भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड मामले की सर्वोच्च न्यायालय की समीक्षा
सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड (BPSL) की समाधान योजना को अवैध घोषित करने वाले अपने 2 मई के फैसले की समीक्षा की और इसके परिसमापन का आदेश दिया। यह मामला दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) के ढांचे में महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करता है।
2 मई के फैसले से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ
- इस निर्णय से हितधारकों और नीति निर्माताओं में चिंता उत्पन्न हो गई, क्योंकि इसने IBC के आधार को चुनौती दी, जिससे आर्थिक स्थिरता पर संभावित रूप से असर पड़ सकता है।
- इसमें JSW स्टील द्वारा किए गए 20,000 करोड़ रुपये के निवेश और उससे जुड़ी नौकरियों के महत्व पर जोर दिया गया।
- NCLT और NCLAT द्वारा मान्य ऋणदाताओं की समिति की व्यावसायिक बुद्धिमत्ता को कम नहीं आंकना चाहिए।
निहितार्थ और आवश्यक कार्रवाई
- सरकार को मूल निर्णय की अवहेलना नहीं करनी चाहिए तथा इसकी कमियों को दूर करके दिवालियापन प्रक्रिया को बढ़ाना चाहिए।
- संपूर्ण प्रक्रिया की समीक्षा करने से भविष्य में आने वाली समस्याओं को रोका जा सकता है तथा IBC के कार्यान्वयन को एक महत्वपूर्ण सुधार के रूप में बढ़ावा मिल सकता है।
- दिवालियापन मामलों के कुशल निर्णयन को सुनिश्चित करने के लिए NCLT और NCLAT के भीतर क्षमता संबंधी मुद्दों से निपटने की आवश्यकता है।
दिवालियापन प्रक्रिया की दक्षता
- वित्त संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने दिवालियेपन समाधान में तेजी लाने के लिए समर्पित NCLT और NCLAT की स्थापना का सुझाव दिया है।
- वर्तमान आंकड़ों से पता चलता है कि समाधान योजना वाले मामलों में औसतन 597 दिन लगते हैं, जबकि परिसमापन मामलों में 500 दिन से अधिक समय लगता है, जो प्रक्रिया में तेजी लाने की आवश्यकता को दर्शाता है।
- समाधान प्रक्रिया में देरी से मूल्य नष्ट हो सकता है, जिससे दिवालियेपन की कार्यवाही को शीघ्रता से अंतिम रूप देना महत्वपूर्ण हो जाता है।