भारतीय शहरों में जलवायु अनुकूलन और शमन के लिए स्वायत्तता
विश्व बैंक के भारत स्थित कंट्री डायरेक्टर ने जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन में प्रभावी निवेश के लिए भारतीय शहरों में स्वायत्तता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। जिन शहरों के पास निर्णय लेने की अधिक शक्ति है, उन्होंने लचीलेपन और संसाधन प्रबंधन में बेहतर प्रदर्शन किया है।
वित्तीय आवश्यकताएँ और विधायी ढाँचा
- विश्व बैंक की रिपोर्ट का अनुमान है कि भारतीय शहरों को जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढांचे और सेवाओं के निर्माण के लिए 2050 तक 2.4 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी।
- 1992 के 74वें संविधान संशोधन अधिनियम का उद्देश्य शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को सशक्त बनाना है, लेकिन इसे सभी राज्यों में पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है।
- इसमें शहर के प्रशासन और जवाबदेही को बढ़ाने के लिए स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर 74वें संशोधन के लचीले कार्यान्वयन का सुझाव दिया गया है।
शहरीकरण और संबंधित चुनौतियाँ
- अनुमान है कि 2050 तक भारत की शहरी आबादी दोगुनी होकर 951 मिलियन हो जायेगी।
- 2030 तक, शहर सभी नये रोजगार का 70% हिस्सा उत्पन्न करेंगे।
- प्रमुख चुनौतियों में बाढ़ और अत्यधिक गर्मी शामिल हैं।
- बाढ़ से संबंधित वार्षिक नुकसान 2030 तक 5 बिलियन डॉलर और 2070 तक 30 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।
- 1983-1990 से 2010-2016 तक प्रमुख शहरों में अत्यधिक गर्मी के तनाव के जोखिम में 71% की वृद्धि हुई है।
लचीलेपन के लिए सिफारिशें
- शहरी हरियाली, अग्रिम चेतावनी प्रणाली और ठंडी छतों जैसे उपायों को लागू करना, जिससे गर्मी से संबंधित मौतों में प्रतिवर्ष 1.3 लाख से अधिक की कमी आएगी।
- वित्तपोषण रोडमैप विकसित करना तथा नगरपालिका क्षमता निर्माण में निजी क्षेत्र को शामिल करना।
- अनुकूलन प्रयासों के लिए जोखिम मूल्यांकन और सार्वजनिक एवं निजी पूंजी जुटाने को प्रोत्साहित करना।