सहकारिता पर नई राष्ट्रीय नीति
इस नीति का उद्देश्य मौजूदा त्रिस्तरीय ऋण संरचना को बनाए रखते हुए सहकारी वित्तीय संस्थाओं के बीच सहयोग को बढ़ाना है।
शीर्ष सहकारी बैंक का प्रस्ताव
- सहकारी बैंकों के बीच सहयोग और समर्थन को बढ़ावा देने के लिए एक शीर्ष सहकारी बैंक का प्रस्ताव है।
- इससे क्षमता निर्माण, व्यावसायिकता, सहायता और व्यावसायिक अवसर प्रदान करने में मदद मिलेगी।
नियामक ढांचा
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) सहकारी बैंकिंग संस्थाओं को विनियमित करता है।
- गैर-बैंकिंग सहकारी समितियों, जैसे कि थ्रिफ्ट क्रेडिट सोसाइटियों, की देखरेख राज्य सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार द्वारा की जाती है।
त्रि-स्तरीय ऋण संरचना
- प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (PACS): पंचायत या गांव स्तर पर कार्य करती हैं।
- जिला ऋण सहकारी बैंक (DCCBs): जिला स्तर पर कार्य करते हैं।
- राज्य सहकारी बैंक: राज्य स्तर पर कार्य करते हैं।
टास्क फोर्स और चुनौतियाँ
- एक टास्क फोर्स सहकारी ऋण संस्थाओं के समक्ष आने वाली चुनौतियों की जांच करेगी।
- यह समिति दीर्घकालिक ऋण संबंधी मुद्दों के समाधान तथा DCCBs की जमा राशि बढ़ाने के उपायों की सिफारिश करेगी।
भारत में सहकारी समितियाँ
- भारत में 800,000 से अधिक सहकारी समितियां हैं, जिनमें लगभग 200,000 ऋण सहकारी समितियां शामिल हैं।
- गैर-ऋण सहकारी समितियां आवास, डेयरी, श्रम, चीनी, उपभोक्ता वस्तुओं आदि जैसे क्षेत्रों में काम करती हैं।
सदस्यता
- सहकारी क्षेत्र में लगभग 300 मिलियन सदस्य हैं तथा PACS के देशभर में 130 मिलियन से अधिक सदस्य हैं।