तिब्बत में मेगा-बांध परियोजना पर एक नजर
चीन की सरकार ने तिब्बत में एक महत्वाकांक्षी जलविद्युत परियोजना शुरू की है, जिसमें यारलुंग त्सांगपो नदी पर 1.2 ट्रिलियन युआन ($167 बिलियन) का एक मेगा-बांध का निर्माण शामिल है। इस पहल का उद्देश्य अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना और स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाना है। हालांकि, जैव विविधता और भारत के साथ भू-राजनीतिक मुद्दों को लेकर चिंताएँ भी मौजूद हैं।
आर्थिक प्रभाव
- इस परियोजना का आकार बहुत बड़ा है। यह थ्री गॉर्जेस बांध से तीन गुना बड़ी है तथा इसकी लागत चार गुना से भी अधिक है।
- ऐसा कहा जा रहा है कि यह 2060 तक कुल-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के चीन के लक्ष्य को हासिल करने में मदद कर सकता है।
भू-राजनीतिक तनाव
- यह बांध भारत के साथ तनाव का एक संभावित स्रोत है, क्योंकि यह नदी ब्रह्मपुत्र में मिलती है, जो भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
- भारत ने चीन के समक्ष औपचारिक रूप से अपनी चिंताएं व्यक्त कर दी हैं तथा इसके जवाब में भारतीय जल विद्युत परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए घरेलू दबाव भी है।
- भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंधों में स्थिरता के क्षण आये हैं, लेकिन सीमा संघर्ष और क्षेत्रीय प्रभाव सहित विभिन्न मुद्दों पर तनाव बना हुआ है।
पर्यावरणीय और तार्किक चुनौतियाँ
- बांध निर्माण से नेशनल नेचर रिजर्व के भीतर जैव विविधता से समृद्ध क्षेत्र प्रभावित हो सकता है तथा रिमोट स्थलों पर जटिल इंजीनियरिंग चुनौतियां भी उत्पन्न हो सकती हैं।
- चीन ने आश्वासन दिया है कि वह पर्यावरण की रक्षा के लिए उपाय लागू करेगा तथा नदी की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।