अमेरिका-भारत व्यापार संबंध और टैरिफ निहितार्थ
घरेलू विनिर्माण और रोज़गार सृजन को पुनर्जीवित करने के प्रयास में, अमेरिकी राष्ट्रपति ने टैरिफ़ को एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में अपनाकर "मेक अमेरिका ग्रेट अगेन" के अपने वादे को पुनर्जीवित किया है। इस नीतिगत कदम का अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
प्रारंभिक राजनयिक पहल
- भारतीय प्रधानमंत्री की वाशिंगटन यात्रा से द्विपक्षीय व्यापार चर्चाओं की शुरुआत हुई।
- भारत ने व्यापार वार्ता को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रारंभिक कदम उठाते हुए बॉर्बन जैसी वस्तुओं पर आयात शुल्क कम कर दिया तथा समकारी शुल्क को समाप्त कर दिया, जो अमेरिका के लिए विवाद का विषय थे।
- अमेरिका और भारत द्विपक्षीय व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने का लक्ष्य लेकर चल रहे थे, तथा भारत इसके शीघ्र क्रियान्वयन को रणनीतिक लाभ के रूप में देख रहा था।
अप्रत्याशित टैरिफ घोषणाएँ
- अमेरिका ने भारतीय आयात पर 25% टैरिफ लगाने तथा रूस के साथ भारत के ऊर्जा संबंधों से संबंधित अतिरिक्त दंड की घोषणा की।
- भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल की निरंतर खरीद के कारण अमेरिका ने टैरिफ में और वृद्धि करने की धमकी दी।
व्यापार वार्ता का टूटना
- कई दौर की वार्ता के बावजूद, 1 अगस्त की समय सीमा तक व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के प्रयास असफल रहे।
- मुख्य असहमति कृषि और मोटर वाहन क्षेत्र में बाजार पहुंच के इर्द-गिर्द थी, जिसे भारत अपने छोटे किसानों की सुरक्षा के लिए स्वीकार करने में अनिच्छुक था।
- भारतीय किसान संघ और स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठनों ने खाद्य सुरक्षा के लिए खतरे का हवाला देते हुए कृषि रियायतों की अमेरिकी मांग का विरोध किया।
भू-राजनीतिक तनाव
- ब्रिक्स में भारत की भागीदारी और रूस के साथ तेल व्यापार ने अमेरिका के साथ संबंधों को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया है।
- अमेरिका भारत पर यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों को वित्तीय सहायता देने का आरोप लगाता है, जिससे व्यापार तनाव बढ़ता है।
आर्थिक निहितार्थ और भविष्य का दृष्टिकोण
- अतिरिक्त 25% टैरिफ से भारतीय निर्यातकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जिससे भारतीय वस्तुओं पर प्रभावी अमेरिकी टैरिफ 2.3% से बढ़कर 18% हो जाएगा।
- कपड़ा, ऑटो कलपुर्जे और रसायन सहित कई क्षेत्रों पर गंभीर असर पड़ने की आशंका है।
सरकार की प्रतिक्रिया
- सरकार का लक्ष्य विश्व व्यापार संगठन के अनुरूप समर्थन तंत्र तैयार करना है, क्योंकि प्रत्यक्ष सब्सिडी वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन कर सकती है।