सुर्खियों में क्यों?
हाल ही में, देशभर के एक लाख से अधिक आदिवासी बहुल गांवों और टोलों में विशेष ग्राम सभाओं का आयोजन किया गया। इस दौरान आदि कर्मयोगी अभियान के एक भाग के रूप में जनजातीय ग्राम विजन 2030 घोषणा-पत्र को अपनाया गया।
जनजातीय ग्राम विजन 2030 घोषणा-पत्र की मुख्य विशेषताएं
- ग्राम-स्तरीय प्राथमिकताएं: प्रत्येक घोषणा-पत्र में ग्राम स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, सामाजिक और वित्तीय समावेशन तथा अवसंरचनाओं के कार्यान्वयन योग्य लक्ष्यों की रूपरेखा प्रदान की गई है।
- संस्थागत तंत्र: प्रत्येक गांव में "आदि सेवा केंद्र" स्थापित किए जाएंगे, जो नागरिकों के लिए सिंगल-विंडो सर्विस सेंटर के रूप में कार्य करेंगे। यहां ग्रामीण प्रत्येक सप्ताह 1 घंटे स्वैच्छिक सेवा (आदि सेवा समय) देंगे।
आदि कर्मयोगी अभियान के बारे में
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जनजातीय शासन
- जनजातीय कार्य मंत्रालय: इसे 1999 में स्थापित किया गया था। इसका उद्देश्य अनुसूचित जनजातियों के एकीकृत सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु संगठित दृष्टिकोण प्रदान करना है।
- पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा/ PESA): इसका उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातीय समुदायों को स्वशासन अपनाने और उनकी मूल मान्यताओं, मूल्यों और जीवन शैली को संरक्षित करने में सशक्त बनाना है।
o यह ग्राम सभाओं को सशक्त बनाता है, उन्हें संसाधनों, भूमि हस्तांतरण, सामाजिक-आर्थिक विकास आदि से जुड़े अधिकार प्रदान करता है।
- पांचवीं और छठी अनुसूची: संविधान के तहत छठी अनुसूची के माध्यम से पूर्वोत्तर के असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्तता प्रदान की गई है।
- वहीं, पांचवीं अनुसूची, छठी अनुसूची में उल्लिखित राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन से संबंधित है।
- प्रथागत जनजातीय संस्थाएं (जैसे- आदिवासी सभाएं, जनजातीय पंचायतें): ऐसी संस्थाएं जनजातीय समुदायों में आंतरिक शासन, संस्कृति, संसाधन प्रबंधन और संघर्ष समाधान में सार्थक भूमिका निभाती हैं। साथ ही, ये संस्थाएं अक्सर औपचारिक पंचायती राज संस्थाओं के साथ सह-अस्तित्व में रहती हैं।
शासन में जमीनी स्तर के नागरिकों को शामिल किए जाने के कारण
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जनजातीय शासन से संबंधित मुद्दे
- पेसा (PESA) के कार्यान्वयन में विद्यमान कमियां: कई राज्यों ने अपने कानूनों में पेसा के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया है। साथ ही, स्थानीय अधिकारियों और जनजातीय समुदायों में पेसा के तहत प्रदान किए गए अधिकारों के बारे में जागरूकता और अधिकारों का उपयोग करने की क्षमता की कमी है।
- उदाहरण के लिए, 1996 में अधिनियमित होने के बावजूद, पेसा अधिनियम अभी तक झारखंड में लागू नहीं किया गया है।
- निर्णय लेने में सीमित भागीदारी: अध्ययनों से पता चला है कि औपचारिक ग्राम पंचायत प्रणाली अक्सर जनजातीय लोगों के हितों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व या उनकी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण सुनिश्चित नहीं कर पाती है।
- इसके अतिरिक्त, पांचवीं अनुसूची वाले राज्यों में गठित की जाने वाली जनजातीय सलाहकार परिषदें (TACs) केवल सलाहकारी भूमिका निभाती हैं और अधिकांश राज्यों में इनका प्रभाव सीमित रहा है।
- भूमि से अलग होना और विस्थापन: कई क्षेत्रों में, जनजातीय लोग बाहरी लोगों या विकास परियोजनाओं के कारण अपनी जमीन खोने के प्रति संवेदनशील हैं।
