सतत विकास लक्ष्यों के 10 वर्ष: भारत की प्रगति (10 YEARS OF SDGS: INDIA’S PROGRESS) | Current Affairs | Vision IAS
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सतत विकास लक्ष्यों के 10 वर्ष: भारत की प्रगति (10 YEARS OF SDGS: INDIA’S PROGRESS)

12 Nov 2025
1 min

In Summary

गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय प्रगति के साथ भारत सतत विकास लक्ष्य सूचकांक में 99वें स्थान पर है, लेकिन 2030 के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उसे डेटा अंतराल, क्षेत्रीय असमानताओं और पर्यावरणीय स्थिरता जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

In Summary

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल में, सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को अपनाए जाने के दस वर्ष पूर्ण हुए हैं। इन्हें वैश्विक लक्ष्य (Global Goals) भी कहा जाता है। इन वैश्विक लक्ष्यों को वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाया गया था।

सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के बारे में 

  • सतत विकास को पहली बार पर्यावरण और विकास पर विश्व आयोग की 1987 की ब्रंटलैंड रिपोर्ट में परिभाषित किया गया था। इसमें कहा गया था कि सतत विकास से तात्पर्य ऐसा विकास जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करे, परंतु भविष्य की पीढ़ियों की अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता से समझौता न करे।
  • 2015 में, संयुक्त राष्ट्र के सभी देशों ने सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा अपनाया। इसमें 17 सतत विकास लक्ष्य (SDG) निर्धारित किए गए हैं, जिनमें 169 उप-लक्ष्य शामिल हैं।
    • SDGs एक ऐसा वैश्विक आह्वान हैं, जिसका उद्देश्य निर्धनता और असमानता को समाप्त करना, पर्यावरण का संरक्षण करना, तथा यह सुनिश्चित करना है कि सभी लोग स्वास्थ्य, न्याय और समृद्धि का लाभ ले सकें। इसलिए यह भी महत्वपूर्ण है कि कोई भी पीछे न छूटे।

SDGs प्राप्त करने की दिशा में प्रगति

  • वैश्विक प्रगति (सतत विकास रिपोर्ट (SDR), 2025 के 10वें संस्करण के अनुसार)
    • SDG सूचकांक में फिनलैंड को 87 अंकों के साथ पहला स्थान दिया गया है। इसके बाद स्वीडन और डेनमार्क का स्थान आता है। औसतन रूप से पूर्वी और दक्षिणी एशिया ने 2015 के बाद से SDGs पर सबसे तीव्र प्रगति दर्शाई है। यह सफलता विशेष रूप से सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों के प्रति उच्च प्रगति से प्रेरित है।
    • केवल 17% SDG लक्ष्य 2030 तक प्राप्त किए जाने की राह पर हैं।
      • संयुक्त राष्ट्र के अधिकांश सदस्य देशों ने बुनियादी सेवाओं और अवसंरचना तक पहुंच से संबंधित लक्ष्यों के मामले में बेहतर प्रगति दर्ज की है, जिनमें शामिल हैं:
        • मोबाइल ब्रॉडबैंड उपयोग और इंटरनेट उपयोग (SDG-9)
        • विद्युत तक पहुंच (SDG-7)
        • 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर और नवजात मृत्यु दर में कमी (SDG-3)
  • भारत की SDGs प्राप्त करने की प्रगति
    • 2025 में भारत पहली बार SDG सूचकांक में शीर्ष 100 देशों में शामिल हुआ। भारत 100 में से 67 अंकों के स्कोर के साथ 99वें स्थान पर है। (SDR, 2025)

SDG

उपलब्धि/उपलब्धियां

SDG 1 (गरीबी उन्मूलन)

2015-2016 और 2019-2021 के बीच 135 मिलियन से अधिक लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकल चुके हैं। (नीति आयोग SDG इंडिया सूचकांक 2023-24)

SDG 2 (भुखमरी का समापन) 

