-संचारी रोगों के अधिक बोझ का सामना करना पड़ रहा है।
अन्य संबंधित तथ्य
- ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (GBD) रिपोर्ट को बर्लिन में आयोजित विश्व स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) द्वारा जारी किया गया।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

- गैर-संचारी रोगों (NCDs) का बढ़ता बोझ: रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में बीमारियों के बोझ के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी गैर-संचारी रोग हैं। 2023 में, ये 1.80 बिलियन वैश्विक DALYs (दिव्यांगता-समायोजित जीवन वर्ष/ Disability-Adjusted Life Years) के लिए जिम्मेदार थे, जो 2010 के 1.45 बिलियन से अधिक है। इसका तात्पर्य यह है कि 2023 में गैर-संचारी रोगों और इससे जुड़ी दिव्यांगता की वजह से पूरे विश्व में लोगों ने कुल मिलाकर "स्वस्थ जीवन के 1.80 बिलियन वर्ष" खो दिए।
- 2023 में वैश्विक DALYs में NCDs की हिस्सेदारी लगभग दो-तिहाई रही। स्वास्थ्य देखभाल सेवा की उपलब्धता, टीकाकरण और साफ-सफाई में सुधार के कारण संचारी (संक्रामक) रोगों के मामलों में कमी आई है।
- NCDs के प्रमुख कारण: वैश्विक स्तर पर, प्रमुख 'लेवल-3 NCDs' में शामिल हैं; इस्कीमिक हृदय रोग, स्ट्रोक और मधुमेह।
- सबसे तेजी से प्रसार वाले NCDs: 2010 के बाद से आयु मानकीकृत दरों में एंग्जाइटी विकार, अवसाद संबंधी विकार और मधुमेह के मामलों में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई है।
- आयु-मानकीकृत दर (Age-standardized rate) एक सांख्यिकीय माप है, जो विभिन्न आयु संरचनाओं वाली आबादी में स्वास्थ्य से संबंधित दरों (रोगियों की संख्या या मृत्यु दर) की तुलना करने की अनुमति देता है।
गैर-संचारी रोगों के बढ़ते बोझ के कारण
- महामारी के स्वरूप और जनसांख्यिकीय परिवर्तन: भारत में अब संचारी रोगों की जगह जीवनशैली-संबंधी चिरकालिक (Chronic) बीमारियों के मामलों की संख्या बढ़ रही है। इसके लिए शहरीकरण और आबादी में वृद्ध जनों का बढ़ता अनुपात मुख्य कारण हैं। उदाहरण के लिए, टियर 1 और 2 शहरों का तीव्र शहरीकरण।
- अस्वास्थ्यकर जीवनशैली:
- खानपान में बदलाव: फाइबर-युक्त पारंपरिक भोजन की जगह उच्च-कैलोरी और, अत्यधिक वसा युक्त भोजन, अधिक नमक और चीनी वाले प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के सेवन को प्राथमिकता दी जा रही है। जैसे कि फास्ट फूड कल्चर।
- शारीरिक निष्क्रियता: निम्नलिखित कारक चयापचय से जुड़े रोगों और हृदय रोगों के खतरें को बढ़ाते हैं:
- अधिक देर तक बैठे रहने वाली जीवनशैली,
- आवागमन के लिए परिवहन साधनों का अधिक उपयोग और
- शारीरिक गतिविधि कम होना (तेजी से वस्तुओं की डिलीवरी करने वाले ऐप्स के कारण)।
- तंबाकू और शराब का सेवन: विशेष रूप से युवाओं और निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर वाले समूहों में तंबाकू और शराब का बढ़ता उपभोग कैंसर, लीवर, हृदय, और चयापचय विकारों को बढ़ा देता है।
- NCDs के खतरे को बढ़ाने वाले पर्यावरण से जुड़े कारक:
- वायु प्रदूषण (इनडोर और आउटडोर): उद्योग, जीवाश्म ईंधन और जैवभार के दहन से उत्सर्जित PM2.5 कणों के अत्यधिक संपर्क में आने के कारण चिरकालिक श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियां होती हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली में वायु प्रदूषण का उच्च स्तर।
- जैविक प्रभाव से जुड़े खतरे:
- अधिक वज़न/ मोटापा और रक्तचाप: ये सभी अस्वास्थ्यकर जीवनशैली और प्रदूषित पर्यावरण में जीने से जुड़े विकार हैं।
- आनुवंशिक लक्षणों के कारण भी कई लोग गैर-संचारी रोगों के खतरें का अधिक सामना करते हैं।
- मनोसामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी कारक: तनाव, शहरी जीवन के दबाव, नौकरी की असुरक्षा, और सामाजिक अलगाव अस्वास्थ्यकर व्यवहारों को बढ़ावा देकर अप्रत्यक्ष रूप से NCDs के खतरे को बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, 'पीछे छूट जाने का डर' यानी FOMO कल्चर (सोशल मीडिया)।
- सामाजिक-आर्थिक कारक: आय में वृद्धि, शहर की ओर प्रवासन और शिक्षा से जुड़ी असमानताएं स्वास्थ्य संबंधी व्यवहारों को प्रभावित करती हैं। इसलिए अलग-अलग आबादी समूहों में NCD का असमान बोझ देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में तंबाकू का सेवन आम आदत है।
भारत पर गैर-संचारी रोगों का प्रभाव
- मृत्यु का प्रमुख कारण: भारत में 63–65% (2023) मौतों के लिए गैर-संचारी रोग जिम्मेदार हैं। हृदय रोग, कैंसर, चिरकालिक श्वसन बीमारियां और मधुमेह इसके प्रमुख कारण हैं।
- असामयिक मृत्यु: 30–70 वर्ष की आयु के लोगों की मौतों के लिए NCDs बड़ा कारण है।
- रुग्णता और दिव्यांगता: NCDs चिरकालिक बीमारी, दिव्यांगता और दूसरों पर निर्भरता बढ़ाते हैं। ये शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों तथा सभी सामाजिक-आर्थिक समूहों के लोगों के जीवन स्तर को कम करते हैं।
- आर्थिक प्रभाव: विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, NCDs और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के कारण भारत को 2030 तक 4.58 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो सकता है।
- स्वास्थ्य-देखभाल प्रणाली पर दबाव: NCDs का बढ़ता बोझ नैदानिक अवसंरचना, दवाओं, चिरकालिक बीमारी की देखभाल में निवेश की आवश्यकता को बढ़ाता है। इससे विकास संबंधी अन्य प्राथमिकताओं की उपेक्षा करके स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय को बढ़ाना पड़ता है।
- सामाजिक-आर्थिक और विकास संबंधी चुनौतियां:
- NCDs सतत विकास लक्ष्यों (SDG) की दिशा में प्रगति को धीमा करते हैं। इनमें स्वास्थ्य, गरीबी में कमी, और लैंगिक समानता से जुड़े लक्ष्य शामिल हैं।
- दीर्घकालिक दिव्यांगताएं श्रमिकों की उत्पादकता को कम करती हैं और आय असमानता को बढ़ाती हैं।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
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आगे की राह
- स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा: जागरूकता, स्वस्थ आहार, व्यायाम, तंबाकू छोड़ने और शराब के कम सेवन के माध्यम से स्वस्थ जीवनशैली अपनाने को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- बीमारी का जल्दी पता लगाना: 30 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों की मधुमेह, उच्च रक्तचाप और कैंसर के लिए स्क्रीनिंग की जानी चाहिए, ताकि समय पर देखभाल सुनिश्चित हो सके।
- स्वास्थ्य-देखभाल सेवा में सुधार करना: NCD क्लिनिक, गहन देखभाल, रेफरल सेवाओं का विस्तार करना चाहिए और बेहतर स्वास्थ्य देखभाल प्रबंधन के लिए स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
- स्वास्थ्य देखभाल में डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग: निगरानी रखने, निर्णय लेने और दूरस्थ स्थानों से स्वास्थ्य देखभाल विशेषज्ञों की सेवा के लिए टेली-परामर्श, डिजिटल पोर्टल और डेटा प्रणाली का उपयोग किया जाना चाहिए। इसके लिए राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन का उपयोग करने की आवश्यकता है।
- राजकोषीय उपायों का सहारा लेना: रोगों को दूर रखने के लिए तंबाकू, नमक, शक्कर आदि पर कर बढ़ाने जैसे राजकोषीय कदम उठाए जाने चाहिए।
- सतत वित्तपोषण: नियमित रूप से दवाओं की उपलब्धता, निदान (जांच) सुविधाओं और वित्तपोषण सुनिश्चित करना चाहिए, ताकि 2030 तक NCD से होने वाली असामयिक मौतों को एक-तिहाई तक घटाया जा सके, जैसा कि SDG लक्ष्य 3.4 में तय किया गया है।