भारतीय नौसेना की पनडुब्बी अधिग्रहण योजना
भारतीय नौसेना नौ नई उन्नत पनडुब्बियों की खरीद के लिए तैयार है, जिसके लिए सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) से मंज़ूरी मिलनी बाकी है। यह अधिग्रहण प्रोजेक्ट 75 (भारत) या पी75(आई) कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य स्टील्थ क्षमताओं को बढ़ाना है।
सामरिक महत्व
- हिंद महासागर क्षेत्र और अरब सागर में चीन और पाकिस्तान की बढ़ती नौसैनिक गतिविधियों के कारण यह अधिग्रहण महत्वपूर्ण है।
- भारत का लक्ष्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड के सदस्य के रूप में अपनी नौसैनिक उपस्थिति को मजबूत करना है।
साझेदारियां और तकनीकी फोकस
- पी75(आई) परियोजना भारतीय और विदेशी शिपयार्डों के बीच रणनीतिक साझेदारी को प्रोत्साहित करती है।
- यह स्टील्थ क्षमता को बढ़ाने के लिए वायु-स्वतंत्र प्रणोदन (एआईपी) प्रणालियों से लैस पनडुब्बियों पर ध्यान केंद्रित करता है।
- अन्य कम्पनियों के तकनीकी मूल्यांकन में असफल होने के बाद मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स और जर्मन थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स की संयुक्त बोली ही एकमात्र दावेदार है।
मौजूदा कार्यक्रमों पर प्रभाव
- विदेशी साझेदारियों में फ्रांस से जर्मनी की ओर बदलाव से चल रहे प्रोजेक्ट 75 कलवरी-क्लास कार्यक्रम पर प्रभाव पड़ेगा।
- वर्ष 2006 से 2015 के बीच निर्मित मौजूदा स्कॉर्पीन पनडुब्बियों को अतिरिक्त इकाइयों के लिए आगे ऑर्डर नहीं मिलेंगे।
- नौसेना को अंततः पुरानी रूस निर्मित पनडुब्बियों को हटाना होगा, जिससे भविष्य के बेड़े की संरचना प्रभावित होगी।
पी75(आई) कार्यक्रम से संभावित देरी और घरेलू शिपयार्डों पर प्रभाव के बावजूद, दीर्घावधि में भारतीय नौसेना का आधुनिकीकरण होने की उम्मीद है।