2021-2023 में कुपोषण की दर घटकर 13.7% रह गई है। (SOFI 2024)

SDG 3 (अच्छा स्वास्थ्य और खुशहाली)

मातृ मृत्यु दर प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 130 (2014–16) से घटकर 80.5 (2023) हो गई है। (सतत विकास रिपोर्ट, 2025)

SDG 4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा):

प्राथमिक स्तर पर नामांकन दर अब 99.9% तक पहुंच गई है।  (सतत विकास रिपोर्ट, 2025)

SDG- 5 (लैंगिक समानता)

आधुनिक विधियों से संतुष्ट परिवार नियोजन की मांग 2024 में बढ़कर 77.5% हो गई। (सतत विकास रिपोर्ट, 2025)

SDG 7 (किफायती और स्वच्छ ऊर्जा):

  • वर्ष 2022 में 99.2% आबादी के पास विद्युत तक पहुंच थी। (सतत विकास रिपोर्ट, 2025)

SDG- 9 (उद्योग, नवाचार और अवसंरचना)

  • 2024 में 88.6 करोड़ सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता। (इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया, 2024)

भारत की विकास योजनाओं में  SDGs का एकीकरण

  • संपूर्ण-सरकार दृष्टिकोण: भारत ने SDGs को लागू करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें लक्ष्यों को सरकार के तीनों स्तरों पर (केंद्र, राज्य और स्थानीय) ऊर्ध्वाधर रूप से और विभिन्न मंत्रालयों/ विभागों में क्षैतिज रूप से एकीकृत किया गया है।
    • उदाहरण: नीति आयोग केंद्रीय समन्वय निकाय के रूप में कार्य करता है, जो विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों में SDG कार्यान्वयन को सुगम बनाता है तथा प्रणालीगत संरेखण सुनिश्चित करता है। नीति आयोग का राज्य समर्थन मिशन समावेशी और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए नीचे से ऊपर की ओर (bottom-up) दृष्टिकोण को और सशक्त करता है। 
  • डेटा-संचालित प्रतिस्पर्धी संघवाद: उदाहरण- नीति आयोग का SDG इंडिया सूचकांक, स्कूल शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक, राज्य स्वास्थ्य सूचकांक, समग्र जल प्रबंधन सूचकांक आदि।
  • स्थानीयकरण: उदाहरण- पूर्वोत्तर क्षेत्र जिला SDG इंडेक्स ने सीधे पूर्वोत्तर राज्यों में लक्षित निवेश को बढ़ावा दिया है, जिसमें PM-DevINE योजना के तहत 825 मिलियन डॉलर का निवेश शामिल है।
  • SDGs का संस्थागतकरण: कई राज्यों ने शासन के ढांचे के भीतर SDG की दिशा में किए गए प्रयासों को संस्थागत रूप देने और मुख्यधारा में लाने के लिए समर्पित SDG समन्वय और त्वरण केंद्र स्थापित किए हैं, जिससे जवाबदेही और कार्यान्वयन क्षमता में सुधार हुआ है।
  • समावेशी और न्यायसंगत रूप से ध्यान देना : आकांक्षी जिला कार्यक्रम (ADP) पिछड़े क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का समाधान करता है। इसमें जिम्मेदारियों, विशेषज्ञता और संसाधनों को साझा किया जाता है, जिससे SDGs का न्यायसंगत कार्यान्वयन सुनिश्चित होता है।
  • उदाहरण UNDP रिपोर्ट के अनुसार, आकांक्षी जिलों ने ADP के कार्यान्वयन के केवल 3 वर्षों में ही विकास परिणाम में सुधार का अनुभव किया।