- यहां तक कि विशेष संवैधानिक संरक्षण प्राप्त क्षेत्रों (जैसे- छठी अनुसूची वाले क्षेत्र) में भी भूमि से अलग होना, विस्थापन और जनजातीय लोगों का सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशियाकरण देखा गया है।
- कल्याणकारी नीतियों का अपर्याप्त कार्यान्वयन: जनजातीय कल्याण को लक्षित करने वाले प्रयास, जैसे- वन अधिकार अधिनियम (FRA) का अक्सर कमजोर क्रियान्वयन होता है।
- नवंबर 2022 तक भूमि के लिए किए गए 38% से अधिक FRA दावों को खारिज कर दिया गया है (केंद्र सरकार)।
- सामाजिक-आर्थिक हाशियाकरण: गरीबी का स्तर बहुत अधिक है, ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 45% और शहरी क्षेत्रों में 24% जनजातीय लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं।
- शिक्षा के निम्न स्तर के कारण अनेक जनजातीय लोग आर्थिक अवसरों से वंचित रह जाते हैं। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट, 2022 के अनुसार भारत में अनुसूचित जनजातियों की साक्षरता दर 72.1% है।
जनजातीय विकास की दिशा में उठाए गए कदम
- प्रधान मंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान (PM JANMAN): यह एक समयबद्ध पहल है जिसका उद्देश्य 18 राज्यों और 1 संघ राज्य क्षेत्र में निवास करने वाले 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
- धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान (DAJGUA): इस मिशन का उद्देश्य चयनित जनजातीय बहुल गाँवों में बुनियादी ढाँचे का विकास करना और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में सुधार लाना है। जहाँ-
- जनसंख्या 500 या उससे अधिक हो और कम से कम 50% जनजातीय निवासी हों,
- आकांक्षी ज़िलों के वे गाँव जहाँ जनजातीय जनसंख्या 50 या उससे अधिक हो।
- अनुसूचित जनजातियों के लिए विकास कार्य योजना (DAPST): इस योजना के तहत, जनजातीय कार्य मंत्रालय के अलावा 41 मंत्रालय/ विभाग प्रत्येक वर्ष अपनी योजनाओं के कुल बजट का एक निश्चित प्रतिशत जनजातीय विकास के लिए आवंटित करते हैं।
- प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना (PMAAGY): इसका उद्देश्य पर्याप्त जनजातीय आबादी वाले गांवों को आदर्श ग्राम में रूपांतरित करना है, जिसमें लगभग 40% जनजातीय आबादी को शामिल किया जाएगा।
- शिक्षा का विस्तार: एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय, राष्ट्रीय फैलोशिप योजना, प्री मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना, उच्च श्रेणी शिक्षा योजना आदि। ये योजनाएं जनजातीय छात्रों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए संचालित की जा रही हैं।
- उद्यमिता को बढ़ावा: जनजातीय उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित के माध्यम से कार्य किया जा रहा है-
- वन धन विकास केंद्र (29 राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों में 4,465 वन धन विकास केंद्र खोलने की स्वीकृति मिली है),
- प्रधानमंत्री जनजातीय विकास मिशन, और
- जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ (TRIFED) आउटलेट्स, जिनके अंतर्गत 118 ट्राइब्स इंडिया आउटलेट्स स्थापित किए गए हैं।
निष्कर्ष
जनजातीय ग्राम विजन 2030 और आदि कर्मयोगी अभियान, जनजातीय विकास के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक व्यापक बदलाव को दर्शाते हैं। ये अधोगामी (top-down) कल्याणकारी मॉडल की जगह उर्ध्वगामी (बॉटम-अप), सामुदायिक-नेतृत्व वाले शासन की ओर बदलाव को दर्शाते है।