भारत में गिग और प्लेटफ़ॉर्म कार्यबल की वृद्धि
तकनीकी प्रगति और श्रम बाजार की बदलती प्राथमिकताओं के कारण भारत में गिग और प्लेटफ़ॉर्म वर्कफोर्स में उल्लेखनीय वृद्धि होने का अनुमान है। वी. वी. गिरी राष्ट्रीय श्रम संस्थान द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, यह वर्कफोर्स 2047 तक लगभग 6.2 करोड़ (62 मिलियन) तक पहुँच सकता है। यह गैर-कृषि श्रमबल का लगभग 15% हिस्सा होगा।
अध्ययन पद्धति
- इस अध्ययन में नीति आयोग की 2022 की रिपोर्ट से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया गया तथा पूर्वानुमान के लिए एक्सपोनेंशियल स्मूदिंग एरर, प्रवृत्ति, मौसमी मॉडल अपनाया गया।
- यह मॉडल हाल के अवलोकनों को अधिक महत्व देता है तथा गिग श्रमिकों के लिए चक्रवृद्धि विकास पैटर्न का पूर्वानुमान लगाता है।
क्षेत्रक का विस्तार और अनुमान
- शुरुआत में यह गिग कार्य मुख्यतः राइड-शेयरिंग और खाद्य वितरण तक ही सीमित था, लेकिन अब इसका विस्तार स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, रचनात्मक सेवाओं और परामर्श (कंसल्टिंग) जैसे क्षेत्रों में भी हो चुका है।
- नीति आयोग की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक गिग वर्कर्स की संख्या 23 मिलियन तक पहुंचने की संभावना व्यक्त की गई है, जो गैर-कृषि श्रमबल का 7% होगी।
- कुछ सीमित परिस्थितियों में यह वृद्धि 2047 तक 32.5 मिलियन तक ही सीमित रह सकती है।
- आकांक्षात्मक पूर्वानुमानों के अनुसार, गिग नौकरियों की संख्या 90.8 मिलियन होने की संभावना है।
चुनौतियां और सिफारिशें
- श्रमिकों के अधिकार: अध्ययन में गिग वर्कर्स को सामूहिक सौदेबाजी और संघ बनाने के अधिकारों को मान्यता देने की सिफारिश की गई है।
- वर्गीकरण की स्पष्टता: कर्मचारियों और स्वतंत्र ठेकेदारों के बीच स्पष्ट अंतर की मांग की जानी चाहिए, जो श्रम कानूनों और सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच के लिए महत्वपूर्ण है।
- न्यूनतम आय और कार्य स्थितियां: न्यूनतम आय, उचित कार्य घंटे और एल्गोरिदम की जवाबदेही सुनिश्चित करने पर जोर दिया जाता है।
- कौशल विकास एवं सुरक्षा: अनिवार्य व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा मानकों के साथ-साथ प्रशिक्षण एवं कौशल उन्नयन के माध्यम से श्रमिकों को सशक्त बनाने का सुझाव दिया गया है।
- रजिस्ट्री प्रस्ताव: सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुंच में सहायता के लिए प्लेटफॉर्म और गिग वर्कर्स के लिए एक कानूनी राष्ट्रीय रजिस्ट्री का प्रस्ताव करता है।