SDGs को प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियां

  • डेटा की उपलब्धता: उदाहरण के लिए, SDG इंडिया सूचकांक 2023-24 राज्य/ संघ राज्य क्षेत्रों के स्तर पर उपयुक्त डेटा की अनुपलब्धता के कारण SDG 17 के संकेतकों को नहीं मापता है।
  • क्षेत्रीय असमानताएं: MPI रिपोर्ट, 2023 के अनुसार, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश भारत के सबसे निर्धन राज्यों के रूप में उभरे हैं, जबकि केरल, सिक्किम, तमिलनाडु ने पूरे भारत में सबसे कम निर्धनता दर्ज की है।
  • वित्तीय बाधाएं: घरेलू स्तर पर संसाधनों को जुटाने में कठिनाई आती है, निजी वित्त तक सीमित पहुंच, और अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग का लाभ उठाने में मौजूद बाधाएं आदि।
  • संस्थागत और शासन संबंधी चुनौतियां: नियोजन में SDGs को मुख्यधारा में लाने के प्रयासों के बावजूद, मंत्रालयों, राज्यों और स्थानीय निकायों में क्षमता और समन्वय अलग-अलग हैं, जिससे एक-समान कार्यान्वयन प्रभावित होता है।
    • उदाहरण: विकासात्मक योजनाओं की प्रगति को मापते समय, मुख्य ध्यान केंद्रीय क्षेत्रक की योजनाओं पर होता है, जबकि राज्य सरकारों द्वारा कार्यान्वित योजनाओं को प्रगति मापने में प्रायः अनदेखा कर दिया जाता है।
  • धारणीयता की चुनौतियां: तीव्र आर्थिक संवृद्धि और पर्यावरण संरक्षण के बीच, विशेषकर नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार, वन संरक्षण, और उत्सर्जन तीव्रता को कम करने के मामले में, संतुलन बनाना कठिन बना हुआ है।
  • महामारी के बाद के प्रभाव: COVID-19 महामारी के कारण हुए सीखने के नुकसान (Learning losses) और स्वास्थ्य सेवाओं के अवरुद्ध होने से विगत वर्षों में मानव विकास की दिशा में प्राप्त उपलब्धियों को पीछे ला दिया है।

आगे की राह

  • डेटा गुणवत्ता: डेटा की उपलब्धता, उसकी गुणवत्ता और निगरानी क्षमता में सुधार करने के लिए राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तरों पर डेटा प्रणाली में सुधार करना और क्षमता निर्माण करना आवश्यक है।
  • वित्त जुटाना: घरेलू स्तर पर राजस्व सृजन में वृद्धि करके, अभिनव वित्त-पोषण साधनों के माध्यम निजी और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी बढ़ाकर वित्तीय संसाधन जुटाने की प्रक्रिया में सुधार करने की आवश्यकता है।
  • शासन: संस्थागत ढांचे में सुधार करके एवं केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों के मध्य समन्वय को सशक्त करके सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। साथ ही, नीतिगत सुसंगतता और वित्तीय संरेखण सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्रक आधारित नीतियों और बजट में SDGs का व्यवस्थित रूप से एकीकरण किया जाना चाहिए।
  • हितधारकों को शामिल करना: अधिक समावेशी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए बहु-क्षेत्रक साझेदारी को बढ़ावा देने एवं नागरिक समाज, शिक्षाविदों और निजी क्षेत्रक सहित व्यापक सामाजिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
  • संधारणीयता: विकास नीतियों में पर्यावरण संधारणीयता को एकीकृत किया जाना चाहिए।
  • उदाहरण: नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार, कचरे से ऊर्जा बनाने वाली परियोजनाओं, जल संसाधन प्रबंधन आदि को प्राथमिकता देना।

निष्कर्ष

SDGs के साथ भारत की एक दशक लंबी यात्रा प्रमुख सामाजिक और अवसंरचना संकेतकों में सार्थक प्रगति को दर्शाती है। सतत संस्थागत समन्वय और समावेशी हितधारक भागीदारी के साथ, भारत 2030 तक SDGs को प्राप्त करने की दिशा में अपनी प्रगति को और अधिक तीव्र कर सकता है।

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