RBI द्वारा वित्तीय समावेशन सूचकांक
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मार्च 2025 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए अपना वित्तीय समावेशन सूचकांक (FI इंडेक्स) स्कोर 67 जारी किया है। यह 2021 में इस सूचकांक की शुरुआत के बाद से स्थिर प्रगति को दर्शाता है। यह स्कोर वित्तीय सेवाओं की पहुँच में सुधार को इंगित करता है, लेकिन भौगोलिक असमानताओं और सूचकांक के विभिन्न घटकों में विविधता के कारण यह गहराई से अंतर्दृष्टि प्रदान करने में असमर्थ रहता है।
सूचकांक के घटक
- पहुँच: वित्तीय सेवाओं की उपलब्धता।
- उपयोग: वित्तीय सेवाओं का उपयोग किस सीमा तक किया जाता है।
- गुणवत्ता: उपयोगकर्ता अनुभव और वित्तीय सेवाओं की प्रभावशीलता।
सुधार मुख्यतः उपयोग और गुणवत्ता में देखा गया, फिर भी इन उप-सूचकांकों के लिए अलग-अलग स्कोर की अनुपस्थिति के कारण ध्यान देने योग्य विशिष्ट क्षेत्रों की पहचान करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
वित्तीय समावेशन में चुनौतियाँ
- एकल अखिल भारतीय सूचकांक क्षेत्रीय वित्तीय बहिष्करण को छुपाता है।
- राज्य या जिला स्तर पर अलग-अलग आंकड़े भौगोलिक विविधता को बेहतर ढंग से दर्शा सकेंगे।
भारत की प्रगति और चुनौतियाँ
- पिछले दशक में उल्लेखनीय प्रगति में प्रधान मंत्री जन धन योजना और आधार का क्रियान्वयन, वित्तीय पहुंच और लाभ हस्तांतरण में वृद्धि शामिल है।
- मोबाइल फ़ोन की पहुँच ने डिजिटल वित्तीय पहुँच को और भी आसान बना दिया है। हालाँकि, कुछ समस्याएँ अभी भी बनी हुई हैं:
- बीमा और पेंशन कवरेज विशेषकर अनौपचारिक श्रमिकों के बीच कम बनी हुई है।
- उच्च सेवा लागत या दूर स्थित बैंक शाखाओं/ एटीएम के कारण निष्क्रिय खाते बने रहते हैं।
आगे की राह
वित्तीय समावेशन को केवल बैंक खातों तक पहुँच से आगे बढ़ाकर बचत, ऋण, बीमा और पेंशन जैसे वित्तीय उत्पादों के पूरे समूह के उपयोग को प्रोत्साहित करना होगा। इसके लिए आवश्यक है:
- उन्नत डिजिटल अवसंरचना।
- बेहतर कनेक्टिविटी और अधिक एक्सेप्टेंस पॉइंट्स।
- एक इकोसिस्टम, जो डेटा गोपनीयता और उपयोगकर्ता सहमति को प्राथमिकता देता हो।
RBI का FI सूचकांक मूल्यवान है, फिर भी लक्षित नीतिगत हस्तक्षेप के लिए विस्तृत आंकड़ों के बिना इसकी उपयोगिता सीमित है। विस्तृत आंकड़े प्रकाशित करने से तथ्यों के आधार पर अधिक सार्वजनिक चर्चा और सटीक नीतिगत कार्रवाई को बढ़ावा मिल सकता है।